
समझो किसान आंदोलन,
नाम ही गलत है।इसका।
फायदा नहीं किसानों का,
फायदा ले रहे, आंदोलन जीवी इसका।
इसका आंदोलन जीवी नाम नया,
मौक़ापरस्त यह होते हैं।
कहां हो, कभी भी हो,
वहां ये लोग जमा होते हैं।
किसी भी जगह जो ऐसी हो,
ढूंढो तो मिल जाएंगे।
देश और किसान की चिंता नहीं ,
अपनी रोटी सेकने आ जाएंगे।
पहले यह बिरादरी इतनी ना थी,
कम थे लोग इसमें पहले कभी।
अब तो हर एक को चाहिए यही बिरादरी,
आ जाते हैं सबसे पहले तभी ।
कोई भी आंदोलन इनके बिना,
नहीं चलते देश में कहीं।
हर जगह यही वह चेहरे हैं,
कभी अंदर कभी बाहर से कहीं।
यह नाम बहुत ही अच्छा है,
आंदोलन जीवी भी इन सब का।
आंदोलन का नाम सुनते ही,
बन जाते हैं परजीवी,धंधा इन सब का।
आंदोलन जीवी चाहते हैं,
ऐसे ही आंदोलन चलते रहें ।
एक खत्म हो तो दूसरे,
किसी और बहाने चलते रहें।
बस चले उनका तो देश,
घिरा रहे, इन मुश्किलों से,
चाहे ट्रैफिक, चाहे दंगे,
परेशान रहे इन झंझटों से।

फिक्र ना उन्हें देश की,
जनता की, न किसानों की।
नाम रोज उनका चलता रहै,
पहचान हें आंदोलन जीवी की।
आंदोलन जीवी सोचते हैं,
यही काम सत्ता दिलवायेगा,
जनता का क्या वह तो,
कुछ दिन में सब भुला दिया जाएगा।
श्रमजीवी तो मजबूर है,
परिवार पालना पड़ता है।
बिना काम रह नहीं सकते,
जीवन से लड़ना पड़ता है।
बुद्धिजीवी भी काम करे,
वह छुट्टी नहीं ले सकते हैं।
उनकी मजबूरी उनसे ज्यादा,
कुछ कह नहीं सकते हैं।
पर आंदोलन जीवी तो मस्त,
मजे बहुत हैं उनके तो।
ना फिक्र उन्हें घर परिवार की,
मस्ती में जीवन इनके तो।