top of page

खुशी का पता



जब भी देखती हूं ।

तो सोचती हूं कि वह खुशी कब मिलेगी ?

क्या उसका कोई पता है,किसी को ?

क्या उसका कोई ठौर ठिकाना है।

जब से होश संभाला मैंने ,

खुशी को ढूंढते,खुद को खोया मैंने ।

कौन सी जगह जहां ना ढूंढा,

घर ,मंदिर, महलों में ढूंढा।

पर ना मिली, शायद वो खफा है।

जोर ना किसी का किस पर खफा है।

सोचा बड़ा ऑर्डर में मिलेगी,

आर्डर पूरा होने पर मिलेगी ।

बड़ा घर लूंगी ,तब वह मिलेगी।

मनचाहा खाने पर शायद मिलेगी।

करोड़पति भी ढूंढ रहे हैं ,

वह भी सब से पूछ रहे हैं ।

किसी ने देखा खुशी को,

वह कहां मिलेगी।

मैं तो गुमसुम दूर खड़ी थी,

सोच विचार कर चुपचाप खड़ी थी।

मैंने तो गमों को देखा था,

बिन बुलाए आते देखा था।

सुबह शाम हर वक्त देखा था।

तो क्या जाकर पुलिस से पूछुं।

यही सोचकर रपट लिखाई ,

खुशी खो गई ,ढूंढो भाई ।

पर यह तरकीब भी फुस्स हो गई।

पुलिस की भी हवा निकल गई।

वह भी खुशी को ढूंढते फिरते,

कोशिश पर कोशिश वह करते।

थक गई हूं ढूंढते ढूंढते,

हार गया दिल पूछते पूछते।

एक दिन यूं ही खाली बैठे।

सोच रही थी व्यथित हो बैठी ।

अचानक एक खयाल जब आया ,

चेहरा मंद मंद मुस्काया।

दिल में एक हिलोर सी आई,

दबे पांव यह खुशी ही आई।

मैं नादान पहचान न पायी।

यह तो कई बार घर आई,

जब मैं भागी तितली के पीछे।

जब मैंने फूल बगीचे में देखें ,

जब मैं प्यार से भरी हुई थी।

मां बनने के सुख में खुश थी।

जब बच्चे ने मम्मी बोला।

जब वह हंसा तुतला कर बोला।

कैसे पीछे पीछे भागा,


मुझे पकड़ कर चुप कर भागा।

हर वक्त तो मेरे साथ ही थी।

जिस खुशी की मुझे तलाश थी।

ना पैसों में ,ना बड़े घर में,

वह तो रहती है, हमारे सुंदर मन में ।

मृगतृष्णा सी भगाती रहती ,

बाहर भगा के अंदर रहती।

यह कैसी तुम्हारी माया,

खुशी को पाना, किसी ने ना सिखाया।

खुशी का समझदारी से बैर है।

खुशी समझदारी से दूर है,

वह रहती है सहजता में ,

वह दिखती निश्चलता में।

वह मां की ममता में रहती,

वह बच्चों की मुस्कुराहट में रहती।

वह कोमल मन, साफ दिलों में रहती।

दूर है वक्त पर बदलने वालों से,

दूर है ज्यादा समझदारी से।

एहसास है जिंदगी का,

खुशी खजाना जिंदगी का।


आओ उस एहसास को जगाए ,

जैसे हैं, जहां है, मिलकर खुशी मनाएं।


32 दृश्य0 टिप्पणी

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
bottom of page