
क्या आप जानते हैं इत्मीनान से जीना क्या होता है?
क्या आप की ज़िंदगी इत्मीनान में है?
क्या आप अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी रहे हैं। बिना किसी आपाधापी के, बिना किसी जल्दबाजी के, और बिना किसी व्यवधान के। पहले हमें धीरे और जल्दी का अर्थ समझना होगा। उसको हम फास्ट और स्लो भी कह सकते हैं।
1. फास्ट का मतलब है हर समय जल्दी में रहने वाला।
2. हमेशा व्यस्त रहने वाला।
3. हर चीज पर पूरा नियंत्रण चाहने वाला।
4. हमेशा आक्रामक व्यवहार करने वाला।
5. हमेशा जल्दी में पाया जाने वाला।
6. हर वक्त दिमाग की सुनने और दिल की उपेक्षा करने वाला।
7. हर वक्त तनाव में रहने वाला।
8. चीजों या लोगों से गहराई से जुड़ने में परेशानी महसूस करने वाला।
9. हर वक्त बेसब्री में रहने वाला।
10. एक पल के लिए भी रिलैक्स ना कर सकने वाला।
11. Quality के ऊपर Quantity को तरजीह देने वाला।
यह सब बातें एक फास्ट यानी कि जल्दी काम करने वाले की होती है। अब हम इसके विपरीत देखते हैं कि
स्लो यानी धीरे काम करने वालों की क्या खूबियाँ है?
जबकि स्लो इसका उल्टा है।
1. स्लो का मतलब है व्यर्थ में उत्तेजित ना होने वाला।
2. शांत रहते हुए भी हर चीज को पूरी तरह सचेत रहकर करने वाला।
3. ग्रहणशील हर परिस्थिति में भी सीखने वाला ।
4. विपरीत परिस्थितियों में भी आपा ना खोने वाला ।
5. दिल की बात भी सुनने वाला।
6. हड़बड़ी के बजाय इत्मीनान से काम करने वाला।
7. हर हाल में धैर्य रखने वाला।
8. चीजों पर गहराई से सोच विचार करने वाला।
9.Qwantity के ऊपर Qwality को तरजीह देने वाला ।
लोगों से समाज और संस्कृति से काम से भोजन से और उन सारी चीजों से जो जिंदगी को मायने देती हैं ।उन सब से गहराई से जुड़ सकने वाला।
लेकिन कई जगह स्लो का मतलब स्लो नहीं होता है। किसी भी काम को इत्मीनान से करने पर उसके परिणाम जल्दी मिलते हैं ।किसी काम को जल्दी करते हुए भी हम अपने दिलो दिमाग को शांत और स्थिर बनाए रख सकते हैं।
जब आपके आसपास के तमाम लोग अपना आपा खो रहे हो ।तभी आप को शांत रहना चाहिए ।
क्या आप जानते हैं कि जो भी कुछ हम अपने पेट में डालते हैं ?
उसे इत्मीनान से उगाया हुआ।
इत्मीनान से पकाया हुआ ।
और इत्मीनान से खाया हुआ होना चाहिए।
जिंदगी का फलसफा एकदम नया है ।अगर आप हरदम स्लो है ।तो आप बेवकूफ है ।और हम ना तो खुद बेवकूफ बनने को तैयार है ।और ना ही किसी और को इसके लिए प्रेरित करने का हमारा विचार है।
पर इत्मीनान से जीने के बारे में मैं आपको यह बता सकती हूं ।इत्मिनान से जीने का मतलब है कि आप का नियंत्रण हो ।
जीवन की गति आप का नियंत्रण हो ।आप खुद यह तय करें कि आपको कब कितना तेज चलना है ।अगर आपका मन भागने का है ,तो बेशक भागिए ।
परंतु अगर आप रुकना चाहते हैं।तो जब आप बैठना चाहें तब बैठने की आजादी आपके पास होनी चाहिए। वास्तव में हमेशा आजादी के लिए अपनी रफ्तार तय करने के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं ।
कम से कम हमको इतनी आजादी तो होनी ही चाहिए कि हम जब अपने बच्चों को कहानी सुना रहे हो तो वह कहानी पूरी तरह से सुनाएं।यह नहीं कि हम उसको छोटा करके और कहानी सुना कर ही उसको पूरी की जाए।
चलो जल्दी करो ?
चलिए मैं आपसे पूछती हूं कि सुबह सोकर उठने के बाद सबसे पहले आप क्या करते हैं ?
खिड़की से पर्दे हटाते हैं ताकि सुबह का उजाला भीतर आ सके।
करवट बदल कर अपने साथी को देखते हैं ।
बिस्तर से निकलकर 10 पुश अप करते हैं ताकि शरीर में थोड़ी गर्मी आ जाए ।पर मैं पूरे दावे से कह सकती हूं कि आप ऐसा कुछ नहीं करते नींद खुलते ही सबसे पहले आप घड़ी देखते हैं ।
सबकी नजर सबसे पहले इसी पर जाती है। अभी समय क्या है ?
अगर अभी समय ज्यादा नहीं हुआ तो हमें थोड़ी देर आलस्य आएगा और कोशिश करेंगे कि थोड़ी देर और सो लें। लेकिन अगर समय ज्यादा हो गया तो एक झटके से बिस्तर से निकल कर बाहर आ जाएंगे ।और जल्दी से तैयार होने के बारे में सोचेंगे।
तो देखा आपने जिस पल हम आंख खोलते हैं। उस पल से हमारा जीवन घड़ी के इशारे पर नाचने लगता है।
रात को जब तक हम दोबारा आंखें बंद नहीं कर लेते ।तब तक यह घड़ी हमें दौड़ाती ही रहती है।
एक डेडलाइन से दूसरे डेडलाइन तक हमारे चारों ओर मौजूद घड़ियां पलंग के सिरहाने रखी हुई, ऑफिस की कैंटीन की दीवार पर लगी हुई, कंप्यूटर स्क्रीन के कोने से झांकती हुई, हमारी अपनी कलाई पर बंधी हुई ,हर पल हम पर नजर रखे हुए हैं ।
कहीं हम उस शेड्यूल से पिछड़ तो नहीं रहे हैं। एक पल भी हमें अकेला नहीं छोड़ती, उनकी लगातार टिक टिक पल भर को भी हमें चैन से नहीं बैठने देती ।हम चाहे कितनी भी कोशिश क्यों नहीं कर ले घड़ी के हिसाब से चलने की।
समय की ट्रेन हमेशा हमारी स्टेशन पहुंचने के 2 मिनट पहले ही छूट चुकी होती है । नए जमाने की नई चाहे कितना भी तेज क्यों न हो,कोई कितना भी खुश क्यों ना हो, कितनी भी कुशलता क्यों ना दिखा दे।
शेड्यूलिंग मैं हर समय कभी किसी को बुरा नहीं पड़ता ।ऐसा नहीं कि पुराने समय में लोग बिल्कुल ही फुर्सत में हुआ करते थे ।पर समय का जितना दबाव आज है उतना पहले कभी नहीं रहा।
