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प्रेम चंद जी की कहानी इस्तीफा पर लिखी एक कविता दफ्तर का बाबू


यह कविता प्रेम चंद जी की कहानी दफ्तर के बाबू पर लिखी हेँ। इस कहानी में प्रेमचंद जी ने दफ्तर के बाबू के जीवन की वेदना बताई हें ।

एक दफ्तर के बाबू की जिंदगी बहुत मुश्किल होती हें । इसलिए ही वह इतना चिड़चिड़ा होता हें। वह कितनी मुश्किल से अपना घर चलाता हें । ओर उसकी नौकरी छूटने का डर तो उसे हमेशा सताता हें।

इसलिए वह सारे काम बिना न नुकूर किए बिना करता हें । यह प्रेमचंद जी के जमाने का बाबू था । पर आज के दफ्तर का बाबू अलग हें । वह किसी से डरता नहीं हें । काम भी अपनी मर्जी से करता हें ।

चाहे आप कुछ भी कर लो ,जब तक उसकी फाइल पर चढ़ावा नहीं ,तब तक काम भी नहीं करेगा ।

confused businessman checking time on wristwatch

जब तक आपको नों नों आँसू ना रुला दे ,तब तक अपने काम की सोचना भी नहीं ।वह किसी से नहीं डरता । साहब को भी अपने काम करवाने के लिए रिकवेस्ट करनी पड़ती हें ।

वह कल के दफ्तर का बाबू था । ओर यह आज के दफ्तर का बाबू हें ।

दफ्तर का बाबू

दफ्तर का बाबू बेजूबान हें , वैसे तो सभी कामों का समाधान हें ।

उसके बिना किसी को, ना मिले कभी कोई भुगतान है। दफ्तर जाओ बाबू को, कह दो जो भी कहना है।

ना कुछ बोलेगा, ना देखेगा, करेगा वह जो करना है। मजदूर को आँख दिखाओ, तो वह तियोरियां बदल लेगा ।

कुली को डांट लगाओ तो ,सामान फेंक कर दम लेगा। भिखारी को डांट दो, तो गुस्से की निगाह से देख लेगा।

पर दफ्तर का बाबू, वह बेजुबान हें| सब कुछ भी सह लेगा। चाहो तो उसे आप दिखाओ, डाँटो चीखो ,पुकारो ,सुन लेगा ।

कुछ भी कह दो या बता दो काम ,माथे पर बल ना डालेगा । आपके कामों को पूरा करने में, वह जी जान लगाएगा ।

आपको काम याद आया, झट बाबू को बुलवाया। दिन देखा ना रात ही देखी, चाहा जब तक काम बताया।

क्यों कि उसके कामों को ,सराहता ना सम्मान देता । पूरा जीवन दफ्तर में, वह बाबू बन कर कलम घिस देता।

ना कोई सहानुभूति है ना कोई प्रशंसा मिलती है । जब देखो दफ्तर के बाबू को ,सबसे डांट ही मिलती हैं।

पर एक दिन उस बाबू का, स्वाभिमान जाग आया । बाबू ने उस अफसर को सही रास्ता बतलाया ।

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