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खुशी का बाजार

क्या कोई ऐसा बाजार है,

ख़ुशियों से सरोबार है।

कहता कोई मुझे सुख खरीदना।

पूछता बदले में क्या कुछ देना।

मिलता क्या उसे ऐसा बाजार है,

ना कुछ देना ना कुछ लेना।

सुख चाहिए, सुख ले लेना।

बिना पैसे धेले के ले लेना।

सच्चा प्यार भी क्या मिलता है?

बदले में क्या देना पड़ता है?

बस प्यार के बदले प्यार दे दो,

और जितना चाहिए, लेकर दे दो।

अगर मुझे खुशी खरीदनी है,

उसका भी यही फ़ॉर्मूला है।

खुशी के बदले खुशी दे दो,

जितनी चाहिए, लेकर दे दो।

क्या बाजार में जाकर?

देख कर और मुस्कुरा कर।

क्या कोई किसी दुकान पर?

खुशी और सुख को पहचान कर।

कहता है मुझे थोड़ा सुख, थोड़ी खुशी,

थोड़ा प्यार, थोड़ी शांति,

थोड़ा उत्साह, थोड़ा अपनापन,

और फिर सुंदर जीवन,

बेचना भी है, खरीदना भी है।

तभी तो मिलेगा,

क्योंकि हम जो देंगे?

हमें वही मिलेगा।

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