रफ्तार की ज़िंदगी से मुक्ति ,ही इत्मीनान की ज़िंदगी है।

हम फिर से उसी टॉपिक पर आते हैं इत्मीनान। शायद आप सोच रहे होंगे कि बात करते-करते मैंने जिंदगी का बचपन का अनुभव आपके साथ शेयर किया।
यह अनुभव मुझे हमेशा एक ताकत देता है।इस बात का एहसास देता है। क्योंकि मैंने जितना चाहा था। उससे कहीं ज्यादा मैंने अचीव किया ।जो मैं सोच भी नहीं सकती थी। हमको अपनी जमीन को कभी नहीं भूलना चाहिए ।
खैर मैं आपको वापस उसी टॉपिक पर लेकर चल रही हूं । इत्मीनान यह हम सब की जिंदगी के लिए बहुत जरूरी है। जैसे-जैसे जिंदगी की रफ्तार बढ़ती गई वैसे वैसे ही लोगों को मशीनों में बदलती जा रही थी।
हमारे विचार हमारी भावनाएं हमारी चाहते हैं ,सबके चंचल हो गए। कितने चपल हो गए ।जहां देखो वहां पागलों की तरह भागे चले जा रहे हैं। आगे चले जा रहे हैं रुक कर के सोचने का किसी के पास वक्त नहीं है।
जो हमारे सामने के दृश्य है, वह भी तेजी से बदल रहे हैं ।कि उसके लिए हमें अपने अंदर और बाहर संतुलन बैठाना नामुमकिन सा हो गया है ।
अपने लिए अधिक समय और स्थान पाने की खातिर लोग पैसा कुर्बान करने के लिए भी तैयार हो गए हैं ।
जब लोग स्लोनेस पर आते हैं, या उसके लिए बेताब हो जाते हैं। तो सारी चीजें अपने आप में अपील करने लगती हैं।
उससे हमारी आत्मा तो शांत होती है, हम चाहे कितनी भी कोशिश कर ले हम अपनी आत्मा को नहीं परेशान कर सकते।
और रही बात धर्म की ,हर धर्म में एक ही बात सिखाई जाती है, स्वयं से औरों से और परमात्मा से जुड़ना बेकाबू घोड़े की तरह यहां वहां भागते मन की लगाम को संभालो और शांत हो जाओ।
जैसे ही तुम अपने मन को शांत करोगे वैसे ही तुम ईश्वर की ओर अपना एक कदम उठाओगे।
रोजमर्रा की जिंदगी में भी ऐसे मौके आते हैं। जब हमें कड़ी मेहनत करने की जरूरत होती है। शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी।
जब हमें हर काम में फुर्ती दिखानी पड़ती है। सब कुछ बहुत जल्दी जल्दी करना पड़ता है। पर ऐसे अति व्यस्त अवसरों के बीच भी हमें थोड़ी थोड़ी देर के लिए रुक जाना चाहिए। और बैठकर ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए।
कि स्लो काम करने की भी अपनी खूबसूरती है। ऊपर ऊपर से जीने से कोई लाभ नहीं अपनी गति कम कीजिए। और गहराई मे उतर कर ये क्या जानते हैं।
तेज और तेज को ना कहने की आर्थिक कीमत हमें क्या और कितनी कीमत चुकानी होगी। इत्मीनान से जीने की क्या कीमत को चुकाने में समर्थ होंगे।
क्या हम उस कीमत को चुकाने के लिए तैयार हैं। कहीं यह धनवान लोगों के लग्जरी का नया प्रकार तो साबित नहीं होगा।
जिससे वह हमें नीचा कर सके, वैसे यदि आप देखें स्लो एक खराब शब्द लगता है ।
स्लो का मतलब है ,एक ऐसा व्यक्ति जिसको समझ में नहीं आता ।उसे हम मूड मति कह सकते हैं, उबाऊ जिसे कुछ भी सीख सीखने में कोई दिलचस्पी न हो ,सुस्त ,थका मांदा, निरस्त,
अब कौन आदमी है चाहेगा कि उसकी जिंदगी में इन सब शब्दों का इस्तेमाल कोई उसके लिए करें।
इसलिए सब उसी शोर की तरफ भाग रहे हैं।आज की तारीख में faster is better है।परंतु जब हम देखते हैं कि तेज और तेज का अंदाज लोगों के लिए एक गर्व का विषय है ।
परंतु क्या आपने कभी ऐसे लोगों से भी बात की है ।जो हमेशा यह बड़बड़ करते रहते हैं, कि क्या बताऊं यार मरने तक की फुर्सत नहीं मिल रही है?
मेरा तो जीना हराम हो गया है, क्या क्या करूं मैं इतने सारे काम और एक अकेले जान इतना जल्दी जल्दी करते-करते भी मेरे काम कभी पूरे ही नहीं होते ।
यह शब्द सुनते हुए आप बहुत सारे लोगों को देखते हैं। बहुत सारे लोग इसी बात को दोहराते हैं। पर साथ में वह यह भी दिखाते हैं ।देखो मैं कितना इंपॉर्टेंट हूं ।मेरे में कितनी एनर्जी है।
मैं कितना सारा काम करता हूं। इतना सारा काम क्यों करते हैं? वह इतना सारा काम इसलिए करते हैं ,क्योंकि समय से पिछड़ने का ख्याल ही उनको बुरी तरह डरा देता है। उनको लगता है कि अगर वह समय के साथ नहीं चले तो वह बहुत पीछे रह जाएंगे ।
और सब उनसे आगे निकल जाएंगे ।कल के समय में तेज और तेज़ का चलन जो है। वह वरदान कम है, मुसीबत का सबब ज्यादा है।
उस समय को लेकर उसने लोगों को बहुत ही ज्यादा संवेदनशील और बेचैन कर दिया है।लोगों में किसी के प्रति कोई संवेदना ही नहीं रही, वह देखते ही नहीं कि कोई आदमी इतनी देर से काम कर रहा है।
क्या वह थक गया होगा?
क्या उसको थोड़े आराम की जरूरत है या नहीं ?
यह सब देखने का वक्त किसी के पास नहीं उनको सिर्फ अपने काम से मतलब है।कभी-कभी तो जब हमारे काम पूरे नहीं हो पाते और हम घड़ी देखते हैं ,तो हम पाते हैं कि हम बहुत तनाव में हैं,क्योंकि जो काम हमें जल्दी करना था उसमें हम बहुत लेट चल रहे हें।
एक बात कितनी मजेदार है ना कि अगर हम घड़ी में चाबी नहीं भरेंगे, घड़ी बंद हो जाएगी।इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि घड़ी अब हमारे रहमो करम पर है। घड़ी मेरे लिए है, ना कि मैं घड़ी के लिए।और हम इस दबाव से मुक्त हो जाते हैं।
आज हम इत्मीनान में भोजन की बात करेंगे। जो हम खाते हैं, वही हो जाते हैं। बाकी हर चीज की तरह जल्दी और हड़बड़ी की भेज चुका है।भोजन करने का अमेरिकी तरीके को इन तीन शब्दों में समेटा जा सकता है ठूसो,निगलो, और निकलो।
समय की बचत के लिए लोग यह सोचते हैं कि कोई भी डिनर पार्टी ढाई घंटे से ज्यादा नहीं चलनी चाहिए।पहले मेहमान द्वारा दरवाजे की घंटी बजाने से लेकर आखिरी मेहमान के रुखसत होने तक के समय को मिलाकर यह समय इतना ही होना चाहिए।
1.दोस्तों और परिवार के लोगों के साथ बैठकर खाने के बजाय समय बचाने के लिए लोग अकेले खाना ज्यादा पसंद करते हैं।
2.चलते चलते खाना पसंद करते हैं।
3.जब कुछ कर रहे हो तो खाना पसंद करते हैं।
4.शांति से बैठ करके नहीं खाते हैं।
5.उन्होंने अपना टाइम फिक्स कर रखा है।
वह किसी भी फास्ट फूड रेस्टोरेंट में जाकर जो खाने का समय है, वह खाने को 11 मिनट में खत्म कर देते हैं। कई बार अचानक इच्छा होने पर एक कप डिब्बा बंद माइक्रोवेव में वोइल्ड करके अगले 5 मिनट में फिनिश कर देने के मुकाबले, दोस्तों के साथ मिल बैठकर खाना ज्यादा औपचारिक हो झंझट भरा और टाइम कंजूमिंग लगने लगा।
पर यह तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं है।भोजन को लेकर उनका एक मंत्र हो गया।
पकाने में जितना जल्दी कम मेहनत और समय लगे उतना अच्छा।
परंतु खाना हमेशा इत्मीनान से सरलता से और सहजता से बनाना चाहिए।तभी वह हमारे शरीर को भरपूर शांति देता है।अगर हम खाना हड़बड़ी में बनाते हैं या हम क्रोध में बनाते हैं तो वह हमारे शरीर में जाकर उतना ही नुकसान करता है।
आजकल हम देखते हैं कि लोगों को खाना बनाने में बहुत परेशानी होती है।तो वे खाना बाहर से ऑर्डर कर देते हैं। काफी कंपनियां है जो यह सर्विस प्रोवाइड करती हैं।और खाना घर पर पहुंचा देते हैं।
1.क्या आप जानते हें कि खाना बनाते समय उनके विचार कैसे थे?
2.पर क्या आप जानते हैं कि वह खाना कैसे बनाते हैं?
3.क्या आप जानते हैं कि उन्होंने खाना बनाते समय क्या क्या सावधानियां बरती हैं?
4.किस तरह के मूड में उन्होंने खाना बनाया है?
5.उनका मशीनी खाना बनाने से हमारा दिमाग भी मशीनरी जैसा हो जाता है।और वह हमारी भावनाओं को प्रभावित करता है।
इस बारे में मैं आपको एक और बात बताना चाहती हूं।
1.क्या कभी आपने गौर किया क्या आपके बच्चे को इतना गुस्सा क्यों आता है?
2.वह इतना ज्यादा एग्रेसिव क्यों होता जा रहा है?
3.क्या आप समझ सकते हैं इसकी वजह भोजन भी हो सकती है?
4.वह इसलिए क्योंकि जो हम भोजन कर रहे हैं उसमें उतना प्यार नहीं ,क्योंकि अधिकतर भोजन हमारे घर में भोजन बनाने वालों से बनवाया होता है ना कि घर वालों से।
5.और वह क्या क्या सोचते हुए भोजन बनाते हैं? इसका असर भी हमारे शरीर पर पड़ता है।हमारे बुजुर्गों की कहावत थी।जैसा खाए अन्न वैसा बने मन यह सिर्फ एक कहावत ही नहीं है यह हकीकत भी है जैसा हम अन्न खाते हैं वैसा ही हमारा दिल और दिमाग हो जाता है।
कभी-कभी हम टीवी देखते हुए या और काम करते हुए खाना खाते रहते हैं।
1.हमको पता ही नहीं चलता खाने का असली टेस्ट क्या है?
2.उसका असली मजा क्या है ?
3.क्योंकि उस समय हमारा दिमाग सिर्फ टीवी में लगा होता है?
या अपने कामों में तुम खाने का लुत्फ उठाना ही भूल जाते हैं।
हमें अपने जीवन में इस बात को शामिल करना होगा कि जब भी हम खाना खाए, हमारा पूरा परिवार एक साथ खाना खाए। और खाना खाते समय हम हर एक एक कोर का स्वाद लेकर खाएं।
फिर आप देखिए कि क्या आपका मन कितना प्रसन्न हो जाता है? और आत्मा प्रसन्न हो जाती है। पहले के लोग जब खाना बनाते थे तो खाना बनाते बनाते वह हमेशा यही सोचते थे कि हम जिसके लिए भी एक खाना बना रहे हैं। उसका मन प्रसन्न होना चाहिए।खाना खाते ही उसका दिल खुश हो जाना चाहिए।
परंतु आजकल के भाग दौड़ में खाना बनाना भी एक मशीनी काम की तरह हो गया है। एक बार में कितने सारे सामान हम एक साथ बनाने की कोशिश करते हैं।पहले एक ही चूल्हे पर खाना बनता था।अब तो गैस की सुविधा है और हमारे पास चार चार चूल्हे हैं।तो हम चार चीजें एक बार में ही बना सकते हैं।
परंतु वह हम इत्मीनान से नहीं बना पाते, वैसे हम जल्दबाजी में नहीं बनाते हैं।जैसे खाना बनाना भी एक काम है। और उसे शीघ्र खत्म हो जाना चाहिए।अगर हम खाने को इत्मीनान से बनाएं।इसका स्वाद जल्दी बाजी में बनाए हुए खाने से बहुत ही अच्छा होगा।
जब हम बहुत अच्छा खाना खाते हैं।क्यों कि हमने इतने इत्मीनान से बनाया होता है।उस खाने में भी एक खूबी होती है जब व्यक्ति उस खाने को खाता है, तो वह सब कुछ भूल जाता है।सारे गिले शिकवे भूल जाता है। किसी को भी माफ कर सकता है।
इसलिए कहा जाता है किसी के दिल का रास्ता पेट से ही हो कर जाता है।
अगर आप बहुत थक गए हैं।या दिमाग से बहुत परेशान हो गए हैं।उस समय खाना बनाना भी आपके लिए एक लाइफ चेंज होता है।रसोई में जाकर थोड़ा बहुत काटने वालों ने और छोंकने में या बनाने में कितना समय लगता है।उस समय में आप अपने दिमाग की सारी परेशानियां भूल सकते हैं।
और उस प्रक्रिया को करने के लिए आप एक गहरी सांस लें और रसोई में जाकर अपना काम शुरू कर दें।आप देखेंगे कि आप अपने को इतना अच्छा महसूस कर रही हें।
आखिर में मैं इतना ही कहना चाहती हूं कि कम से कम खाना तो आप इत्मीनान से खाइए।इसमें जल्दबाजी बिल्कुल मत कीजिए।क्योंकि यह शरीर के साथ आपके मन को भी सुकून देता है।