top of page

ज़िंदगी के संयोग

कल की सी बात थी।

जब हम मिले थे।

पुरानी बातें याद कर,

बहुत खुश हुए थे।

उसी दिन होली मिलकर,

खेलेंगे सपने सजाए थे।

जो देखे सपने ऊपर वाले ने,

यूँ ही बिखराये थे।

उस दिन की मुलाकात,

याद है अब तक।

हंसने खुश होने के ख्यालात,

याद है अब तक।

सोच सिर्फ इस बात का है।

यह क्या हो गया?

चंद दिन बाद का सजाया,

सपना पल में टूट गया।

यह क्या जिंदगी का संयोग है।

या आंख मिचोली।

बात इतनी सी थी,

ठीक हो जाओ खेलेंगे होली।

पर जिंदगी को कुछ और,

ही मंजूर हो गया।

जो बनाया था।

प्लान वह चकनाचूर हो गया।

बिना प्लान ही जिएं,

जिंदगी यह कैसे हो सकता है।

ऊपर वाले का क्या?

किसी का प्लान,

वह बदल सकता है।

समझ लो अब भी,

इसकी डोर जिंदगी देने वाले के पास।

तुम यूं ही अपने आप को,

समझते हो सबसे खास।

कब किसी के डोरी,

खींच ले नहीं है आभास।

तभी तो हम सभी यही,

कहते हैं।लगाकर आस।

दीनबंधु दीनानाथ,

मेरी डोरी तेरे हाथ,

सारे कष्टों को हर कर,

प्रभु छोड़ ना देना मेरा हाथ।

0 दृश्य0 टिप्पणी

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
bottom of page