
अपने जब दिल दुखाते हें।तो हर दिल से यह आवाज आती हें। मैने उसी दर्द को बताने की कोशिश की हें।कभी कभी तो पता ही नहीं होता।वह ऐसा क्यों कर रहे हें। लोग तो उसकी वजह ही ढूंढते रह जाते हें।
क्यों हम उन अपनों को समझ नहीं पाते?
क्यों हमें पता नहीं होता की उनकी तकलीफ़ क्या हें?
क्यों वह अपनों का दिल दुख कर बताते भी नहीं?
क्यों लोग यह नहीं समझते की जिन्हें अपना मानते हें।दिल दुखने का हक़ भी उन्हीं को होता हें?
क्यों वह जो हमारे अपने हें। थोड़ी गुंजाइश नहीं रखते प्यार और माफ़ी की?
जब दर्द अपनों के द्वारा दिया होता हें तब उसकी दवा भी अपने ही होते हें। और कोई उस मर्ज को ठीक नहीं कर सकता दर्द अपनों का

जिन्हें अपना समझते थे।
उन्होंने दिल दुखाया है।
कभी जो जान देते थे।
उन्होंने पराया बनाया है।
जो बातें थी मामूली,
उन्हें तो तूल देना था।
बातें तो बहाना था,
उन्होंने दम दिखाया है।
छोटी सी बात पर,
अफसाना बना बैठे।
कितनी बातें दिल में दबी थी,
उन्हें उजागर करवाया है।
जो बातें दबी थी,
उनमें चिंगारी सुलग उठी।
हमने तो हवा में उड़ा दी,
तुमने घर जलाया है।
अपनों ने ही हमको,
जब आईना दिखा दिया।
हम उन पर जान देते थे।
उन्होंने मजाक उड़ाया है।
सोचा ना था कभी,
यह दिन भी आएगा।
सब कुछ थे कभी जिनके,
उन्हें उन्होंने खामखा बताया है।
कौन सी कमी रही,
परवरिश में है ईश्वर।
जो हमें जान से प्यारे थे।
उन्होंने दिल में दर्द जगाया है।
फक्र था हमें जिन अपनों पर,
जिनके लिए सब कुछ कुर्बान।
सिला ए वफा को जब,
उन्होंने बैगरत बताया है।
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