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पराए घर (ससुराल )

अपडेट करने की तारीख: 24 जन॰ 2022

पराए घर जाना हें

मेरी अपनी कहानी (आप बीती )

नानी ने कहा इतना गुस्सा ना कर,

पराए घर जाना है।

मम्मी ने कहा खाना बनाया कर ,

क्या नाम खराब कर आना है।

बुआ ने कहा गम खाया कर ,

इतना उतावलापन ठीक नहीं ।

दादी ने कहा शरमाया कर,

यूं मुंह फट होना भी ठीक नहीं ।

इतनी सारी पाबंदी इतनी सारी नसीहतें।

याद रखना है,हर रोज सुनना ।

क्योंकि सब कहते हैं, बस यही पराए घर जाना है।

पराए घर जाना है ।

जैसे ही ससुराल गई सबसे पहले गुस्सा आया ।

जब पति देव ने सिनेमा ले जाकर ,

हाउसफुल का बोर्ड दिखाया ।

मैंने कहा इतना भी नहीं पता,

टिकट बुक करवाना है ।

फिर सिनेमा हॉल में जाकर ,

पिक्चर भी दिख लाना है ।

बिना बुकिंग कोई जाता है,

सारी इज़्ज़त पर पानी फिर गया ।

सबको पता था सिनेमा जा रहे हैं ।

गुस्से से सारा दिमाग ही हिल गया ।

फिर याद आया नानी ने कहा,

गुस्सा ना करना है ।

फिर आई बारी खाने की ,

जब मैं वह बनाने चली ।

ना स्वाद का पता था ,

न सबके टेस्ट का, मचने लगी खलबली ।

मैंने जो भी सब्जी बनाई ,

घी उसमें से बह रहा था ,

मिर्ची की तो बात ना पूछो ,

खाने वालों का पसीना निकल रहा था ।।

सासु मां ने मोहल्ले भर को ,

वह घी तेल की नदी दिखाई।

और मिर्ची की कहानी तो ,

बहुत रस लेकर समझाई।

फिर याद आया मम्मी ने कहा था ,

खाना बनाया कर।

क्या नाम खराब कर आना है ?

फिर आई गम खाने की बारी ,

ज्यादा ही उतावली हो गई।

कभी किसी की सुनी ना जीवन में,

कैसे मैं वह सब सह गई ।

समझ नहीं आ रहा था ,

यह बदलाव है या कोई कहानी ।

यह है प्यार पति देव का,

जिन्होंने बदल दी ये जिंदगानी।

मेरे गुस्से को कम करने में ,

जीवन साथी ने भूमिका निभाई ।

इससे पहले ही वह समझ जाते थे ,

क्या करना है हर बात बताई ।

शर्माना तो सीखा ही नहीं था,

जब विदा हुई तो फिर कहां दादी ने,

गले मिलकर रो ले,

पर आँसू तो आते ही नहीं,

क्या हुआ? कहा दादी ने ,

अब मम्मी से गले मिले ,

पापा से गले मिले,

पर ना रोने पर शर्म आई,

लोग क्या कहेंगे ,कि रोयी भी नहीं।

रोयी भी नहीं, यह सोच कर फिर मैं घबराई ।

कोशिश की और फिर मैं रोई,

ऐसा भी कहीं होता है,

यह जिंदगी की हकीक़त है ,

कोई नाटक करता है ।

कोई रोता है, क्यों रोज उस घर जाने के लिए ,

जो बचपन से सुना था।

पराए घर जाना है, पराए जाना है।

वह सुना था ,जब जाना ही वहीं था।

रहना भी वहीं था, खाना भी नहीं था।

और जीना भी वहीं था ,

चाहे ना आता हो गुस्सा छुपाना।

ना कभी आया तुम्हें शर्माना ,

तो फिर क्यों रोना ।

यहां आकर मुस्कुराना,

यहां आकर जिंदगी शुरू होती है ।

सही मायने में दिखती है, समझती है।

जिंदगी मैं ,जब देखती है,

जब शादी हो जाती है।

तब हर लड़की यही कहती है,

अपने घर जा रही हूं ,मिलने आई थी।

सब से कहती है,अब सोचना आपको ,

आप अपने घर आए हैं ।या पराए घर ।

यह घर और यहां के रिश्ते,

हरदम अपने रहते हैं ,ना होते पराये ।

फिर ना कहना कभी, पराये घर जा रही हूं ।

यह घर हमेशा आपका अपना घर हें और रहेगा।




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