top of page

जिंदगी पीछे छूट गई

अपडेट करने की तारीख: 25 जन॰ 2022





नमस्कार

अभी आपके पास समय है। इस समय का उपयोग हम अपनी गलतियों को सुधारने में लगा सकते हैं।

जल्दी और जल्दी के चक्कर में हम इत्मीनान से जीना भूल गये।

इत्मीनान बड़ी चीज है।

हम हमेशा पूरी जिंदगी समय बचाने की कवायद में लगे रहते हैं। पूरा समय में बस यही तिकडम लगाते रहते हैं कि कैसे कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा चीजें कर ले ।

हर एक सेकंड के लिए भी हम परेशान हैं ।हम हमेशा अपने हाथ में स्टॉपवॉच लेकर घूमते हैं । और एक एक सेकंड बचाने के लिए हद से ज्यादा जुनूनी हो जाते हैं। हम सभी समय से आगे निकलने की होड़ में जिंदगी को पीछे छोड़ते जा रहे हैं।

हम अक्सर ऐसा सोचते हैं, जो ज्यादा जितना तेज चलेगा उतना ही ज्यादा हासिल कर पाएगा ।अपने जीवन से कभी-कभी तो ऐसा लगता है मानो पूरी दुनिया ही टाइम सिक हो गई है । जो जल्दी जीने को ही ज्यादा जीने का पर्याय मानते हैं ।

1. हम यह क्यों नहीं सोचते हम हमेशा इतनी जल्दी में क्यों रहते हैं?

2. इस टाइम सिकनेस का इलाज क्या है ?

3. क्या अपनी हद से ज्यादा तेजी को कम करके इत्मीनान से जीना संभव नहीं है?

हमें ऐसा करने की इच्छा है, या अभी नहीं कि हम हर काम को इत्मीनान से करें । अब जो समय है, और आगे जो समय आने वाला है। इसमें तेज चलने वाला धीमे चलने वाले से आगे निकल जाएगा।

आज के अतिव्यस्त दौर में हमारी हर गतिविधि घड़ी के कांटों के साथ होड़ का पर्याय बन गई है।

तेज और तेज की प्रवृत्ति अब हमारा स्वभाव ही बन गयी है। हमने एक मानस विकसित कर लिया है। एक साइकोलॉजी डेवलप कर ली है ।

स्पीड को लेकर, समय बचाने को लेकर, कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा जीने को लेकर, हर गुजरते दिन के साथ और भी मजबूत होता जा रहा है।

स्पीड हर जगह है हर वक्त काम की नहीं होती। जल्दी-जल्दी और ज्यादा ज्यादा के चक्कर में हमने अपने आप को इस हद तक तनाव से भर लिया है कि हमारे टूट कर बिखरने का खतरा पैदा हो गया है।

परेशानी का सबब रफ्तार नहीं बल्कि उसके प्रति सनक या हमें यह कहना है कि हमारा उसके प्रति सिकनेस इस हद तक बढ़ चुका है कि हम कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा हासिल करने की चाह का एडिक्शन बन गए हैं।

इसलिए जब जल्दी के दुष्परिणाम हमारे सामने आते हैं। तो उन से निजात पाने के लिए हम और जल्दी की शरण में चले जाते हैं।

जैसे कि काम में पिछड़ रहे हैं तो अभी जो इंटरनेट कनेक्शन है। उस से और तेज कनेक्शन ले लो। स्पीड रीडिंग सीखो, एक्सरसाइज का समय नहीं है । और डाइटिंग से भी काम नहीं चल रहा है।तो खाने पर कंट्रोल कर लो । खाना बनाने का समय नहीं मिलता माइक्रोवेव खरीद लो।

कुछ चीजें ऐसी हैं जिनके साथ किसी भी कीमत पर जल्दी नहीं करनी चाहिए। जिसके साथ हमें इत्मीनान रखना जरूरी है। आपको उन्हें उतना समय देना ही पड़ेगा जितने के लिए वह बनी है।

और यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो आप अपनी गति को उनके सहज स्वाभाविक गति से समायोजित करना भूल जाएंगे। जिससे कि आपको उसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।

जैसे उदाहरण के तौर पर हम सॉफ्टवेयर कंपनी की बात करते हैं तो वे अपने प्रोडक्ट को बिना पर्याप्त टेस्टिंग के बाजार में उतरने लगे हैं।

जिससे सिस्टम क्रैश होने लगे । वायरस अटैक होने लगे। और अचानक काम ठप हो जाने जैसी समस्याएं फैलने लगी।और इन सब का अंतिम परिणाम कंपनियों को हर साल बहुत बड़ा नुकसान होने लगा ।

काम को हद से ज्यादा घंटों ने हमारी हालत चरखी में लगे गन्ने जैसी कर दी है। जिसकी आखिरी बूंद तक निचोड़ कर उसे कचरे में फेंक दिया जाता है। जहां जानवर भी उसे नहीं खाते।

ज्यादा जल्दी का काम हमें बार-बार गलतियां करने पर मजबूर करता है । और हमेशा सुख चैन छीन कर हमें भी बीमार कर रहा है। डॉक्टरों के पास मरीजों की भरमार है ।

जिनको 1. अनिद्रा, 2. माइग्रेन, 3. हाइपरटेंशन, 4. दमा , 5. तनाव

जैसी बहुत सारी बीमारियां हैं। हर आदमी कहता है कि सबसे ऊपर है काम और काम की प्रति जब हम पूरी तरह समर्पित हो जाते हैं।तब खाना पीना सब कुछ भूल जाते हैं। काम करते करते ही खा पी लेते हैं।



परंतु ज्यादा जल्दी वाले काम के लिए अब हम एक मुसीबत बनते जा रहे हैं । स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बहुत ज्यादा पैदा हो रही हैं ।और यह काम मैं जल्दी-जल्दी बहुत जल्दी करना या ज्यादा से ज्यादा काम करना यह सामाजिक और पारिवारिक जीवन को भी तबाह करता है।


बाहर के देशों में 60% लोग अपनी कंपनी के द्वारा दी गई छुट्टियों का कोटा पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे ।और वे जो उनको कोटा छुट्टियों का मिलता है ।उसका बहुत सारा वक्त डॉक्टर के पास या बिस्तर पर बिता देते हैं।

सुपर स्पीड का मंत्र जपने वाली आधुनिक वर्क फोर्स यह व्यवहार हमें कहां ले जाएगा ।

जापान में एक नया शब्द इजाद किया है करोशी इसका मतलब है काम की अधिकता से होने वाली मौत जरूरत से ज्यादा काम ।

एक और तरह से हमारी सेहत के लिए खराब है इसकी वजह है हमारे पास न तो समय बचता है और ना ही इतनी एनर्जी कि हम कोई और काम कर सके।

या हम अपने शरीर के लिए व्यायाम कर सके या कुछ और कर सके ।

और इसके चलते इसलिए दूसरी तरफ काम की अधिकता के कारण लोगों ने ज्यादा शराब पीने और जंक फूड पर पलने की भी लत लग जाती है।

इन दोनों का संयुक्त परिणाम होता है मोटापा। यह इत्तफाकन नहीं है फास्टेस्ट नेशन्स अक्सर फैटेस्ट भी होते हैं।

एक समय था तब लोगों का जीवन का मकसद जल्दी और ज्यादा नहीं बल्कि अच्छा और आराम से जीना हुआ करता था ।इसलिए दोपहर के भोजन के बाद एक मीठी झपकी लेना उनकी आदत में शामिल था ।

परंतु अब दूसरा ही दौर चल रहा है एक अटल सत्य है जो बहुत तेज चलेगा वह कभी गहराई में नहीं उतर पाएगा ।यदि आपकी नजर तेजी से भागेगी तो केवल सरसरी निगाह ही डाल पाएंगे। चीजों पर किसी भी चीज को गहराई से नहीं देख पाएंगे ।

तेजी का जीवन सत्य ही जीवन होता है इस तरह आप लोगों से अपने आसपास की दुनिया से यहां तक कि खुद अपने आप से भी गहराई से जुड़ने का अवसर नहीं मिल पाता।

आप बस ऊपर ऊपर ही मिलते हैं जब चीजें बहुत तेजी से घट रही हूं तो कोई भी किसी की चीज के बारे में श्योर नहीं होता। यहां तक कि खुद के बारे में भी नहीं ।


यह सभी चीजें जो हमें एक दूसरे से जोड़ती हैं। और जिंदगी को इतना हसीन बनाती हैं ।समाज, दोस्त, परिवार यह सारी चीज केवल एक ही चीज पर निर्भर करती है ।आपके द्वारा इनको दिए गए समय पर।

ज्यादा तेज और तेज भागने की आदत के कारण हमारा पारिवारिक जीवन भी बहुत प्रभावित हो रहा है। बड़ों से लेकर बच्चों तक हर कोई एक-एक पल का सदुपयोग करने पर आमादा है।

कई सारे घरों में फ्रीज़ के दरवाजों पर चिपके पोस्ट एक स्टीकर ही एक दूसरे के संवाद की एकमात्र सेतु बन गए हैं।उन लोगों के पास वक्त ही नहीं है। आपस में बात करने का।

जब बच्चे स्कूल से घर आते हैं तो इनका स्वागत खाली चहारदीवारी करती हैं। जहां यह कोई पूछने वाला नहीं होता कि उनका दिन कैसा बीता। जहां कोई उनकी समस्याओं उपलब्धियों या बातों को साझा करने वाला नहीं होता।

हर आदमी कमाने की धुन में भाग रहे स्टेज और तेज के पागलपन का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर हो रहा है। जितनी तेजी से आदमी का बचपन खो रहा है वैसा पहले कभी नहीं हुआ ।आज बड़ी तादाद में ऐसे बच्चे मिल जाएंगे जिनका जीवन बहुत ज्यादा व्यस्त है। किसी भी तरह अपने माता-पिता से कम नहीं।

जो लगातार घर से स्कूल, स्कूल से ट्यूशन, ट्यूशन से और किसी क्लास फिर और किसी क्लास और उसके बाद भी ना जाने किन किन गतिविधियों के लिए भागते दौड़ते अपने बचपन को पीछे छोड़ कर जा रहे हैं।

अभी हाल ही में मैंने एक कार्टून देखा जो इस मसले पर था जो मुझे अपने आप में पर्याप्त मालूम हुआ। स्थिति की भयावहता को व्यक्त करने के लिए हाथ से उस कार्टून में दिखाया गया था ।

दो छोटी बच्चियां स्कूल के बस स्टॉप पर खड़ी होकर अपने-अपने पर्सनल प्लानर व डिवाइस जिससे आप पूरे महीने या साल भर की गतिविधियों का शेड्यूल रख सकते हैं।

वह सिर्फ जहां वह कुछ बात कर रही थी ।एक बच्ची दूसरी से कह रही थी ।एक काम करते हैं मैं पहले प्रैक्टिस का एक घंटा पहले कर दूंगी। जिमनास्टिक को भी शेड्यूल कर लूंगी। और पियानो को तो कैंसिल ही करना पड़ेगा। तू ऐसा कर अपनी वायलिन क्लास को गुरुवार को कर ले। और फुटबॉल प्रैक्टिस को भी आगे बढ़ा दे। तब हमें बुधवार यानी 16 तारीख को शाम 3:15 से 3:45 तक खेलने का मौका मिल सकता है।

इस तरह अति व्यस्त माहौल में बड़े होते हुए बच्चों को उन चीजों के लिए नाम मात्र का भी समय नहीं मिल पाता ।जो बचपन की असल पहचान है।

मसलन दोस्तों के साथ मौज मस्ती ,बड़ों की आंख बचाकर की गई धमाचौकड़ी, खाली बैठकर खुली आंखों से सपने देखना ,और अपनी बाल सुलभ जिज्ञासा के सहारे अपने आसपास की दुनिया को एक्सप्लोर करें ।

बहुत बुरा असर जब मन आए तब खाना, जब मन आए तब सोना ,यह अति व्यस्तता बच्चों की सेहत पर बड़ा प्रभाव डालती है।

क्योंकि बड़ों की तुलना में भी नींद की कमी और अत्यधिक तनाव के दुष्प्रभावों को झेलने में इतने सक्षम नहीं होते ।

आजकल ऐसे बच्चों की भी भीड़ लगने लगी है जो 5 साल की छोटी सी उम्र में ही पेट में गड़बड़ी से, अनिद्रा की समस्या से ग्रस्त हैं।

सन 2002 में इंग्लैंड में लुइस किसिंग नाम का एक विद्यार्थी परीक्षा हाल में फूट-फूटकर रो पड़ा। और इस घटना ने सभी को स्तब्ध कर दिया जी नहीं लुइस कोई कमजोर विद्यार्थी नहीं था। जो पेपर बिगड़ने या ना कर पाने के कारण रोने लगा हो।

जब गए तो पता चला कि वह स्टार विद्यार्थी था। जिस पर सभी को बहुत नाज था। जिसके नाजुक कंधों पर ना जाने किस-किस की महत्वाकांक्षाओं का बोझ था। यह बात उस ब्रेकडाउन का असली वजह बना। उस दिन में उसका एक के बाद एक पांचवा पेपर था ।और हर पेपर के बीच उसे केवल 10 मिनट का ब्रेक मिला था ।

यदि हम अभी नहीं जागे और इस तरह तेज और तेज का मंत्र जपते रहें ।तो सारी स्थितियां और भी बदतर हो जाएंगी।

कॉमन सेंस की बात है अगर हर व्यक्ति तेज भागने का विकल्प चुन लेगा।

तो फिर क्या कोई भी तेज माना जाएगा ?

क्या किसी को भी तेज भागने का लाभ मिलेगा?

तब क्या तब भी सभी एक ही स्तर पर नहीं होंगे?

बिल्कुल होंगे। तो उसका परिणाम क्या होगा?

यही कि हमें तेज से और तेज की और भागना पड़ेगा ।लेकिन हमारी तरह दूसरे भी यही कोशिश करेंगे ।अब परिणाम क्या होगा ?

बिल्कुल यही तेज और तेज का दौड़ का भी हाल आखिर को हम सभी खुद को नष्ट कर लेंगे। और किसी के हाथ कुछ नहीं आएगा ।चीजों का आनंद लेने की क्षमता नष्ट हो चुकी है ।

उसका स्थान रफ्तार से ऊंची उत्तेजना ने ले लिया है ।हमें भूल ही गए हैं कि जीवन की तमाम जद्दोजहद के पीछे हमारा मकसद अंततः सुखचैन हासिल करना ही तो है। हम हैं कि आधी छोड़ पूरी को धावे के चक्कर में आधी का मजा लेना भी भूल गए ।

आजकल रेस्टोरेन्ट में आप जाएंगे तो पाएंगे, लोग डेजर्ट खत्म करने से पहले ही बिल चुकाने,और टैक्सी बुक करने की हड़बड़ी में लग जाते हैं।

तेज और तेज के चक्कर में जिसे मल्टीटास्किंग कहा जाता है। दो या उससे अधिक कामों को एक साथ कर सकने वाले एफिशिएंट और मॉडर्न माने जाते हैं ।

लेकिन यह नहीं देखा जाता कि वे एक भी काम ढंग से नहीं कर पा रहे। औरों की क्या कहूं मैं खुद टीवी देखते देखते अखबार पढ़ता हूं ।लेकिन मैं यह स्वीकार करने की हिम्मत रखता हूं ।कि ऐसा करते हुए मैं न तो ढंग से टीवी देख पाता हूं। और ना ही ठीक से अखबार पढ़ पाता हूं।

हम भूल चुके हैं कि बिना किसी व्यवधान के बिना किसी उत्तेजना के सिर्फ और सिर्फ खुद के साथ कैसे रहा जाता है ।और उसमें कितना आत्मिक आनंद प्राप्त होता है।

जैसे ही रफ्तार द्वारा पैदा की उत्तेजना शांत होती है ।वैसे ही हम बेचैन हो उठते हैं। घबरा जाते हैं, यह क्या हो गया ?

हमें और कुछ ढूंढने लगते हैं। कुछ तो मिल जाए करने को ।कुछ तो ऐसा जिसमें फिर थोड़ा उत्तेजना पैदा हो। शांत बैठने की अपनी नाकामी को हमने बोडम नाम दे दिया है ।

आपको शायद याद भी नहीं होगा आखिरी बार आपने किसी को ट्रेन में यात्रा के दौरान चुपचाप बैठकर खिड़की से बाहर के नजारों का आनंद लेते कब देखा था ।

अखबार पढ़ने वीडियो या मोबाइल गेम खेलने आईपैड पर गाने सुनने लैपटॉप पर काम करने या मोबाइल खंगालने में व्यस्त लोगों की कोई कमी नहीं होती ।

परंतु कभी भी बस और ट्रेन की खिड़की में बैठकर लोगों को बाहर प्रकृति का आनंद लेते हुए आज हम किसी को भी नहीं देखते।

एक दिन एक डिलीवरी वाहन मेरे पड़ोसी के घर के सामने आकर रुकी ।ड्राइवर उनमें से एक टेबल उतारकर पड़ोसी के यहां देने चला गया। क्योंकि सड़क ज्यादा चौड़ी नहीं थी।इसी वजह से पीछे आने वाली गाड़ियों का रुकना लाजमी था। हालांकि अपने काम में माहिर ड्राइवर को इस में दो-चार मिनट से ज्यादा नहीं लगने वाले थे ।

पर अभी 1 मिनट भी नहीं बीता था कि वाहन के पीछे आकर खड़ी हुई एक कार की ड्राइविंग सीट पर मौजूद तकरीबन 40 की उम्र की एक महिला बेचैनी से पहलू बदलने लगी ।

कुछ ही पलों में उसकी बेचैनी इतनी बढ़ गई ,कि वह अपने हाथों को डैशबोर्ड पर पटकने लगी। फिर उसने अपने सर को पीछे हेड ड्रेस पर मारना शुरू कर दिया ।और उसके गले से कुछ अस्पष्ट सी आवाजें निकलने लगी।

मुझे लगा जैसे उसको कोई दौरा पड़ रहा है। ऐसा ख्याल आते ही मैं तत्काल बाहर भागा ।शायद उसे मदद की जरूरत होगी ।पर जब मैं उसके करीब पहुंचा, तो मुझे समझ में आया कि उसे कोई दौरा नहीं पड़ा बल्कि उसे जल्दी का दौरा पड़ा है।

वह वास्तव में अपना रास्ता रोके जाने को लेकर भड़की हुई थी ।तभी उसने खिड़की से सिर बाहर निकाला ।और बगैर किसी को लक्ष्य के चिल्लाई। अगर तुमने इस वाहन को अभी के अभी आगे नहीं बढ़ाया ,तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगी।

तब तक डिलीवरी मैन टेबल डिलीवर कर के वापस आ चुका था ।उस ने जब यह सुना तो ऐसा होता से कंधे झटके वैन में सवार हुआ, और आगे बढ़ गया। शायद उसके लिए यह रोज रोज की बात थी।

मैं उस महिला से कहना चाह रहा था कि वह थोड़ा शांति रखें ।पर उसने इतनी तेज गाड़ी भगाई कि मेरे शब्द उसके टायरों से उत्पन्न शोर में दब कर रह गई।

तेज और तेज की दीवानगी और समय बचाने का जुनून हमारे भीतर इस किस्म की रेज पैदा कर कर रहा है ।

उन्मादी बना रहा है हमें, अब हर जगह उन्माद उन्माद है। सड़क पर उन्माद ,हवाई जहाज में उन्माद ,शॉपिंग सेंटर में उन्माद ,रिश्तों में उन्माद, ऑफिस में उन्माद , छुट्टियों में उन्माद,जिम में उन्माद ,रफ्तार की मेहरबानी से हम उन्माद के दौर में जी रहे हैं।

इत्मीनान रखिए जनाब यह समय आपको छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला आपको इसी दुनिया में ही रहना है।

यह सब जानकारी आप को में “कार्ल ऑनरे के द्वारा लिखी हुई किताब इत्मीनान बड़ी चीज़ है।इसमें से दे रही हूं।मुझे यह किताब बहुत अच्छी लगी ।इसलिए मैं आप को इसमें शामिल करना चाहती हूं।”

अभी तो सब कुछ बंद है ,काम भी बंद है।परंतु अभी आपके पास सोचने का समय है।कहीं आप जल्दी में तो नहीं।आप ने अपनी जिंदगी का इत्मीनान तो नहीं खो दिया।इसे आप को इत्मीनान से पढ़ने की जरूरत है । ज़िंदगी को सहज होकर जीओगे तबही वह ज्यादा खूबसूरत होगी।यह आप के लिए सही वक्त है ज़िंदगी के बारे मैँ सोचने के लिए।

इसकी मुख्य बातें में आप को अगली पोस्ट मैं बताऊंगी। मेरी कोई भी पोस्ट जो भी आप को अच्छी लगती है।आप उन्हें शेयर करिये।क्या पता आप के प्रयासों से किसी की ज़िंदगी बदल जाये ? 👍


0 दृश्य0 टिप्पणी

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
bottom of page