
कल मैंने आप लोगों को डर के बारे में बताया था, कि डर से आप कितनी सारी बीमारियों को अनजाने में अनचाहे ही अपने पास बुला लेते हैं। डर, चिंता एवं तनाव यह सब आपस में भाई बहन हैं। और एक दूसरे के पूरक हैं। अगर आप डर रहे हैं तो आपको चिंता और तनाव हो जाना साधारण बात है। और अगर आप चिंता में हैं तो आपको डर और तनाव हो जाएगा।
अपनों को खो देने का डर सबसे ज्यादा खराब है। और कोरोना में जैसे ही हमें यह पता लगता है की हमारे परिवार में अमुक व्यक्ति को कोरोना हो गया है। तभी से हमें उसकी चिंता और डर सताने लगता है। और हम तनाव में आ जाते हैं।
मैं आपको एक उदाहरण देकर समझाती हूं। सिर्फ डर हमको कैसे बीमार करता है कि यह सिर्फ उदाहरण नहीं है। यह मेरी अपनी आपबीती है। सन 2003 जब एक दिन अचानक मैं बहुत बीमार हो गई। मुझे सेंट स्टीफन हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया।
वहां डॉक्टर ने बोला कि मेरा ऑपरेशन करना होगा । 2 दिन से मैं वहां पर हॉस्पिटल में थी । और अचानक मुझे बहुत तेज फीवर हो गया। जब मेरे पति मुझसे मिलने रात 11:00 बजे हॉस्पिटल में आए, अगले दिन मेरा ऑपरेशन होना था। मैंने उनको कहा कि मुझे बहुत तेज फीवर है। और मुझे ठंड भी बहुत लग रही है । पर यह लोग बोल रहे हैं कि मुझे कल ही ऑपरेशन होगा।
मुझे बहुत डर लग रहा है कि कल ऑपरेशन के बाद मैं शायद जिंदा नहीं रहूंगी।
आप मुझे यहां से ले जाइए और मैं रोने लगी। मेरे पति ने मेरी बात को ध्यान से सुना ।
और उन्होंने जाकर डॉक्टर से बात की, कि जब मेरे मरीज को बुखार है तो उसका ऑपरेशन कैसे कर सकते हैं। मुझे अपने मरीज का ऑपरेशन नहीं करवाना। और आप हमें छुट्टी दे दीजिए।

हॉस्पिटल वाले पूरी तैयारी कर चुके थे। ऑपरेशन की उन्होंने दो बोतल ब्लड भी ले लिया था। और भी सारी फॉर्मेलिटी पूरी कर दी थी। उन्होंने कहा कि नहीं ऑपरेशन तो कल ही होगा। पर मेरे पति इस बात पर अड़ गए। और उन्होंने कहा कि मुझे ऑपरेशन नहीं करवाना। और हमको छुट्टी दे दीजिए । बहुत मुश्किल से उन्होंने हमें छुट्टी दी। वह भी यह सब लिख कर कि अगर मरीज को कुछ हो जाता है, तो उसकी जिम्मेदारी मेरे पति की होगी।
हमने जयपुर में अपने फैमिली डॉक्टर से बात की, और उनको सारी स्थिति समझाई। तब उन्होंने हमें मूलचंद हॉस्पिटल ले जाने की सलाह दी। वहां पर उनके एक रिश्तेदार डॉक्टर थी ,उन्होंने मुझे उन्हें दिखाने के लिए कहा। रात को 12:30 बजे मेरे पति मुझे लेकर मूलचंद हॉस्पिटल गए। और वहां पर उन्होंने मुझे एडमिट कराया।
वहाँ डॉक्टर ने मुझे देखा, सारा चेकअप किया। फिर उन्होंने कहा कि अभी हम दो-तीन दिन में उसका बुखार ठीक करेंगे। उसके बाद ऑपरेशन करेंगे। फिर उन्होंने मेरा ऑपरेशन किया। परंतु जैसा पिछले हॉस्पिटल वालों ने बोला था कि आप के मरीज को कुछ भी हो सकता है। यह बात का डर मेरे पति को बैठ गया था।
जैसे ही मूलचंद हॉस्पिटल में डॉक्टरों उनको बुलाते थे। तो एकदम डर जाते थे, कि पता नहीं डॉक्टर क्या कहना चाहते हैं ? उन्होंने क्यों बुलाया है ? बस यह डर उन्हें बहुत ज्यादा परेशान करने लगा। कुछ समय बीता, मैं ठीक हो गई । और वापस घर आ गई। परंतु वह जो डर था उसने उन्हें बहुत ज्यादा बीमार बना दिया।
उनके पेट में हमेशा दर्द रहने लगा। और यह दर्द करीब 3 साल तक रहा। उन 3 सालों में उनका कई बार सब तरह से टेस्टिंग हुई। एवं एंडोस्कोपी हुई। परंतु कहीं पर भी कोई खराबी नहीं थी। हम सब लोग बहुत चिंतित थे।
एक बार मैं डॉक्टर स्वरूप सिंह मरवाह किताब पढ़ रही थी। तब मैंने उस किताब में एक उदाहरण वैसा ही देखा जैसा मेरे पति को हो रहा था। अचानक मुझे सारी समस्या का पता चल गया। हमने प्रकाशक को फोन क्या किया और डॉक्टर साहब का पता एवं फोन नंबर मांगा। उन्होंने हमें उनका फोन नंबर दिया।
वह डॉक्टर स्वरूप सिंह मरवाह अमृतसर में रहते थे। हम उनसे मिलने गए और हमने देखा वह करीब 90 वर्ष के होंगे।उन्होंने आजादी से पहले डॉक्टरी की थी। वह किसी को देखते नहीं थे परंतु हमारी रिक्वेस्ट पर देखने के लिए राजी हुए। उन्होंने पूरा बॉडी चेकअप किया और पूरी केस हिस्ट्री पूछी। सब कुछ सुनने के बाद उन्होंने बताया कि तुम्हें कोई परेशानी नहीं है। तुम्हारे दर्द का पेट से कोई वास्ता नहीं है इसका वास्ता तुम्हारे माइंड से है।
हम बहुत आश्चर्यचकित थे ऐसा कैसे हो सकता है । परंतु वास्तव में यही था जब डॉक्टर साहब को पता लगा कि 2003 में मेरी तबीयत खराब हुई थी और डॉक्टर के बुलाने पर उनके दिमाग पर बहुत गहरा असर हुआ वह बार-बार उनको परेशान करता था । डॉक्टर साहब ने बताया कि यह आपके दिमाग की सीखी हुई प्रक्रिया है। और उस समय की चिंता ने उनके पेट में दर्द रहना शुरू किया था।
डॉक्टर साहब को असली वजह का पता चल गया और उन्होंने कहा कि तुम यह सब भूल जाओ कि तुम्हारे पेट में दर्द है। तुम्हारा जो दिल करता है वह सब खाओ, तुम्हें कुछ नहीं होगा।
पहले जब कुछ भी खाते थे, तो पेट में दर्द शुरू हो जाता था । पर धीरे-धीरे पेट दर्द ठीक हो गया, सिर्फ सोचने से ही ठीक हो गया। क्यों दर्द जो दर्द 3 साल से परेशान कर रहा था वह बिना दवा के ठीक हो गया। क्योंकि वह दर्द डर का था।

यह पूरी बात बताने का मेरा मकसद सिर्फ इतना ही है कि जब हमारा अपना कोई जिससे हम बहुत प्यार करते हैं। वह किसी परेशानी में होता है, बीमार होता है। तो हम अंदर ही अंदर बहुत डर जाते हैं । और चिंतित हो जाते हैं। और हमारा दिमाग पता नहीं क्या क्या ताने-बाने बुनकर उस बीमारी को और बढ़ा देता है।
इस समय जो कोरोना चल रहा है। उसकी भी यही परेशानी है कि जिस भी घर में वह होता है। उस घर के लोग बहुत ज्यादा डर जाते हैं। और चिंता करने लगते हैं। इसी वजह से पूरा घर इस मुसीबत में आ जाता है। और कुछ लोगों पर इसका बहुत गहरा तक पड़ जाता है ।
तो मैं आपको सिर्फ इतना ही बताना चाहती हूं कि जो हमारे प्रियजन होते हैं । अगर वह किसी भी बीमारी से परेशान है। तो हमें उनके इलाज पर ध्यान देना चाहिए ना कि उनके बारे में सोच सोच कर डरना चाहिए । और कुछ लोग जो ज्यादा चिंता करते हैं उनसे मेरा यह अनुरोध है की हर बीमारी का इलाज होता है।और यह कोई लाइलाज बीमारी नहीं इससे 99% लोग ठीक हो हो रहे हैं
इसलिए डरने की कोई बात नहीं है।कोरोना से डरें नहीं मुकाबला कीजिए। सिर्फ इतना सा डर की, डॉक्टर ने बुलाया है । वह इतना बीमार बना सकता है ।तो अगर आप बीमारी से डरेंगे तो सोचिए क्या होगा । डर का मुकाबला हम अपने सोच से कर सकते हैं ।