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तुमने क्यों कहा ,मेरा मन भर गया ?

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तुमने क्यों कहा ,मेरा मन भर गया

तुमने क्यों कहा, मेरा मन भर गया। यार यह तुम्हारा मन है, या कोई डब्बा। | उसमें कुछ डाला और वह भर गया। तुम्हारा मन है या कोई किताब । उसमें तुमने कुछ लिखा और पन्ना भर गया । तुमने कहा मेरा मन भर गया। यह मन कैसा ,जो समझता ही नहीं । जरा सी चोट क्या लगी , टूट गया ।

यार तुम से उसे संभाला ना गया । जरा सी ठेस क्या लगी घबरा गया।

अपने साथी को तो देख, उसने क्या-क्या सहा। अपने मन को फिर भी समझाता गया। हर चोट, हर ठेस को सहकर भी वह। तेरा मन ना भर जाए, भुलाता रहा। पर फिर भी यार ,तुम से उसे संभाला ना गया । इतनी जल्दी ही,तुम यह कह बैठे। यार तुमसे मेरा मन भर गया। तुम्हारे साथ रहना गवारा ना रहा । हमने तो सोचा यह बंधन सात जन्मों का। यही सोचकर जनम जनम के लिए जोड़ा गया। पर तुम से ना निभा एक दशक भी। इतनी जल्दी क्यों उठे, मन भर गया। क्या कमियाँ सिर्फ मुझ में है। जो मन नहीं सह सका, क्या यही मोहब्बत थी। जो दिल तुम्हारा कहे बिना, रह ना सका। कभी हमसे ही पूछ लिया होता जाना। जो कसक रहा था दिल में, कांटा बन कर। वह दिल से क्यों निकाला ना गया। क्यों कहा तुमने मेरा मन भर गया। जो खटक रहा था, मन को तुम्हारे। वह कह कर, खुद को क्यों हल्का ना किया।

क्या मैं सुंदर नहीं दिखती हूं? क्या मैं ध्यान नहीं रखती हूं? क्या मैं तुम्हारी परवाह ना करती हूं? क्या मैं तुम्हें नहीं समझती हूं? फिर क्या हुआ, वह वादा, वह सपना कहां। खो गया, जो देखा था, मिलकर वह कैसे जुदा हो गया। समझाओ या बताओ तो सही, वह प्यार था। या झोंका हवा का, आया और चला गया। फिर ना कहना,  जाने जाना। मेरा मन भर गया, मेरा मन भर गया।

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