
परवरिश शब्द याद आते ही हम समझ जाते हैं कि हमारे बच्चों के पालन-पोषण के लिए है।
बच्चों का पालन-पोषण आजकल के समय में एक कठिन कार्य हो गया है।
लोग बच्चों को केवल एक जिम्मेदारी के रूप में देखते हैं कि बच्चा पैदा हो गया अब उसका खाना पीना, पढ़ना लिखना, उठना बैठना, सब कुछ उनकी मर्जी से होगा क्योंकि वे उनकी जिम्मेदारी हैं।
बच्चों की मर्जी कुछ मायने नहीं रखती माता-पिता बच्चों से परेशान है ।अब बच्चे अपने माता-पिता से।
हम बच्चों को समझने के लिए क्या करते हैं। कई बार तो हम उनकी बात भी पूरी नहीं सुनते।
घर में यदि बच्चों का झगड़ा हो गया हो। तो हमेशा गलती बड़े की ही मानी जाएगी।चाहे गलती छोटे कि क्यों ना हो क्योंकि छोटा तो छोटा है।
बड़ा समझदार है। उसने ऐसा क्यों होने दिया।
कुछ माता-पिता ज्यादा ही सफाई पसंद होते हैं। तो यदि जरा सा भी कूड़ा फैला दो। जो कि साफ किया जा सकता है।
या जूते घर के अंदर पहन कर आ जाए। या कीचड़ से सने जूते घर में लेकर घुस आए ।
या बच्चे अपने स्वभाव की वजह से। या बचपन के कारण अपने सामान को कपड़ों को इधर-उधर फैला दें।
तो भी मानो घर में आसमान टूट पड़ता है।
यह सफाई पसंद माता-पिता को बर्दाश्त नहीं।
वह रोज तो ऐसा नहीं करते पर कभी-कभी कर दिया तो क्या?
वह सही नहीं किया जा सकता।
क्या उसे साफ नहीं किया जा सकता?
बच्चे ने अच्छे अंक प्राप्त किए तो आप जरूर शाबाशी देंगे। और यह बात अपने दोस्तों रिश्तेदारों को बताते हैं।
