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दीवारें जो कभी बोलती नहीं

अपडेट करने की तारीख: 24 जन॰ 2022



दीवारें  यह शब्द बहुत छोटा है। पर इसके मायने बड़े हैं।

दीवारें अलग करती हैं।

एक दूसरे से इसलिए ही बनायी जाती हैं। 

परंतु दीवार दिल के बीच बन जाती है।

दोस्ती में भी बीच मैँ आ जाती हैं। 

रिश्तों के बीच भी दीवार खिंच जाती है।

यह सब दीवार बहुत खामोशी से सहती है।      

दीवारें जो कभी बोलती नहीं

जब पुराने घर को नया कराया,

बहुत सी चीज है ,जो पुरानी हो गई थी।

उन सब को बड़ी शिद्दत से बदलवाया ,

फिर एक एक लाए हुए सामान को ,

बड़े करीने से लगाकर सजाया ।

घर ही नहीं ,दीवारों को भी सजाया ।

कलर चुन-चुन कर नैरोलैक का पेंट करवाया।

दीवार ही नहीं खिड़कियों को भी सजाया,

सोचा तो यही था,

कि अब यह दीवारें खुद ही बोल पड़ेगी,

पर दीवारें तो बोली ही नहीं ।

रोज घर की नुमाइश चलती रही,

कभी भाई, कभी बहन ,मामी, चाची ,

लोग आते रहे ,देखते रहे ,जाते रहे।

पर दीवारें थी,

जो बोलने का नाम ही नहीं ले रही थी।

सोचा तो यही था ,

जब पुराने घर को नया बनाएंगे ,

साजो सामान भी नया ही मंगवा लेंगे।

सबका अपना अपना कमरा है,

हर कमरे में टीवी है, और अपना फोन ,

हर कमरे में या तो टीवी बोलता है या फोन,

पर दीवारें खामोश है।

सबको किसी का ना होश है।

पर अपने दिल और दिमाग,

को हम कैसे बदल पाएंगे।

जिसमें पुराने को नया बनाने से ,

थोड़ा गुरुर, थोड़ा बड़प्पन, थोड़ा अमीरी ,

का जो बीज उग आया।

वह किसी को कुछ समझता ही नहीं,

शायद दीवारों को भी घमंड आ गया।

उन्होंने भी ना बोलने की कसम खा ली,

अब दीवारें भी नयी है, घर भी नया है,

पर घर में शांति भरा सन्नाटा है ,

फिर क्या खिड़कियाँ ,

कभी-कभी बोल पड़ती है।

हवा की आवाज, मोर की आवाज ,

पक्षियों की आवाज ,

आस-पड़ोस का शोर की आवाज ,

पड़ोस की घर से कुकर की सीटी की आवाज,

पर दीवारें अभी भी खामोश है।

कोई भी पेंट करा लो, दीवारें नहीं बोलती ।

घर होता है, और परिवार से होता है ।

घर वाले बोलते हैं, परिवार बोलता है।

पर दीवारें कभी नहीं बोलती।

दीवारें बस सुनती हैं,

सुनती हैं, तभी तो किसी ने कहा है,

कि धीरे-धीरे बोला करो,

दीवारों के भी कान होते हैं ।

सोचती हूं कि घर को नया क्यों किया ?

इससे तो पुराना ही बहुत अच्छा था,

उसमें हंसी थी, खुशी थी ,

प्यार था ,अपनापन था,

पर यह खामोशी भरा सन्नाटा तो ना था।

यह बड़े हो जाने का गुमान तो ना था।

घर कम से कम घर तो लगता था,

अब दीवारें हैं ,जो कभी बोलती नहीं ,

सिर्फ सुनती हैं ,अपनों की फुसफुसाहट।




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