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क्या वास्तव में मैं ठीक हूं?

अपडेट करने की तारीख: 24 जन॰ 2022


अभी कुछ दिन पहले मैंने लेख लिखा था।

मैं ठीक हूं ।

और मैंने दूसरा लेख लिखा था।

मैं ठीक नहीं हूं।

यह सभी लोगों ने सराहा,उसके लिए मैं आप सबकी आभारी हूं। आपने हर बार मुझे बहूत सपोर्ट किया है। उसे मैं बहुत सराहती हूं। यह मेरे लिए गर्व की बात है ।

बहुत से लोगों ने कहा मैं ठीक हूं। हमें हमेशा यही कहना चाहिए ।चाहे हम कैसे भी हो ?

चाहे दर्द में कराह रहे हों।

चाहे हमारा मन और दिमाग सब के अंदर उथल-पुथल चल रही हो।

पर कहना हमें यही चाहिए कि मैं ठीक हूं।

बहुत से लोग यह सोचते ही रहते हैं कि काश कोई आए और मुझसे पूछे क्या मैं ठीक हूं ?

परंतु कोई क्यों पूछेगा?

किसी के पास वक्त ही नहीं है कि दो मिनट ही सही रुक कर पूछे कि तुम्हारा क्या हाल है?

पर लोग डरते हैं कि अगर जरा भी ज्यादा पूछ लिया तो पता नहीं कितनी कहानियां सुननी पड़ेगी।

सारा वक्त बर्बाद हो जाएगा।

शायद यही सोचकर सब बस यही कहते हैं कि आप ठीक हैं सब से यही कहें कि हां मैं ठीक हूं।

यही कहकर अपनी बात खत्म कर ले।

पर क्या मैं वास्तव में ठीक हूं ?

आजकल यह एक समस्या का रूप ले रहा है। किसी के पास वक्त नहीं जो आपसे आकर पूछेगा कि आप कैसे हैं ?

मैं क्या कहूं?

यही मेरे लिए सोचने का विषय है। चलो हम बात करते हैं परिवारों की।

बहुत कम परिवार में सभी लोग परिवार के शायद ही साथ बैठते हैं।

अधिकतर लोग आजकल इसी परेशानी से सबसे ज्यादा दुखी हैं क्योंकि बाहर वालों की बात तो अलग है। घर वाले भी भूले से नहीं पूछते कि क्या आप ठीक हैं?

अगर वह इस बात का ध्यान रखते हैं तो यह घर वालों का

भावनात्मक सपोर्ट है। पर इस सपोर्ट का घर वालों का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है।

अब क्या करें?

कैसे कहूं कि मैं ठीक हूं?

क्या आप जानते हैं?

परिवार वालों के साथ साथ जरूर कुछ वक्त बिताना चाहिए। बेटे, बहू ,बेटियां, पोते ,पोती सभी के साथ समय व्यतीत करना चाहिए।

इससे भावनाएं मजबूत होती हैं। अंदर से व्यक्ति खुद को बहुत मजबूत समझता है। परंतु अफसोस कि घर में किसी के पास समय ही नहीं।

एक तो काम की अधिकता है। दूसरा टीवी और मोबाइल का एडिक्शन जरा भी वक्त अपनों के लिए नहीं निकालने देता।

काम के अलावा जितना वक्त परिवार वालों को मिलता है। वह या तो टीवी ले लेता है। या फिर फोन में चला जाता है।

1.जब तक आप अपने अंदर का प्यार अपने परिवार के साथ नहीं बांटोगे तो कैसे समझोगे कि आप ठीक हो?

2.जब तक आप अपने दुख दर्द को उन्हें नहीं बताओगे। जिनके पास सुनने के लिए वक्त ही नहीं है।तो कैसे बताओगे कि आप ठीक हो?

जैसा हाल परिवार का होता है।वैसे ही रिश्तो का भी उनके पास भी वक्त नहीं है।

और अगर आपने गलती से अपने रिश्तेदारों को यह बताना शुरू कर दिया कि आप ठीक क्यों नहीं है?

तो बस अगर वह कभी बात करते थे तो भी करना कम कर देंगे। यह सोच कर कि आपकी व्यथाएँ और परेशानियां इतनी है कि कितनी सुनेंगे?

वह अपने समय की बर्बादी समझते हैं। आपसे बात करके सोचते हैं कितना वक्त खराब हो गया?

तो क्या करें कैसे कहूं कि मैं वास्तव में ठीक नहीं हूं?

या किससे कहूं कि मैं ठीक नहीं हूं?

क्योंकि इस संसार में हमें नहीं लगता कि शायद ही कोई है। जो हमारे इस दुख में या कठिनाई भरे वक्त में यह सुनना चाहता है कि हम ठीक नहीं हैं?

सब यही चाहते हैं कि आप हरदम यही कहें कि आप ठीक हैं।

किसी को नहीं पड़ी कि आपके अंदर क्या चल रहा है ?

पता है लोग आपस में एक दूसरे को बता देते हैं कि तुम गलती से भी मत पूछ लेना क्या हाल है?

वरना उनके स्यापे रुकने का नाम ही नहीं लेंगे। और तुम ही सुनते सुनते पक जाओगे।कितनी परेशानियां बता देते हैं।जैसे सब उनके ही नसीब में लिखी है।हम तो कई बार भुगत चुके।इसलिए आपको बता रहे हैं।

अब क्या करें?

यह मैं तुम्हारे ऊपर ही छोड़ देती हूं। इसका हल आप स्वयं देखें।

क्या आप वास्तव में ठीक हैं?

क्या करें कि आप अपने को वास्तव में ठीक महसूस करें?

क्या उसका कोई तरीका है?

जिससे आप वास्तव में ठीक हो जाएं।

हम अपने को ठीक कैसे करें?

यह प्रश्न जितना सरल दिखता है। उतना सरल नहीं है ।हम अपने को कैसे ठीक करें?

1.हमें यदि यह महसूस हो कि हम ठीक नहीं है।तो हम सबसे पहले सहज होंना सीखेंगे।

चाहे कुछ भी हो जाए। हम उतावले और क्रोधित नहीं होगे।और शांत रहकर सहज होंगे।

2.अगर हम बीमार हैं ।तो डॉक्टर से संपर्क करेंगे।और अपना इलाज करवाएंगे।

और घर के लोगों को बता कर उनसे सहायता लेने और ठीक होने की कोशिश करेंगे।

3.कुछ भी हो जाए हम किसी भी उम्र में हो।कुछ दोस्त अवश्य बनाकर रखेंगे। जिनके साथ हँस बोलकर हम अपनी तनहाइयों को कम कर सकेंगे। कुछ पल आनंद के बिता सकेंगे। अपने को मन से बीमार होने से बचाएंगे।और भावनात्मक शक्ति प्राप्त कर सकेंगे।

4.कुछ समय हम किताबों को पढ़ने में बिताएंगे। जो हमारी सबसे अच्छी दोस्त हैं। और हमें ठीक रखने में हमारी मददगार भी हैं। वह हमें सब तरीके बता सकती हैं कि हम अपने को ठीक कैसे रखें ?

5.कुछ समय अपने बच्चों और पोते पोती को कहानी सुना कर, उनके नजदीक रहकर, उनकी सुनकर, हम खुश रह लेंगे।

ठीक रहने का यह भी उपाय है।उनकी बातें 80% प्रभावी होती है। ठीक कर देती हैं।

क्या अब आपको एहसास हो रहा है।अब हम ठीक है।वास्तव में ठीक हैं



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