ज़िंदगी जरा नजदीक से
यह दस्तक सुनाई क्यों ना दी कभी,
क्योंकि इधर ध्यान ही ना गया कभी।
महसूस किया जब अब तक की जिंदगी को,
दस्तक यानि कोई इशारा जो बता रहा है।
तब सुनाई दी दस्तक अनगिनत थी अभी।
प्यार में इतने अंधे ना बनो, दस्तक ना सुनो।
दिल की, दिमाग की, जब कभी ना सुनो।
समझो क्या कोई दस्तक दे रहा है।
क्या यह दस्तक कहीं तुम्हारे लिए तो नहीं?
बीमारी की दस्तक, प्यार की दस्तक,
गुस्से से बदले व्यवहार की दस्तक,किसी के लिए पागलपन की दस्तक,
कुछ न देख पाने की दस्तक,
आंखों पर पट्टी पड़ जाने की दस्तक,
इज्जत को आंखों से उतरने की दस्तक,कितनी दस्तकें हम रोज सुन अनसुना करते हैं।
क्यों नहीं उन पर ध्यान दें, उन्हें खत्म करते हैं।
यह दस्तकें ही हैं, जो दिमाग हिला देती हैं।
आंखों से नींद, दिल का चैन चुरा लेती हैं।
जब पूरी जिंदगी रिवाइंड की तब सुनाई दी।
अब तक की सारी दस्तकें,जो घुसती जा रही थी।
अंदर ही अंदर, दीमक की तरह,खोखला कर रही थी।
परिवार के प्यार को,खत्म कर रही थी।
रिश्तों की दीवार को, कितनी अनजान,
कितनी नादान थी, अपनों के प्यार में।

दस्तकों को सुनकर, नजरअंदाज करने के ख्यालों में।
अब तो समझ लिया, यह आखिरी दस्तक थी।
इसके बाद शायद वह हो, जो कभी सोचा ना हो।
कभी समझा या फिर देखा भी ना हो।
तैयार होना जरूरी है,
अगली दस्तक कुछ भी हो सकती है।
परिवार को तोड़कर, तमाशा बन सकती है।
दुनिया के सामने बेआबरू,
बदतमीजी में बदल सकती है।

गुमान था जिस परिवार पर हमको,
यह उसी के लिए बदनुमा दाग,
बेइंतहा शर्म, बेपरवाह रिश्तों में दिख सकती है।