
रोजाना जिसे देखो वह कहता है।
यह देश किधर जा रहा है ?
समाज किधर जा रहा है ?
हम सब क्या कर रहे हैं ?
पर कोई इसकी वजह क्यों नहीं ढूंढता ?
इसके बारे में कुछ नहीं सोचता। बहुत अच्छी बात है कि हम देश को सुधारना चाहते हैं। अच्छा बनाना चाहते हैं ।पर उसकी शुरुआत कहीं से तो करनी होगी।
सबसे पहले उसकी शुरुआत में अपने घरों से ही करें तो बेहतर होगा।परंतु सब लोगों को केवल राजनीति की पड़ीं होती है।
देश तो हम बाद में सुधार लेंगे पहले अपना घर तो सुधार ले ।उसके लिए सबसे पहले हमें अपने बच्चों को संस्कार देने होंगे। उनको संस्कारों के बारे में बताना होगा।
उन्हें धर्म के बारे में सिखाना होगा ।यह कोई जरूरी नहीं कि हम किस धर्म के हैं।
परंतु आप जो भी धर्म मानते हैं ।हमको उस धर्म की शिक्षा बचपन से यह बच्चों को देनी चाहिए। और धर्म की शिक्षा में ही संस्कारों की शिक्षा छुपी हुई है ।आजकल बच्चों को हमारे धर्म से कुछ मतलब नहीं है।
और वह जानना भी नहीं चाहते। क्योंकि वह पाश्चात्य सभ्यता में इतने बदल गए हैं कि उन्हें इन सब की कोई आवश्यकता ही महसूस नहीं होती।
परंतु हम जानते हैं इसके प्रति जागरूक नहीं होने से बच्चों के अंदर बहुत सारी परेशानियां शुरू हो गई है।
उन्हें अपने धर्म के प्रति कोई लगाव ही नहीं रहा। घर में पूजा होती है तो उसमें बहुत कम बच्चे ऐसे होते हैं जो उस में बैठते हैं।
घर में कोई धर्म का कार्य होता है। तो बच्चे वहां से नदारद होते हैं। अपने फोन में लगे होते हैं, या अपने दोस्तों से बातों में लगे होते हैं ,या गेम खेलने में लगे होते हैं ।
परंतु धर्म के प्रति उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। उनको हमारी धर्म के बारे में, उनके प्रार्थनाओं के बारे में ,उनके मंत्रों के बारे में ,कोई भी ज्ञान नहीं है।
और उस ज्ञान को लेना भी नहीं चाहते। इन सब की जिम्मेदारी सबसे पहले माता पिता की है। दादा दादी की है ।
हमारे घर के बड़ों की है कि वह रोजाना बच्चों को चाहे 10 मिनट ही सही परंतु अपने धर्म के बारे में सब कुछ बताएं ।
अगर वे ऐसा करते हैं धीरे-धीरे ही सही ,पर चेंज होना शुरू होगा ,बदलाव आना शुरू होगा।
कम से कम बच्चों को भगवान की प्रार्थना करना तो आना ही चाहिए। जरूरी है कुछ मंत्र तो आने चाहिए । उनको उन मंत्रों का महत्व पता होना चाहिए।
जब हम छोटे थे तब हमारे माता पिता ने हमें बहुत संस्कार दिए।
उन्होंने हमें बताया की
1.अपने झूठे बर्तन स्वयं उठाने चाहिए।
2.झूठ नहीं बोलना चाहिए।
3.अगर कोई गली देता है।
हमें उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए, क्योंकि जो गाली देता है उसी का मुंह गंदा होता है।
बचपन की वह बात का असर आज भी दिमाग में है। आज भी मुझे फर्क नहीं पड़ता की किसी ने क्या गलत कहा।
4. माता पिता को सुबह नमस्कार करना चाहिए।
5.सुबह जल्दी उठना चाहिए।
6.उनकी दुख सुख का ध्यान रखना चाहिए
7.उनकी परेशानियों के बारे में सोचना चाहिए
और भी बहुत सी बातें हैं पर आजकल के बच्चों में वह कहीं नजर ही नहीं आती है। संस्कार के नाम पर उनके पास कुछ नहीं है ।
इसकी जिम्मेदार बड़ी वजह संयुक्त परिवार का ना होना होती है ।क्योंकि माता-पिता दोनों काम करते हैं।और बच्चों को संस्कार देने के लिए कोई नहीं होता।
वह नौकरों के हवाले ही रहते हैं ।वह उन्हीं के साथ अपना पूरा समय बिताते हें।बात इतनी चोटी भी नहीं की आप को समझ ना आए । इस पर विचार करना जरूरी ही नहीं आवश्यक भी है।
