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किसान और उनकी टेक्टर रैली


यह लेख मैंने 25 जनवरी को लिखा था उस दिन में बहुत आहत थी।

यह सोच कर की यह हमारे देश में हो क्या रहा है।

किसानों को कौन बहका रहा है।

जो वह करने जा रहे थे। वह बहुत गलत था।

मेरे देश का किसान,

लहलहाती फसल में खड़ा हुआ।

सबसे ज्यादा मेहनतकश है,

पर अपनी जिद पर अड़ा हुआ।


हाथ मिट्टी में सने रहते,

पैर जमीन में धंस जाते।

कंधे पर गमछा पड़ा हुआ,

पर देश को ना समझ पाते।

चेहरे पर पसीना टपक रहा,

धूप भी चेहरा जलाती है।

बारिश भी भिगो देती तन को,

सर्दी में भी ठिठुर जाता है।

बखूबी से मेहनत करता,

फसल को अपनी बचाने को।

पर ट्रैक्टर रैली पर अड़ा हुआ,

देश की आन मिटाने को।

ना माने कृषि मंत्री की,

सुप्रीम कोर्ट की भी ना सुनी।

सब मिन्नत करके हार गए,

प्रधानमंत्री की भी न सुनी।

सारे कानून धता बता दिए,

लोकतंत्र के नाम पर।

यह कैसी आजादी चाहिए,

किसान आंदोलन के काम पर।

ट्रैक्टर रैली निकालने को,

26 जनवरी को क्यों चुना।

देश का पर्व शांति से मना लो,

यह संकल्प इस दिन क्यों चुना।

यह देश हमारा सबका है,

क्या यही देश की कहानी है।

इस देश में है क्या कर रहे हो,

यह कैसी तुमने ठानी है।

पार्टी आती-जाती रहेंगी,

देश तो रहेगा वैसा ही।

क्यों नहीं समझते हो तुम,

कोई फायदा नहीं ऐसा ही।

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