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जैन परंपरा दसलाक्षण धर्म —–पर्युषण पर्व



तपस्या उपवास के दस दिन


दस दिन का यह उपवास के दस नियम है।

1. उत्तम क्षमा ,2. मार्दव ,3. आर्जव ,4. सत्य ,5. संयम ,6. शौच ,

7. तप ,त्याग, 8.अकिंचन ,9. उत्तम ,10. ब्रह्मचर्य

जब मैंने यह देखा कि कैसे कोई बिना कुछ खाए पिए 10 दिन तक रह सकता है। तो यह एहसास हुआ कि यह केवल तभी संभव है। जब आपके पास धर्म की शक्ति हो।

और मैं जैन धर्म के इस रास्ते,एवं इस नियम से बहुत प्रभावित हुई।

और मैंने तभी इस विषय पर लिखने का सोचा।

क्या आप सब जानते हैं कि यह जैन धर्म में पर्युषण पर्व पर किए जाने वाले 10 दिन का उपवास क्या होता है?

10 दिन के उपवास तो पर्वों के विशेष महापर्व की तरह मनाया जाता है।

1 .”यह पर्व महावीर स्वामी केचोबीसों तीर्थंकरों के प्रमुख सिद्धांत अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है”आपस मैं सभी से क्षमादान की याचना से यह पर्व प्रारंभ होता है।

2.” जियो और जीने दो”

यह जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत है। अगर हम केवल इन सिद्धांतों को ही जीवन में लागू करें। तो समझ लीजिए कि हमने अपने मोक्ष का मार्ग प्राप्त कर लिया।

अब हम बात करते हैं 10 दिन के व्रत की—–

यह 10 दिन बहुत अलग होते हैं। जिंदगी में इन 10 दिनों का विशेष महत्व है।

1. पहले दिन उत्तम क्षमा क्रोध और मनोभाव पर विजय प्राप्त करना ।

पहले दिन हमें अपने क्रोध पर संयम रखना होगा। सोच ले कि इंसान के लिए कितना मुश्किल है कि वह क्रोध ना करें ।

क्योंकि हमारी जिंदगी में हमारी प्रतिष्ठा, हमारा पद ,हमारा अभिमान, के कारण क्रोध को छोड़ने का मन ही नहीं करता?

और छोड़ने में 10 विघ्न पैदा कर देता है। परंतु इसमें हम बिना भोजन पानी के अलावा क्रोध ना करने का उपवास भी करते हैं।

तब भी पहले दिन क्रोध के साथ साथ हम अपने मनोभावों को बस में रखना चाहते हैं। यह भी कोई आसान नहीं क्योंकि मन तो बड़ा चंचल है। कहीं भी दौड़ने लगता है ।

फिर उस मन में आने वाले भावों को वश में करना कोई साधारण बात नहीं। तभी तो इस वक्त का महापर्व की तरह मनाया जाता है।

और यह शैलेंद्र जी ने कर दिखाया।

2 .दूसरे दिन का उपवास मार्दव में हमें अपने व्यवहार में मिठास,एवं दूसरों के लिए व्यवहार में शुद्धता लानी होती है।

मतलब बिल्कुल सरल स्पष्ट है। हमें सबसे मीठा बोलना है। और दूसरों के लिए मन में प्यार और अपनापन रखना है।

हमारे मन और व्यवहार में घृणा के लिए कोई स्थान ही नहीं है।

3. तीसरा दिन के उपवास मैं आर्जव बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन आपने अपने मन और मस्तिष्क में जिस कार्य को पूरा करने का सोचा है।

वह कार्य पूर्ण करके कि हम सफल होंगे उसे पूरा करना बहुत आवश्यक है। वह काम कुछ भी हो सकता है।

अपने से बड़े जो रूठे हैं। उन्हें क्षमा मांग कर मनाना हो ,यह किसी ने आपको दुखी किया तो उसे माफ करना हो, या आपके व्यवसाय का कोई भी लक्ष्य हो, कोई भी काम हो सकता है।

बस उस दिन का उपवास उस कार्य को पूरा करना है।

4 .चौथे दिन के उपवास में सत्य बोलें।कम बोले ,अच्छा बोले, सच बोलो। इस दिन व्रत के साथ आपको कम बोलना चाहिए।

वैसे भी कम बोलना एक अच्छी आदत है ।यानी अगर हम कम बोलते हैं। तो ज्यादा सुनते हैं। और ज्यादा सुनना एक अच्छा लक्षण है।

ज्यादा बोलने के बहुत नुकसान हैं। ज्यादा बोलने वालों को पता ही नहीं होता कि वह कितनी बातें जो नहीं बोलनी थी, वह भी बोल देते हैं।

जब भी हम बोले, थोड़ा सोचें, हमारे बोलने से किसी का दिल तो नहीं दुख रहा है।कोई परेशान तो नहीं हो रहा है।

अच्छा बोलने के साथ-साथ सच बोले। सच बोलने के लिए सोचना नहीं पड़ता। झूठ बोलने पर हर बार सोचते हैं कि पहले क्या कहा था?

5.पांचवे दिन के उपवास में संयम रखना।लालच ना करें।जब लालच पैदा होता है। तो पीछे पीछे स्वार्थ भी चला आता है।

लालच और स्वार्थ का चोली दामन का साथ है।लालच मन में आया तो स्वार्थ बिना बुलाए चला आता है।

उपवास के साथ लालच को छोड़ना जरूरी है। लालच तो कोई भी हो सकता है, कुछ पाने का, लालच कुछ खोने से बचने का, लालच कुछ ज्यादा मिलने का,

लालच बहुत कुछ है। इसके कारण ही हम स्वार्थी हो जाते हैं। स्वार्थ के वशीभूत लालच के चलते कितने ही गलत कार्य जो नहीं करने थे। कर लेते हैं।

तो लालच और स्वार्थ दोनों से दूर रहना भी इस व्रत का उद्देश्य है।

6. मन पर काबू कर संयम रखना। जब 6 दिन हो जाते हैं। तो जाहिर है मन कभी-कभी डोलने लगता है।

भूख परेशान कर सकती है। कुछ खाने पीने का मन कर सकता है।परिवार के अन्य लोगों को खाता देख मन का संयम डगमगाने लगता है।

तो यह मन का संयम बनाए रखना। मन को भटकने से रोकना।या हम यह भी कह सकते हैं उपवास का मतलब ही मन को वश में रखना होता है।

यह कठिन तो जरूर है पर नामुमकिन नहीं। क्योंकि शैलेंद्र जी ने कर दिखाया।

7. सातवें दिन मलिन प्रवृत्तियों को दूर करना। यह प्रवर्तियाँ को दूर करने का तरीका तप और त्याग है।

इन मलिन प्रवृत्तियों को दूर करने के लिए पूरे बल का प्रयोग करना पड़ता है क्योंकि यह मलिन प्रवृतियां बहुत खराब होती है।

किसी का बुरा करना, किसी के बारे में बुरा सोचना, किसी को बुरी नजर से देखना ,भी मलिन प्रवर्ति है।

यह सब ऐसे शत्रु है जो जब चाहे सिर उठाते रहते हैं। उन्हें आसानी से भगा नहीं सकते। उसके लिए बहुत शक्ति की जरूरत होती है।

बहुत धैर्य और संयम से ही बलपूर्वक उन पर व्रत के साथ विजय प्राप्त कर सकते हैं।

8 .आठवें दिन के उपवास को अकिंचन कहते हैं।

हमें जो भी हमसे कम लगते हैं। उन्हें ज्ञान ,अभय ,खाना, दवा, या जो भी उन्हें चाहिए, वह देना चाहिए।

इस उपवास के वक्त हमें जो भी ऐसा व्यक्ति मिलता है। जिसे वास्तव में ज्ञान की जरूरत है। तो हमें उसे किताबें दे देना चाहिए।

उसे किसी चीज से डर लगता है।तो उसके सिर पर हाथ रखकर उसे भय से मुक्त करना चाहिए।

उसे अगर बहुत भूख लगी है। तो खाना खिलाना चाहिए। और अगर वह बीमार है तो उसे दवा और सेवा देकर अपना व्रत पूरा करना चाहिए।

9 .नवे दिन का उपवास उत्तम है।

किसी वस्तु या पदार्थ के लिए मन पर अंकुश लगाकर रखना चाहिए।

नवें दिन फिर से हमारा मन डोलने को आतुर हो सकता है। भूख से व्याकुल होकर खाने का विचार मन में आ सकता है।

या किसी अन्य भोग पदार्थ पर मन मचलने लग सकता है। मन को वश में करना वैसे भी किसी व्रत को करने का सबसे बड़ा मकसद है।

अपने मन और इंद्रियों को वश में करना ही है। व्रत किया जाता है कि क्या हम भूखे रह सकते? बिना पानी के क्या हम जी सकते हैं?

क्या हम अपने मन को अपने अंकुश में रख सकते हैं?

10 .दसवां दिनका उपवास ब्रहमचर्य है।

सद्गुणों का अभ्यास और अपने को पवित्र रखने का होता है।

दसवां और आखरी दिन का उपवास बहुत खूबसूरत जीवन देने का है। इस दिन हम अपने सद्गुणों का विकास कर अभ्यास कर जीवन में परिवर्तन लाएं।

अगर सद्गुण होंगे तो हमारा मन और हमारी आत्मा दोनों पवित्र होंगे। और यह इंसान के लिए सबसे मूल्यवान है।

इन 10 दिनों में हम कितना इन पर अमल कर पाते हैं। और आगे भी अपना जीवन इसी तरीके से चलाते हैं। तो समझ लीजिए कि हमने पृथ्वी पर आने का अपना उद्देश्य काफी हद तक पूरा कर लिया।

और रोज इसका अभ्यास करने से और भी ठीक कर लेंगे।तो यह आप समझ ही चुके होंगे कि यह पर्व केवल 10 दिन तक उपवास करने का नहीं है ।

जो भी इस उपवास के साथ उन 10 दिनों के अन्य चीजों को भी सीख रहे हैं। और अपनी जिंदगी में उपयोग में ला रहे हैं।वह वास्तव में अपने जीवन को सार्थक कर रहे हैं।

पहली बार मुझे यह एहसास हो रहा है कि उन्होंने सिर्फ यह उपवास ही नहीं किया बल्कि अपना कायाकल्प भी कर लिया।

मन और तन दोनों कुछ सही कर लिया। हम सब के लिए गर्व की बात है कि शैलेंद्र जी हम सब के साथ हैं। जो उन्होंने सोचा और निर्णय लिया और वह करके दिखाया।

मैंने आपको इस उपवास के सभी नियम बता दिए हैं। और आप सब भी यह जान ही गए होंगे कि जैन धर्म में यह उपवास किसी पर्व से कम नहीं।

यह सबसे बड़ा पर्व है और इस धर्म के मानने वाले जो भी इस उपवास को करते हैं।हम उन सब का अभिनंदन करते हैं।

और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें शक्ति दे उन सब नियमों को आजीवन पूरा करने की।और अपनी जिंदगी में लागू रखने की।

जो उन्होंने इस उपवास में सीखे।मुझे यह सारे नियम बहुत अच्छे लगे।और में जैन धर्म की इस प्रणाली को सराहनीय मानती हूँ।यह उपवास अपने शरीर ,मन और आत्मा को पवित्र करने का सबसे आसान उपाय है।

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