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चरणदास प्रभु के चरणों में


चरण दास का जीवन बहुत कठिन था।

माता-पिता ने जैसे तैसे करके उन्हें पढ़ाया।वह घर के बड़े बेटे थे।उनके दो भाई और एक बहन थी।

माता पिता पर परिवार का बहुत ज्यादा भार था।वह सब को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाना चाहते थे।और उन्होंने कोशिश करके सब को इस काबिल बना भी दिया।जिससे वह अपना घर चला सके।


परिवार में बहुत ज्यादा प्यार था।बहन की भी शादी हो गई।वह भी अच्छे घर में चली गई।


कुछ वक्त बीतने के बाद माता-पिता अपनी जिम्मेदारी पूरी करके परलोक सिधार गए।


चरणदास जी के परिवार में दो बेटे और एक बेटी थी।परिवार बहुत प्यारा था।सब एक दूसरे के प्रति श्रद्धा और प्रेम रखते थे। दोनों बेटों की शादी हो गई। दोनों विदेश में थे।उनके भी एक को बेटा था। दूसरे को बेटी थी।


चरण दास जी की बेटी भोपाल में ब्याही थी।बातचीत तो सबसे फोन पर ही होती थी।पर सब 2 साल में एक बार आपस में मिलते थे।माता-पिता के साथ रहते थे।


यह करीब 15 दिन का होता था।और घर पर रौनक रहती थी। शोर से पूरा घर गूंजता रहता था।सब मिलजुल कर खाते, पीते, धूम मचाते थे।


पता ही नहीं चलता था। इतनी जल्दी दिन कैसे हवा हो जाते थे।वैसे भी खुशियों के दिन जल्दी बीत जाते हैं।गम की तो एक रात भी भारी होती है।


चरण दास सरकारी नौकरी में थे।वेअच्छे पद पर कार्यरत थे।कुछ समय बाद ही रिटायर हो गये।


अभी पूरा वक्त घर पर ही रहते थे।सर्विस में तो ऐसा ही होता है|निश्चित उम्र के बाद कह देते हैं।


तुम्हें सब कार्यों से मुक्त किया जा रहा है।

आज तुम्हें इस ऑफिस से सेवानिवृत्त किया जा रहा है।

जिंदगी अच्छी बीत रही थी। पति पत्नी में बहुत प्यार था।दोनों अपनी जिंदगी बहुत ही आराम से बिता रहे थे।


चरणदास जी एक बहुत ही सज्जन पुरुष थे।सबके सुख दुख का ध्यान करने वाले,हर एक की परेशानी में साथ देने वाले थे। संपन्न परिवार से थे।पैसों की कोई कमी नहीं थी।


घर परिवार सुख सुविधा से भरा था।चरण दास जी हमेशा अपनी पत्नी से कहते थे।मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं।हमेशा तुम्हारा ध्यान रखूंगा।तुम चिंता मत किया करो।


एक दिन अचानक चरणदास को कुछ बेचैनी महसूस हुई।उन्होंने अपनी पत्नी से कहा मुझे बहुत घबराहट हो रही है।वे बहुत परेशान थे।बैचेनी सही नहीं जा रही थी।


बस सिर्फ इतना ही कह पाए।और चरणदास इस संसार से अलविदा कहकर भगवान के चरणों में पहुंच गए।


पत्नी तो देखती ही रह गई।यह क्या हो गया?वह स्तब्ध थी,शांत थी,उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।


यह सब क्या है? ऐसे भी कोई जाता है।बिना कुछ बोले, बिना कुछ बताएं, क्या मौत ऐसे ही होती है?


वैसे ही चुपके से निकल लेती है।मैं तो यह जानती थी।जब कोई मरता है।तो पहले यमराज अपने आदमी भेजते हैं। जाओ उसे लेकर आओ।पर यहां तो कोई नहीं आया।


क्या यमराज ने डायरेक्ट बुला लिया?

कोई दिल की बात ना कह सके, ना सुन सके,और देखो वह कैसे उसके हाथ से रेत की तरह भी फिसल गए?

रोक भी नहीं सकी।ऐसे ही कैसे जा सकते हो? तुम मुझे अकेला छोड़कर,यह तुमने कैसा साथ निभाया?जो मुझे ऐसे ही छोड़ कर जा रहे हो।ना किसी से दिल की कोई बात कही,ना सुनी। बिना कुछ बताए चले गए। अब क्या करें?


घर में दोनों ही थे। फिर उसने हिम्मत की। पास पड़ोस के लोगों को बुलाया। और फिर बेटा और बेटी को फोन किया।दो बेटे थे।दोनों वैसे तो पिता से बहुत प्रेम करते थे। और उनका ध्यान भी रखते थे।अचानक उनकी मृत्यु की खबर सुनकर दोनों स्तब्ध हो गए। परिवार पर जैसे मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा हो।


उनके पार्थिव शरीर को आइस बॉक्स में रखा गया क्योंकि बच्चे बाहर थे। उन्हें आने में वक्त लग रहा था।लोग आ रहे थे।घर में भागदौड़ चल रही थी। फोन की लिस्ट निकाली जा रही थी। घर के बुजुर्गों को बुलाने के लिए कहा जा रहा था।


तभी पता चला कि दोनों बेटे और बेटी भी आ पहुंचे हैं।घर का माहौल और गमगीन था।बच्चे बहुत परेशान थे। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? बच्चों को कोई ज्ञान नहीं था क्या करना है?कैसे करना है?


फिर उन्होंने घर के बुजुर्गों से पूछा।और उनको कहा की बे सब तैयारी करें।क्योंकि बुजुर्ग ही जानते थे किस तरह अर्थी बनेगी? कैसे लिटाया जाएगा? कौन-कौन कंधा देगा? क्या क्या सामग्री आएगी?


पंडित जी को बुलाया गया।बॉडी को कंधे पर लेकर जाएंगे।या एंबुलेंस से ले जाया जाएगा। इन सब बातों पर चर्चा हो रही थी। हर तरफ इसी प्रकार की बातों का शोर था।फूल कितने लाए। या सिर्फ एक माला ही काफी है।या पूरी अर्थी फूलों से सजाई जाए।


क्या किया जाए जितने मुंह उतनी बातें।


जब चरणदास जी अचानक चले गए तो घर के लोग बिना खाए ही रह गये। कोई भी कुछ नहीं खा पाया।घर वाले भी परेशान थे क्या करें?


शरीर में दम नहीं।शरीर चलने को मना कर रहा है।पर खाए कैसे?


किसी ने कहा घर में तो कुछ बनेगा नहीं।अभी बाहर से कोई बना कर लाए तो भी खा सकते हैं।इतने में एक सज्जन बोले।अरे भाई चाय तो पी सकते हैं।उसमे कोई परेशानी नहीं होती।और चाय तो घर में ही बनाई जा सकती है। फिर चाय बनाई गई घर वालों ने और बाहर वालों ने सब ने पी।


कुछ लोग दूर से ही रोते हुए आ रहे थे।कुछ लोग पास आकर आंखें नम कर रहे थे।कुछ लोग जब कोई देखता तो रोने लग जाते।फिर चुप हो जाते। फिर कोई देखता फिर रोने लग जाते।फिर चुप हो जाते।


कुछ लोगों का तो काम ही यही था देखना कि कौन-कौन रोया?कौन ऐसे ही खड़ा था? कौन बातें कर रहा था? कौन हंस रहा था?


गजब तो तब हो गया कि कुछ महिलाएं पूरा मेकअप करके शोक करने आ जाती हैं।वहां भी उन्हें लगता है कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा?आइब्रो कितनी खराब हो रही है।


कुछ तो सोच रही होती है।छोले भिगो दिए थे।उबालकर बना दिए होते तो ठीक होता।यहां पर तो पता नहीं कितना वक्त और लग जाएगा।मैं तो सारा काम ऐसे ही छोड़ कर आ गई।


कुछ को बच्चों के खाने और स्कूल से लौट कर आने की फिक्र हो रही थी।


और तो और हर व्यक्ति चरण दास जी की पत्नी से यही पूछ रहा था।भाभी जी यह कैसे हो गया? तबीयत खराब थी क्या?क्या पहले से ही बीमार थे|

क्या हो गया था? कुछ बोले?

कल ही तो मिले थे।फिर कैसे चले गये।

कुछ कहने लगे कल तो फोन पर कह रहे थे।घर आना।पार्टी करेंगे।और वह ऐसे ही चले गए।


सबके पास बताने और बोलने को बहुत सारी बातें थी।सब उनके बारे में अपनी अपनी बात कह रहे थे।वैसे सही मायने में चरणदास जी ऐसे ही थे।


सब उन्हें बहुत पसंद करते थे।वे हमेशा सबके भले की ही सोचते थे।सहायता करते थे।वह भी निस्वार्थ भाव से बिना सोचे समझे।


बाहर लोग जमा हो गए थे। धीरे-धीरे शहर में रहने वाले लोग आने लगे। सब लोग अपने-अपने काम में लगे हुए थे।


परंतु उनकी पत्नी की तरफ किसी का ध्यान नहीं था कि उन के दिल पर क्या बीत रही है?वैसे वह अपना दर्द किस से कहें कि उनकी तो दुनिया ही उजड़ गई। कैसे संभाले अपने को।


ना तो कमबख्त दिल मान रहा है।ना मन मानने को तैयार है।बार-बार बेसुध सी हो रही थी।लगातार रोते रोते सिर भारी हो रहा था।आंखें भी दर्द करने लगी।गला रून्ध गया था।


सब जानते थे।एक पल भी एक दूसरे के बिना नहीं रहते थे।तभी एक बेटे ने हाथ में सामान की लिस्ट ली।और बेटा सामान लेने चला गया।


दूसरा बेटा दूसरे काम देख रहा था।सोच रहा था अब तो जिंदगी में सारी जिम्मेदारियां संभालना है।


थोड़ी देर में सामान आ गया।एम्बुलेंस भी आ गई। अर्थी को सजाया गया।चारों ओर फूल ही फूल थे।खुशबू ही खुशबू थी।


फिर एक-एक करके सब ने उनकी परिक्रमा की।और विदाई की तैयारी होनी शुरू हो गई।


इधर चरण दास जी की पत्नी का दिल बैठा जा रहा था।एक बार जी भर के देखना चाहती थी।पर समाज में लोग क्या कहेंगे? यह सोचकर वही सिमटी हुई। दर्द में डूबी हुई बैठी रही।कैसे कहती मुझे कुछ वक्त उनके साथ अकेले रहना है?सब दिल का दिल में रह गया।


अर्थी को एंबुलेंस में ले जाया गया। आखिर में मोक्ष द्वार यानी श्मशान घाट पहुंच गए।सब की आखिरी मंजिल वहीं है।चाहे कितना गरीब हो या कितना अमीर।


वहां जाकर पूजा करवाई। फिर उसके बाद बॉडी को स्नान करवाया। फिर चिता बनाई गई। इसके लिए भी तजुर्बेकार् की जरूरत थी। मोटी लकड़ी कहां लगेगी। छोटी कहां? और पतली कहां लगानी है?


चिता के ऊपर शरीर को लिटा दिया गया। फिर बड़े बेटे ने मुखाग्नि दी। उसके बाद कपाल क्रिया की। और देखते-देखते चरण दास जी का शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया।


जब वे लौटने वाले थे तभी अनाउंस किया गया तीये की बैठक यानी शांति क्रिया कब होगी? कहां होगी? और सबको उस जगह का बता बता दिया गया।


सब धीरे-धीरे अपने घर चले गए। कुछ लोग वापस उनके घर आ गए। जो परिवार के व्यक्ति थे।सब लोग नहाए। फिर खाने का प्रबंध बड़े बेटे के ससुराल से किया गया। सब ने खाना खाने से पहले नींम का पत्ता खाया। फिर खाना खाया। इसलिए इस खाने को कड़ा गास कहते हैं।


शाम का खाना चरण दास जी के ससुराल से आ गया। सब ने खाना खाया। रात होने वाली थी। तब सोचा अरे इतने सारे लोग कैसे सोएंगे? कहां सोएंगे?इनके लिए बिस्तर गद्दा तकिया चादर सब कहां है?


फिर बिस्तर के 20 सेट किराए से मंगाये गये।और सब लोग ऐसे ही बिना प्लानिंग के सो गए।


अगले दिन जब उठे तो लग ही नहीं रहा था कि इस घर के मुखिया का निधन हो गया है। चारों ओर हंसी ठहाकों की आवाज, कहीं कोई गम नहीं, सब मस्त हैं,सब खुश हैं। कोई टीवी देख रहा है। कोई न्यूज़ पेपर पढ़ रहा है। कोई लैपटॉप पर काम कर रहा है। और कोई फालतू में लोगों को बोर कर रहा है।


पर गमगीन कोई नहीं दिख रहा। कहीं भी देख लो। जब कोई चला जाता है तो सबसे ज्यादा फर्क जीवनसाथी पर पड़ता है। उसके बाद बच्चे अगर उन पर आश्रित हैं तो उन पर। बाकी सबको थोड़ी देर तक फर्क पढ़ता है जब तक। घर से श्मशान और वहां से वापस आने तक होता है।


तीसरे दिन सुबह घर के लोग शमशान घाट जाकर अस्थियां जिन्हें फूल चुनना भी कहा जाता है।लेने जाते हैं।और उन्हें एक छोटी मटकी या कलश में लेकर आते हैं।और गंगा में या आस पास बहते हुए पानी यानी किसी भी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।यह कार्य शोक सभा के दिन शाम को गंगा जी जाकर किया जाता है।


यही सही है।आखिर वह दिन भी आ गया| जिस दिन शांति के लिए श्रद्धांजलि देनी थी।कुछ लोग टाइम से आए, कुछ थोड़ी देर से आए, और कुछ तो फॉर्मेलिटी पूरी करने बिल्कुल वक्त पर आए।


वहां भी बातें ही कर रहे थे। क्या बताऊं मेरे तो बिल्कुल बस की नहीं थी?वो तो संजू के पापा ने कहा, नहीं जाना तो जरूरी है। तो आना पड़ा।


मैं तो सारे काम छोड़ कर आई हूं। आज तो किट्टी में जाना था।


एक महिला बोली यह कैसा रिवाज है।अधिकतर लोगों को जमीन पर बैठना पड़ता है।केवल बुजुर्ग कुर्सी पर बैठ सकते हैं।मुझसे तो नहीं होता।


एक कह रही थी मैं कल ही मेकअप करा कर आई थी।पार्टी में जाना था।तूने मेरी डीपी देखी।


एक बोली घर में सास की चिकचिक से परेशान थी।सोचा शांति पाठ में चली जाऊं।थोड़ी देर तो चैन से रहूंगी।


हर एक की गोसिफ़ का टॉपिक अलग-अलग था।लोग शांतिपाठ में भी अपनी जुबान पर कंट्रोल नहीं कर पाते। सोचते भी नहीं कहा बैठे हैं?

क्या कर रहे हैं?


फोन पर लगातार बातें करते रहते हैं।और बंद नहीं करते।


हद तो तब हो गई। जब एक महिला ने बोला यार पार्टी में नहीं आ सकती।किसी के मरे में आई हूं।और मुझे बहुत दुख है पार्टी छूट जाने का।


जिधर भी देखो उधर से तरह-तरह की आवाजें आ रही थी।कोई बीमारी के लिए,कोई काम के लिए, कोई आलतू फालतू बातों के लिए बोले जा रही थी।


यही हाल पुरुषों का भी था।पर इतना बुरा नहीं होता है महिलाओं का जितना। महिलाओं को तो जैसे चुप रहना ही नहीं आता।


जैसे तैसे करके श्रद्धांजलि सभा का काम पूरा किया। सभी मेहमान एक दूसरे से मिले। सब ने पुष्प अर्पण किए।और सभी उनके बारे में बात कर रहे थे।वो कितने भले आदमी थे।अस्थियों के विसर्जन के लिए कुछ लोग गंगा जी जाने की तैयारी कर रहे थे|ओर उनका बड़ा बेटा और कुछ लोग हरिद्वार के लिए निकल गए |


बाकी लोग घर लौट आए।दिनचर्या लगभग वैसी ही हो गई जैसी पहले थी।लग ही नहीं रहा था| यहां 4 दिन पहले कोई भगवान के चरणों में लीन हो गया है।


किसी ने सही कहा है मरने वाले के साथ मरा नहीं जाता।सबको यह यात्रा अकेले ही करनी पड़ती है।हम कितना भी प्यार क्यों ना करते हो।


पर विधि का विधान यही है।मरने से पहले कमाने में लगे होते हैं।इसके लिए यह कर दें।उसके लिए वह कर दें।और यही सब करते करते इस दुनिया से चले जाते हैं। प्रभु के श्री चरणों में।


किसी ने सही कहा है।


तूने जो कमाया है,वह दूसरा ही खायेगा।

खाली हाथ आया था,खाली हाथ जाएगा।

जब तलक यह सांसे हैं,

तब तलक यह रिश्ता है।

सांस जिस घड़ी टूटे,

ये रिश्ता टूट जाएगा।


सारे रिश्ते नाते सिर्फ जीते जी के हैं।जब सांस चली जाती है।तो जो एक ही दिन में तीन बार कपड़े बदलता था। वह एक कपड़े में जिसे कफन कहते हैं उसमें जाता है।और लोग उसे कंधे पर ले जाते हैं।कंधे बार-बार बदलकर।


किसी के भी मरने के बाद ऐसा ही लगता है। कहते हैं ना आज मरे कल दूसरा दिन, तीसरा, जिंदगी वैसे ही चल रही थी। खाना, पीना, सोना, बोलना, हंसना, क्या कुछ रुक पाता है?


किसी को फर्क नहीं पड़ता। इसमें भी बड़े प्रपंच हैं फर्क सिर्फ जीवनसाथी को पड़ता है क्योंकि उसकी जिंदगी एक दूसरे पर निर्भर होती है। या उन बच्चों पर जिनके पिताजी बहुत ज्यादा पैसा छोड़ जाते हैं।

पिताजी काम नहीं कर रहे हो तो फिर उसके जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता।लगता है जिम्मेदारी से मुक्ति मिल गई।वरना दुनिया के दिखावा के लिए ही सही सेवा तो करनी पड़ती है।


तीसरे दिन के बाद 10 दिन तक ऐसे ही सब चलता रहा।वही खाना, पीना, गपशप,मौज, मस्ती।


दसवे दिन परिवार के कुछ लोगों ने बाल दिए। कुछ लोगों ने सिर्फ कलम ही कट वाली। थोड़े सिर के बाल दिए। यह भी एक परंपरा थी।


फिर बारह दिन हो गए।यह भी एक परंपरा है।सब कुछ रीति रिवाज से ही होता है।जन्म से लेकर मरने तक।


12 पंडित बुलाए गए। उन्हें खाना खिलाना था।और उन्हें लोटा, माला, धोती कुर्ता दिया जाता है साथ में दक्षिणा के पैसे।


और एक विशेष पंडित जी होते हैं।उन्हें सैया दान दिया जाता है।अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार इसमें जितने मुंह उतनी बातें होती हैं।कोई कहता है पलंग,गद्दा, तकिया, रजाई, लालटेन, लोटा कुछ बर्तन,कपड़े और जो कुछ चरणदास जी यूज़ करते थे। चश्मा, घड़ी, चैन और भी चीजें आदि की राय देने लगते हैं।


उस दिन के खाने के लिए कौन सा हलवाई करेंगे। का मैन्यू क्या होगा? खाना कौन से घी में बनेगा? जितने मुंह उतनी बातें।


सब अपनी अपनी राय बताते हैं। पर कोई चरण दास जी की पत्नी से नहीं पूछते हैं उन्हें क्या पसंद था?


सब एक राय बनाकर हलवाई तय कर लेते हैं।और खाना पंडितों को खिलाकर बाकी घर वाले खा लेते हैं।


इसमें भी लोग बातें बनाते हैं।खाना अच्छा नहीं था।वैसे मिर्च बहुत ज्यादा थी।लड्डू भी सख्त थे।मीठा कम था। सब्जियों में तेल बह रहा था।

कुछ और भीअच्छे से किया जा सकता था।चरण दास जी कितना कुछ छोड़ कर गए हैं।सब कुछ इनके पास ही तो रहेगा।


बस यही सब सुनते सुनते चरण दास जी की विदाई भगवान के श्री चरणों में हो जाती है।


सब अपने अपने घर लौट जाते हैं।दोनों बेटे भी जब आपस जाने वाले थे।चरणदास जी की पत्नी से चलने के लिए कहते हैं।मां तुम अकेले कैसे रहोगी।अब हमारे साथ चलो।पर वह नहीं जाती कहती है मैं यही रहूंगी उनकी यादों के सहारे।


जब से बिहा कर आई हूं। तब से यही रह रही हूं।अब कैसे छोड़ कर जाऊं?


जब घर में सब जाने की बात कर रहे थे।तब पड़ोस के घर से आवाज आ रही थी।गाना चल रहा था।


दुनिया से जाने वाले, जाने चले जाते हैं कहां?

कैसे ढूंढे? कोई उनको,नहीं कदमों के भी निशा।

जाने है वह कौन नगरिया,

कोई खत ना कोई खबरिया,

जाकर फिर ना आने वाले,

जाने चले जाते हैं कहां ?

दुनिया से जाने वाले,

जाने चले जाते हैं कहां?

वह भी चरण दास जी की की यादों में खो गई।बेटी भी अपने घर लौट गई।अपने ससुराल चली गई।


रह गई चरण दास जी की पत्नी उनकी यादों, उनकी बातों, उनके सपनो के साथ बिल्कुल अकेली तन्हा।



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