कहानी ढाबे वाले छोटू की

मैं यहां आपको बताना चाहती हूँ।
कि छोटू की जिंदगी क्या होती है।
मैं इसे एक कविता के जरिए बता रही हूं।

ढाबे वाला छोटू तो छोटा,
ही हर दम होता है।
हर एक की आवाज़ सुनने,
वाला वही एक छोटू होता है।
तुम जब देखो छोटू को,
हरदम मुस्कुराता रहता है।
मिल जाए अगर बख्शीश उसको,
तो बहुत ही खुश वह होता है।
भागकर सबके लिए,
खाना भी गरम वो लाता है।
सब की फरमाइशों को पूरा,
करने में जी जान लगाता है।
फिर भी कई लोगों से मुंह से,
वह गाली और ताने सुनता है।
कोई कहता है, कहां मर गया,
सोचकर भी वह रोता है|
सर्दी में बिना स्वेटर के,
सारा दिन, काम वह करता है।
रहता है एक शर्ट में वह,
फिर भी नहीं शिकायत करता है।
सब को खाना खिला कर वह,
बाद में सब के खाता है।
उसमें भी मिलता बचा खुचा ,
पर उससे भी पेट भर जाता हेँ।
कभी-कभी तो बुखार में भी,
सारा काम करता है।
ना मिलता कभी आराम,
उसे मालिक, से वह डरता है।
गर टूट जाए प्लेट और कप ,
तू गाली बहुत ही पड़ती है।
कट जाती है तनखा उसकी,
वह बहुत ही महंगी पड़ती है।
पूरे हफ्ते में एक भी दिन ,
उसको ना छुट्टी मिलती है।
उसकी ड्यूटी में छुट्टी शब्द ,
नौकरी छोड़कर मिलती है।
कभी सोचा उसके बारे में,
कितनी दुविधा भरा जीवन है|
इस जीवन में ना प्यार,
ना अपनापन यह कैसा जीवन है।
जब भी जाओ किसी ढाबे पर,
तो देखना जो छोटू को।
कोशिश करना उसे देने की,
कुछ प्यार और अपनापन उसको।
इंसान है वह भी आप जैसा,
बस यह भी तकदीर का लिखा है।
मालिक होते हैं आप जैसे,
छोटू बनना उसकी किस्मत का ठेका है।
मुझे शिकायत है उनसे,
जो किसी का दर्द ना समझते हैं।
ढाबे के छोटू को कभी,
बच्चों की नजर से ना देखते हैं।
वह भी किसी का बेटा है ,
किसी की आँख का तारा है।
वह भी ढाबे का छोटू तो क्या,
किसी के जीवन का सहारा है।
एक छोटू की कहानी इस कहानी में भाव उसके हैं।और शब्द मेरे हैं।मैंने उसके बारे मैं लिखने की कोशिश की है। उसकी भावनाओं को अपने शब्दों में पिरोने की ,शायद जो लोग भी ढाबे में खाने जाते हैं।उनके दिल में उसके प्रति थोड़ा सा प्यार हो। यह सोच कर मैंने एक कविता लिखी हेँ।अगर एक भी छोटू को मैं थोड़ा सा प्यार दिलवा सकी तो मुझे बहुत खुशी होगी
