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अकेलापन


हर आदमी इस दुनिया में,

बहुत अकेला लगता है ।

सुनने वाला कोई भी नहीं ,

वह कहे तो किसको कहे ,

जिधर नजर जाती है,

सुनने वाला कोई न दिखाई देता है ।

अपनी परेशानियों का बोझ ,

उसके ही अपने सर पर है।

दिल की सारी बातों को ,

अपने सीने में रखता है ।

कभी भूले से कोई मिल जाए,

जरूरी काम बता कर वह,

चुपके से सटक लेता है

हर एक आदमी इस दुनिया में,

बहुत अकेला होता है ।

अपने घर की बातों को ,

किसी से वह ना करता है ।

कही हो ना जाए जग हंसाई ,

अपनी इज़्ज़त को जीता है ।

इस भरी पूरी दुनिया में भी ,

कोई अपना ना दिखाई देता है।

हर एक आदमी इस दुनिया में,

बहुत अकेला लगता है।

बेटे ने क्या कहा ,बहू ने ना सुना,

यह तो हर घर घर का झमेला है ।

बेटी का हर बार जवाब देना ,

दिल को बहुत दुखाता है ।

घर घर की इस कहानी में,

वह चुपके-चुपके रोता है ।

हर एक आदमी इस दुनिया में ,

बहुत अकेला लगता है। 

बच्चे तो पढ़ते रहते हैं,

कुछ सर्विस करते रहते हैं।

वह नहीं समझते जीवन को,

दुनियादारी में नहीं पड़ते,

मां बाप को भी ना समझता है।

हर एक आदमी इस दुनिया में,

बहुत अकेला लगता है।

सब जीते हैं पैसों के लिए,

सुविधाओं के लिए ही जीते हैं।

जीवन में इसके बिना कुछ हो,

वह सोच भी नहीं सकते हैं।

सारा प्यार,सारी ममता का खेल,

सुविधा ही होता है।

इस दुनिया में हर आदमी,

बहुत अकेला लगता है।

यदि हो घर में नौकर चाकर,

पैसों का खुला खाता हो।

सब अपने में मस्त जो रहते हैं,

सबको हर एक सुहाता हो।

होना फिर बैर किसी से,

यही सब देखना होता है।

इस दुनिया में हर एक आदमी,

बहुत अकेला होता है।


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