अपडेट करने की तारीख: 20 जन॰ 2022

आज मैं आपको एक घटना बताती हूँ।
हम लोग हमेशा यही सोचते हैं कि क्या हुआ यह पक्षी ही तो है या यह एक
कीड़ा ही तो है पर ऐसा नहीं है भगवान ने उन सब को भी बहुत कुछ दिया है।
बस इतना ही अंतर है कि हम सोच सकते हैं और वह सोच नहीं सकते।
मैं आपको कौवे की घटना सुना रही हूं।
दिल्ली में जहां पहले रहते थे वहाँ एक व्यक्ति रहता था। वह रोजाना अपनी
छत पर कौवों को चावल डालता था। रोज तो वह आते थे, और चावल खा कर चले जाते थे।
यह उसका रोज का नियम था। एक बार वह बीमार हुआ, और उसका देहांत हो गया। जब उसको शमशान घाट ले
जाने की तैयारी हो रही थी।
तब हजारों की संख्या में कौवे वहां उसकी छत पर आ गए। और जब उसको ले जा रहे थे, तब वह उसके साथ साथ
ऊपर आकाश में उड़ते रहे।
ऐसा लग रहा था ,जैसे पूरा आकाश कौवों से भर गया।
पता नही कहाँ से इतने सारे कौवे आ गए।
श्मशान घाट तक यह सब क्या था ?
क्या यह उनका प्यार था?
क्या यह उनका दुख व्यक्त करने का तरीका था?
सब बहुत दुखी थे। उनके पास अपने दुख को व्यक्त करने का कोई साधन नहीं था। वह हमारी तरह रो नहीं सकते।वे बस वैसे ही चिल्ला सकते हैं।
वे भी प्यार को उतना ही समझते हैं, जितना हम समझते हैं।
एक प्यार की भाषा ही ऐसी है, जिसको हर पशु पक्षी कीड़ा मकोड़ा इंसान हर कोई समझता है।
उससे हम किसी को भी जीत सकते हैं। यह है सिर्फ दिल का रिश्ता है। जो संसार में जितने भी जीव रह रहे हैं। वह सब समझते है।
*एक कौआ*
एक कौवा मेरे सामने वाले,
बाग में उड़ नहीं पा रहा था।
पंख घायल थे उसके,
वह दुखी नजर आ रहा था।
एक दिन मैंने देखा,
वह बैठा था जमीन पर,
ढूंढ रहा था खाना पानी,
वहीं बैठा रहा जमीन पर।
रोज ऐसा ही होता रहा,
रोज वह वहीं बैठा रहा।
देखते देखते कितने दिन बीते.
वह पर वही मिलता रहा।
एक दिन जब एक डिब्बे में ,
पानी हमने रखा वहीं।
देखा पानी पी रहा था,
उसको ना थी फिक्र कहीं।
कितना प्यारा, कितना व्याकुल,
वह पक्षी ही था।
एक कौआ मेरे सामने वाले ,
बाग में उड़ नहीं पा रहा था।
फिर हमने जब ब्रेड भी दी,
और पानी भी भर डाला।
देखा मैंने उसने हमसे,
एक रिश्ता बना डाला।
अभी वह रोज मिलता है,
मुझे सामने गार्डन में,
इंतजार करता रहता,
हम कब आएंगे गार्डन में।
बहुत दुख होता है,
उसे देखकर इस तरह।
पानी पीकर ,और कुछ खा कर,
खुश हो जाता है।
बहुत चाहते कुछ कर सके,
पर नहीं कर पा रहे।
कौआ तो बहुत प्यारा है,
हम सहायता न कर पा रहे।
क्या करूं उस कौवे का पंख,
ठीक नहीं हो पा रहा है।
क्योंकि वह टूट गए हैं,
इसलिए वह उठ नहीं पा रहा है।
एक कौवा मेरे सामने वाले बाग में,
उड़ नहीं पा रहा था।
पंख घायल थे ,
उसके बहुत दुखी नजर आ रहा था।
यह घटना दिल्ली की थी।में जब दोबारा दिल्ली गयी।मैंने उसे बहुत ढूंढा।पर वह नहीं मिला।शायद उसने अपने प्राण त्याग दिए हों।
में उसको वहाँ ना पाकर बहुत दुखी थी।क्योंकि उसने मुझसे एक रिश्ता जो बना लिया था।
बात सिर्फ इतनी सी है।कि कोई इंसान इस बात को कभी नहीं समझता।वह कभी किसी का एहसान नहीं मानता ।बहुत जल्दी भूल जाता है।
आप किसी के लिए भी कुछ कर के देख लो।आप उसको ही अपना उपकार समझ लेना कि उसने आपको अगर कुछ नहीं कहा।
*नेकी कर दरिया में डाल*
किसी ने सही कहा है।
*नेकी कर जूते खा।
मैने खाये हैं,तू भी खा।*
बस इतना ही फर्क है इंसान में और बाकी पूरी सृष्टि में। में यह नहीं कहती कि सब ऐसे ही होते हैं।परंतु अधिकतर ऐसे ही मिलेंगे।यह हकीकत है।