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कीमत जीवन की,


क्या आप जानते हैं?

क्या कीमत है आपकी इस अनमोल जीवन की?


लाओत्से कहते हैं।जीवन को मूल्य दो।जीवन की कीमत समझो।


हमें भगवान का शुक्रगुजार होना चाहिए कि हम अभी जीवित हैं।कोई भी चीज संसार में इससे ज्यादा कीमती नहीं है। मूल्यवान तो केवल हमारा जीवन ही है।


परंतु क्या आप जानते हैं कि अधिकतर लोग इस मूल्यवान जीवन को गवॉने के लिए ऐसा लगता है। जैसे हर वक्त तैयार ही बैठे रहते हैं।


किसी ने गाली दे दी, किसी ने हमारा नुकसान कर दिया, किसी ने हमारी गाड़ी को जरा सा टच कर दिया।

और हम चल पड़े उसके लिए जान रहे या ना रहे। मैं इसे सबक सिखा कर ही रहूंगा।


हम एक बार भी यह नहीं सोच सकते।

इस आदमी ने इतना ज्यादा क्या कर दिया?

इसने क्या इतना बड़ा गुनाह कर दिया कि एक गाली, जरा सा टच,और जरा सा नुकसान,इतने से के लिए हम जीवन गवॉने को तैयार हो गए?


और इसी तरह की सोच हम पैसा कमाने में ,अमीर बनने में करते हैं। हम पैसा कमा कर ही रहेंगे। चाहे जान रहे या ना रहे।


एक सेठ रतन लाल के घर में चोर घुस आए। आखिर वे उस कमरे तक पहुंच गए जहां रतन लाल सोए हुए थे।


बंदूक को तानकर वे बोले तुम्हारी अलमारी की चाबी दे दो या अपनी जिंदगी।

रतन लाल जी सोच में पड़ गए। सोचा कि कैसे दे दूं?


यह तो जीवन भर की कमाई है। यह सोचते ही उन्होंने जोर से कहा। चाबी नहीं दूंगा। यह पैसा मैंने बहुत मेहनत से कमाया है। दिन-रात एक करके बनाया है। जिंदगी लेना चाहो तो भले ही ले लो। पर चाबी नहीं दे सकता हूं।


चोर और उसके सभी साथी मन ही मन हंसने लगे। सोचा जब जिंदगी नहीं रहेगी।तो कुछ भी नहीं रहेगा।यह तो कैसा मूर्ख है ?


यह पैसे का क्या करेगा?


फिर हैरान होकर उसने रतन लाल से कहा। थोड़ा और सोच लो कि तुम क्या कह रहे हो?


उसने कहा जिंदगी तो मुझे मुफ्त में मिली है।उसके मिलने में मेरा क्या योगदान है?


परंतु पैसा यह तो मेरे गाड़ी खून पसीने की कमाई है। तुम नहीं जानते इसके लिए मैंने कितने दिन रात, बिना आराम, बिना खाए पिए रहा। बहुत मेहनत की तभी यह पैसा आया है।


और यह मैंने अपने बुढ़ापे के लिए बचा कर रखा है। इसलिए तुम्हें चाबी मैं दे दूंगा, यह तो तुम भूल जाओ। चाबी तो मैं किसी भी कीमत पर नहीं दूंगा।तुम मेरा जीवन चाहे क्यों ना ले लो ?

लेकिन चाबी देना नामुमकिन है।इस कहानी को बताने का मक़सद यह जीवन की असली कीमत हम क्यों नहीं समझना चाहते हैं।


यह कहानी नहीं यह सोच का विषय है कि हम कहां कहां पर अपना जीवन व्यर्थ गवां रहे हैं।


कभी पैसों के लिए, कभी अपनी पोजीशन के लिए, कभी प्रतिष्ठा के लिए, यह सब देखकर, सोचकर, महसूस कर, के तो वास्तव में यही लगता है कि हमने जीवन मुफ्त में ही पाया है।


तभी तो इसकी कीमत हमारे लिए टके सेर भी नहीं।


सोच कर देखो कितनी गहराई है। जो सबसे ज्यादा कीमती बहुमूल्य है। जिससे ज्यादा मूल्यवान कुछ नहीं। उसे गवांने के लिए हम कितनी जल्दी तैयार हो जाते हैं।


अपने प्रिय दोस्तों और हमारे नज़दीकी रिश्तों को भी कभी गुस्से के कारण, कभी जायदाद, और कभी पैसा, इन सब वजह से हम जरा भी सहनशक्ति ना रखते हुए जिंदगी भर के लिए तोड़ देते हैं।


और फिर अकेले ही अपने दुखों से लड़कर जिंदगी से हार जाते हैं।


और उन रिश्तो को खोकर अपनी जिंदगी मुश्किल में डाल लेते हैं। यह वही मनुष्य जन्म है। जिसके लिए देवता भी तरसते हैं।कि एक बार उन्हें भी मनुष्य जन्म मिल जाए।


इतने मूल्यवान जीवन को हम ऐसे फेंक रहे हैं। जैसे वह व्यर्थ हैं।


इस तरह जीवन व्यर्थ करके क्या इकट्ठा होगा। हर व्यक्ति यही कहता है कि उसे फुर्सत नहीं है। परंतु अगर हम अपनी जरूरतों को बढ़ाते जाएंगे तो फुरसत कभी मिलेगी यह भूल जाओ।

हम उन जरूरतों को पूरा करते करते इस दुनिया को अलविदा कह देंगे। अगर जरूरतें सीमित रहेंगीं। तो फुर्सत ही फुर्सत है।तो हमें अगली बार जीवन दाव पर लगाने से पहले यह सोचना होगा।यदि संसार में बहुमूल्य कुछ है तो वह हमारा जीवन ही है। उससे ज्यादा कीमती कुछ नहीं।


अगली बार कोई गाली दे,कोई आपकी गाड़ी को टच कर दे, कोई आपका आर्थिक नुकसान कर दे, तो अपनी जान की परवाह सबसे पहले बाकी सब बाद में।


सुबह होती है, शाम होती है।

जिंदगी यूं ही तमाम होती है।


मरते वक्त पता चलता है कि अरे हम भी जीवित थे।

मौका तो हमें भी मिला था। पर कुछ भी ना कर पाए।

जो बहुमूल्य जीवन मिला था। वैसे ही खो गया।

और हमेशा के लिए अपने दिल और दिमाग में इतना जहर भर लेते हैं। जो हमें बीमार बना देता है।


समझिए यह जीवन बहुत कीमती है। इसे बचाना, इस को खुश रखना, ही आपका सबसे बड़ा धर्म है।


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