अपडेट करने की तारीख: 24 जन॰ 2022

क्या खोया क्या पाया
खोया पाया तूने है क्या?
अब तू काहे गिनती करें?
जीना था जब जिया नहीं,
अब जीने की विनती करे।
जब भी खोने और पाने की बात करते हैं तो मुझे संतोष आनंद जी का वह गाना बरबस ही याद आ जाता है
कुछ पाकर खोना है,
कुछ खोकर पाना है।
जीवन का मतलब तो,
आना और जाना है।
दो पल के जीवन से,
एक उम्र चुरानी है।
जिंदगी और कुछ भी नहीं,
तेरी मेरी कहानी है।
हमेशा जिंदगी में क्या-क्या खोया है?और क्या-क्या पाया है?
इसे ही गिनते रहते हैं। चाहे वह पैसा हो,चाहे रिश्ते, चाहे व्यापार, या व्यवहार, सबके साथ एक ही चीज काम करती है।
इसमें मेरा क्या फायदा यानी मुझे क्या मिलेगा?
या मैं क्या खोऊंगा।
हर वक्त बस वही खोने और पाने की जद्दोजहद करते हैं।

क्या हमें यह जिंदगी इसी बात के लिए मिली है कि हम अपने खोने पाने की गिनती करें ?
क्या सिर्फ और सिर्फ जोड़ और बाकी ही है? गुणा भाग की कोई भूमिका नहीं।
अगर हम अपने अच्छे रिश्तो को गुणा करते रहे। बनाकर रखें। तो हम रिश्ते में सबसे अमीर होंगे। क्योंकि जिस से भी जुड़ेंगे पूरे दिल से जुड़ेंगे। दिल की नजदीकियों से जुड़ेंगे।
और यह जो खोने और पाने की चिंता जो हर वक्त हमारे साथ रहती है।
उसके चक्कर में ना हम खुशी से जी सकते हैं। और ना चैन से रह सकते हैं।
जब से होश संभालते हैं। और तब से अब तक जो भी कमाया या जो भी पाया जमीन, जायदाद, रुपया, पैसा, सोना, चांदी, हीरा, मोती, जो भी इतनी मेहनत से बनाया। उसे खोने का डर हर वक्त लगा रहता है।
जिसे कमाने में पूरी जिंदगी लगा दी। वह डर आंखों में हमेशा दिखता है कि वह सब कहीं खो ना जाए।
पर जिंदगी भर जिस को खोने से डरते रहे हैं क्या साथ लेकर जा पाए। नहीं ना।
हम सब यही छोड़कर जा रहे हैं। जिसे पाने में कितने कष्ट सहे, कितने धोखे दिए, कितनों का दिल दुखाया, पर वह तो यही रह जाएगा।
ईश्वर ने एक साँस वापस लेकर सब वही छुड़वा दिया। वह डर भी ले लिया जिसमें खोने और पाने की लालसा थी। चिंता थी। काश यह पता तो था कि छोड़ कर जाना है पर सोचा ही नहीं।
भगवान कृष्ण ने खोने और पाने का संदेश गीता में जो कहा है। वह लाजवाब है क्यों व्यर्थ चिंता करते हो?
खाली हाथ आए थे ।खाली हाथ जाना है।
जो कमाया था, यहीं से कमाया था। और यही छोड़कर जाओगे।
ना कुछ साथ लेकर आए थे, ना कुछ साथ लेकर जाओगे।
फिर यह डर यह चिंता क्यों ?
हमारी पूरी जिंदगी का संबंध खोने और पाने से जुड़ा है ।
ऐसा हम सोचते हैं कि क्या आपने सोचा यह कितना ठीक है ?
आज हमारे पास बहुत पैसा है, जायदाद है, पर यही सब जो हमने पाया था। वह हमारे बच्चे यूं ही बर्बाद करने लग जाए ।तो हम क्या कहेंगे?
इससे तो अच्छा होता, हमने कुछ पाया ही नहीं होता। हमारे पास कुछ भी नहीं होता। और हमने वह भी खो दिया तो हम क्या कहेंगे ?
अच्छा है जो हमने खो दिया ।अबे क्या खराब करेंगे? अब उन्हें उसकी कीमत पता चलेगी?
हमारी जिंदगी का संबंध खोने पाने से तो है। पर कई बार हम जैसे कुछ पाकर खुश होते हैं। वैसे ही कई बार कुछ खो कर भी खुश हो जाते हैं।
मान लीजिए जब बच्चे पैदा हुए तब हम उन्हें पाकर धन्य हो गए। हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
धीरे-धीरे बड़े हुए, पढ़े, लिखे, और हमारा व्यवसाय संभालने की जगह हमसे दूर विदेश में चले गए।
नौकरी करने। अब क्या ?अब हमें क्या लगता है?
जिन बच्चों को पाकर हम इतने खुश थे। वह हमें ऐसे ही छोड़ कर चले गए।
तो हमें दुख है।हमारे व्यापार उसे संभालने वाला कोई नहीं। अब हम वृद्ध हो गए हैं।
तो अब तो यह सोचेंगे ना।
क्या हमने पाया था?
और बच्चे जब विदेश चले गए तो लगता है। सब खो दिया ।
प्यार, सुकून का अहसास, उनकी नजदीकियां, यह खो दिया।
क्योंकि एक बार जो विदेश चला गया। कभी लौट कर वापस हमेशा के लिए नहीं आते। वही के हो जाते हैं। तो जो पाया था। वह हमैंने खो दिया ।
इसी पर मैंने कुछ और लिखा है।
जाने इस जिंदगी का क्या इरादा है? पाते हैं बहुत कम,
पर खोते ज्यादा है।
खुशियों के पल हो,
या गम हर पल।
जख्म बहुत ज्यादा है,
पर थोड़ी है मरहम ।
कैसे जाने इन सब को,
फर्क बड़ा सा है।
इस जिंदगी का क्या इरादा है?
पाते तो बहुत कम मगर,
खोते ज्यादा है।
यूं तो खोना पाना भी,
एक दवा सा है।
हर घड़ी कभी बहुत कम,
कभी ज्यादा सा है।
समझते थे जिंदगी,
जिस हमसफर को सब।
खो देते घमंड में ,
यही पाकर खोना है।
जाने इस जिंदगी का,
क्या इरादा है।
पाते हैं बहुत कम,
खोते ज्यादा है।
यह भी खोना और पाना ही है।
खोया पाया तूने है क्या?
अब तू काहे गिनती करें?
जीना था जब जिया नहीं,
अब जीने की विनती करे।