यह कविता प्रेम चंद जी की कहानी दफ्तर के बाबू पर लिखी हेँ। इस कहानी में प्रेमचंद जी ने दफ्तर के बाबू के जीवन की वेदना बताई हें ।
एक दफ्तर के बाबू की जिंदगी बहुत मुश्किल होती हें । इसलिए ही वह इतना चिड़चिड़ा होता हें। वह कितनी मुश्किल से अपना घर चलाता हें । ओर उसकी नौकरी छूटने का डर तो उसे हमेशा सताता हें।
इसलिए वह सारे काम बिना न नुकूर किए बिना करता हें । यह प्रेमचंद जी के जमाने का बाबू था । पर आज के दफ्तर का बाबू अलग हें । वह किसी से डरता नहीं हें । काम भी अपनी मर्जी से करता हें ।
चाहे आप कुछ भी कर लो ,जब तक उसकी फाइल पर चढ़ावा नहीं ,तब तक काम भी नहीं करेगा ।

जब तक आपको नों नों आँसू ना रुला दे ,तब तक अपने काम की सोचना भी नहीं ।वह किसी से नहीं डरता । साहब को भी अपने काम करवाने के लिए रिकवेस्ट करनी पड़ती हें ।
वह कल के दफ्तर का बाबू था । ओर यह आज के दफ्तर का बाबू हें ।
