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कहानी ज़िंदगी की

ज़िंदगी और कुछ भी नहीं,तेरी मेरी कहानी है।

आज मैं जो लिख रही हूँ।वह अपनी आपबीती ही लिख रही हूँ।

यह वास्तव में जिंदगी की ही कहानी है।जो आज मेरे जीवन साथी ने मुझे सुनाई।

शब्द तो उनके हैं पर लिख मैं रही हूं।

उन्होंने मुझे बताया 4 मई जब सुबह मैं उठा।तो मैंने महसूस किया कि मेरे पूरे सिर में दर्द है।ऐसा होता नहीं है।कि रात को मैं सो कर उठा हूं।और सुबह दर्द हो।थोड़ा सा परेशान हो गया।पहले से ही घर में दो लोगों को कोविड हो रहा था।पर मैंने ध्यान नहीं दिया।सिर पर थोड़ी बाम लगा कर आराम से लेट गया।

फिर अगले दिन 5 मई को मुझे खांसी आई।लगा उसमें थोड़ा बलगम है।वैसे तो मुझे एलर्जी रहती है।इसलिए खांसी भी मेरी एलर्जी का हिस्सा रहती है।मैं पानी की बोतल हमेशा साथ रखता हूं।मेरे घर में कभी मेरे पास बोतल ना हो।और मुझे खांसी आ जाए।तो पूरा घर एक साथ बोलता है।जल्दी से पानी लाओ।परंतु इस बार खांसी उससे अलग थी। 5 तारीख ऐसे ही निकल गई।

6 मई को मुझे लगा थोड़ा शरीर गर्म हो रहा है।अब मुझे शंका होने लगी कि कहीं मुझे को भी कोविड तो नहीं हो गया है।हमने अपने फैमिली डॉक्टर को फोन किया बताया कि खांसी हो गई।और सिर दर्द भी हो रहा है। तथा बुखार भी आ गया।

इतना सब होते हुए मेरे परिवार की जिम्मेदारी काफ़ी समय से मुझ पर ही थी।पर आश्चर्य की बात तो यह है कि घर में 3 मरीजों की देखभाल,घर का काम उसके बाद भी मैंने लिखना नहीं छोड़ा।मुझे एक अलग ही सुकून मिलता है।यह जो मैं लिख रही हूं।मैं मेरे जीवन साथी के शब्द है।मैंने उन्हें सिर्फ रूपांतरित किया है।

जब उन्होंने डॉक्टर को बताया कि डॉक्टर साहब मेरी धड़कन 120 आ रही है।और सांस लेने में दिक्कत है।तब डॉक्टर साहब ने बताया।चिंता मत करो जब बुखार आता है।और 1 पॉइंट बढ़ता है।तो धड़कन 10 पॉइंट बढ़ जाती है।अतः चिंता का विषय नहीं है।आप बेफिक्र रहें दवा लेते रहें।

और उन्होंने जयपुर से ही दवा लिखकर भेज दी।हम उनके बहुत शुक्रगुजार हैं।क्योंकि मेरे जीवन साथी को अंग्रेजी दवाएं लेने में बड़ी परेशानी होती है।पर कभी कोई दिक्कत होती है।तो हम डॉ पी पी खंडेलवाल जी को फोन कर देते हैं।और सब हाल बता कर हम कहीं भी रह रहे हों।वह दवा लिख कर भेज देते हैं।

वह जब भी मुझे देखते हैं।तो सोचते थे।कि घर की इतनी सारी जिम्मेदारी होने के बाद भी मैं कितनी मजबूत और बेफिक्र लगती हूं।

एक दिन उन्होंने चिंता करते हुए मुझसे कहा दोनों बच्चे बीमार हैं।क्या करें?मैंने कहा तुम फिकर ना करो सब ठीक हो जाएगा।वह जो हारे का सहारा है।मैंने अपने को और अपने पूरे परिवार की डोर उनके हाथ में दे दी है।अब मुझे तो किसी की भी फिक्र नहीं है।अब तो जो करना है।मेरे श्याम बाबा को करना है।मैंने सारी चिंताएं उन्हें सौंप दी है।

9 मई का वक्त आया।सब अपनी मां के बारे में लिख रहे थे।फोटो डाल रहे थे।और वह कहते हैं कि मेरी मां भले ही आज इस दुनिया में नहीं है।पर मेरे बच्चों की मां ने मेरा उतना ही ध्यान रखा है।जितना अगर मेरी मां होती तो वह रखती।

जब मेरे पैर में दर्द होता है।तब वह कितनी भी गहरी नींद में होती है।पर उठ कर पैर दबा देती है।जब तक मुझे नींद ना आने लगे।

जब उसे ठंड लगती है।तो वह पहले मुझे चादर उढाती है।कि मुझे भी ठंड लग रही होगी।

रात को जितनी भी बार मैं उठूँ वह कहती है “ध्यान से उठना पहले 1 मिनट पलंग पर बैठो तभी उठना।मैं आऊं क्या? देखो ध्यान से कहीं गिर न जाना“

क्या बताऊं? मेरी हर सांस,हर धड़कन को पहचानती है।समझती है।किसी बात को कभी कहने की जरूरत ही महसूस नहीं होती।जब तक मैं सो ना जाऊं।तब तक वह भी नहीं सोती।जब घर में सब सो जाते हैं।तभी वह सोती है।

च्चे भी मुझे और उनको इतना प्यार करते हैं।थोड़ी थोड़ी देर में पूछते हैं “कैसी तबीयत है? आपने क्या खाया? आप यह ले लो, वह ले लो” सब अपना फर्ज निभाते हैं। मेरी दोनों बहूएं भी हमारा बहुत ख्याल रखती हैं। हम को किस वक्त क्या चाहिए। इन सब बातों का उनको बहुत ध्यान रहता है।बहुत ही समझदार हैं।शायद हमारे पिछले कर्म अच्छे थे।तब ही इतना खूबसूरत परिवार मिला है। और पोते पोती की तो बात ही ना पूछो। कितने प्यारे हैं। कितना ध्यान रखते हैं। बहुत प्यार करते हैं।  

यह ठीक है।मैंने अपने दोनों बच्चों को बिज़नेस खड़ा करके दे दिया।और साथ ही उन्हें इतना प्यार भी दिया है। वरना इतने बड़े व्यापार के साथ घर में झगड़े फसाद,तेरा मेरा,चालू हो जाता।परंतु हमारे बच्चों को इतने प्यार से पाला है।उन्हें प्यार करना सिखाया है।त्याग करना सिखाया है।

जब हम कभी एक वक्त था।दो आम लेते थे।पर वह दो आम भी बहुत ज्यादा हो जाते थे।हम दो और हमारे दो बच्चों में वह भी खाना भारी हो जाता था।हर एक सोचता था कि “मैं ना खाऊं,वह खा ले”  

एक बार जब वह(मैं ) बीमार हो गई।मेरे दोस्त ने खाना भेजा।उस टिफिन में चार रोटी थी।पर वह चार रोटी भी हम चारों में ज्यादा हो गई। क्योंकि सब यही कह रहे थे “मैं नहीं खा सकता,मेरा पेट भर गया” 

मेरा परिवार इतना प्यारा है।बच्चे तो बच्चे उनके बच्चे भी बहुत ध्यान रखते हैं। जान छिड़कते हैं। जिसका परिवार इतना प्यारा है।वह कितना ताकतवर होगा।आप सोच सकते हैं।

यह सब बातें एक कहानी की तरह लग रही है।हम दोनों ने जब साथ व्यापार किया।तो कभी सोचा नहीं कि यह मेरा पैसा है।यह तेरा पैसा है।सब कुछ हम सबका है।वैसे ही ख्यालात बच्चों के भी हैं,वो भी ऐसा ही सोचते हैं।  

आज भी हमारी बातें कभी खत्म नहीं होती। कितनी बातें अपने बचपन से लेकर आज तक के जीवन की उन्होंने मुझे बताई।आज मुझे वह पिक्चर याद आ रही हैं। जिसमें नायिका हीरो से कहती है। “आप अपने बारे में सब कुछ बता दो पर मैं बोर नहीं होती हूँ “पिक्चर का नाम है। मैंने प्यार किया   

आज उन्होंने यह सब बताते हुए एक अपनी दोस्ती की कहानी भी बताई।जब 1977 में उन्हें टाइफाइड हो गया।तब वह पूरे दिन घर में आराम करते थे।परंतु अपने दोस्त सुनील सैनी को एक पल भी नहीं भूलते थे।उस समय मां तो थी।वह पूरा ध्यान भी रखती थी।पर मेरे मन को तो मेरा दोस्त चाहिए था।मैं कहता रहता था।कि उसको बुला दो। जैसे ही वह आता चेहरे पर एक खुशी की लहर आ जाती थी।

आज मैं अपने जीवनसाथी को दोस्त मानता हूं।अगर रसोई में होती है।या कंप्यूटर में अपनी कविताएं लिख रही होती है।और मैं चाहता।कि वह बस मेरे पास ही रहे।वह जिधर भी दिखती हैं।ऐसा लगता है।वह कहीं भी ना जाएं।बस मेरे पास बैठी रहें।

सब कहते हैं कोविड के मरीज से दूर रहो।उसे अलग कमरे में रखो।पर वह पूरे समय मेरे साथ होती हैं।

कहती हैं इतने दिन से तो साथ ही रह रहे हैं। अब इसका कोई फायदा नहीं है। मैँ तुम्हें ऐसे नहीं छोड़ सकती हूँ। अगर मुझे होना होता तो अब तक हो जाता।तुम चिंता मत करो मुझे कुछ नहीं होगा”

उस को कोविड छू भी नहीं सकता।क्योंकि उसे भगवान पर बहुत भरोसा है।उसने बताया कि मैंने अपना पूरा परिवार भगवान को सौंप दिया है।वही उनकी रक्षा करेंगे। 

ज़िंदगी की कहानी तो बहुत बड़ी है। पर सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ की यदि आपके पास आपका परिवार है, और वह सब इतना प्यार करते हों तो कोरोना क्या आप को दर्द छू भी नहीं सकता। सब कुछ जल्दी ही ठीक हो जाएगा।


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