
औरतों की जिंदगी,आसान नहीं होती है।
जब छोटी होती है पिता व भाई की सुनती है।
उनका रोब , उनका गुस्सा, वह सब सहती है।
घर में हर वक्त ,वही जिम्मेदार मानी जाती हैं।
औरतों की जिंदगी आसान नहीं होती है।

ना कोई पास न किसी की आस,दुख में भर जाती है।
उस परेशानी को सहन कर, और सशक्त होती है।
औरतों की जिंदगी आसान नहीं होती है।
शादी होने पर पराए घर जाती है।
अपने सपने, अपने ख्वाइशें , साथ में ले जाती है।
सपने और ख्वाहिशों की आशा ना पूरी होती है।

जैसा सोचा, जितना देखा ,जिंदगी उससे उलट होती है।
औरतों की जिंदगी आसान नहीं होती है।
बच्चे पैदा होने का दर्द अकेले सह जाती है।
उनको पालने में अपना सर्वस्व लगाती है।
सब कामों को खत्म करके थक कर जब वह सोती है।
औरतों की जिंदगी आसान नहीं होती है।
सबको सब कुछ हाथ में चाहिए, फरमाइश भी होती हैं।
ना सहयोग, ना कोई एहसान, दिक्कत उसी की होती है।

कोई तो समझे उसको ,जान उसमें भी इतनी ही होती है।
औरतों की जिंदगी, आसान नहीं होती है।
अपने पति के लिए वह अपना सब न्योछावर करती है।
सबको अपने काम की पड़ी, उस पर ना तवज्जो होती है।

पति और बच्चे भी भूल जाते, उन्हीं के लिए तो जीती है।
औरतों की जिंदगी आसान नहीं होती है।

परिवार के लिए ही जीती है, परिवार के लिए ही मरती है।
अपनी ना उसे कोई फिक्र कभी, उन सबके लिए सोचती है।
फिर भी जिसे कोई समझे ना,वह मां ,पत्नी, बहन, होती है।
औरतों की जिंदगी आसान नहीं होती है।

गर कर ले थोड़ी सी तरक्की तो, पुरुषों की आंख में खटकती है।
चाहे कितना पढ़ ले, लिख ले, सोच ना बदल सकती हैं।
कितने लोग सोचते हैं।अपने घर की औरतों के बारे में।
चाहे कितने दर्द हो रहे हो ,चाहे कितने कष्ट हो उनके बारे में।
पता भी नहीं होता कि वह तन से दुखी है, या मन से।

पता ही नहीं चलता कि वह क्या चाहती है? और कैसे?
जिंदगी औरत के घर से शुरू होकर, घर में ही खत्म होती है।
उनकी जिंदगी के बारे में सोचने की जरूरत, घर वालों को ही होती है।