फांसले

जरा सा गुरुर आते ही,
इंसानियत को मरते देखा है।
जेब को भारी देख,
लोगों को झुकते देखा है।
गरीबों का स्वाभिमान,
खत्म होते देखा है।
उनके दिए जख्मों को,
और गहरे होते देखा है।
मैंने गरीब को एक कदम ही सही,
अमीरी की ओर बढ़ते देखा है।
हिम्मत कर उठते, गिरते,
और संभलते देखा है।
मैंने गरीब को गरीबी की ओर,
मुझे चिढ़ाते देखा है।
खुद के प्रयत्न और मेहनत से,
हालात बदलते देखा है।
कोई अमीर नहीं चाहता,
गरीब के सिर का उठना।
उठ जाए इसलिए वक्त बेवक्त,
उस का मान को कुचलते देखा है।
अब वह वक्त नहीं गरीब भी,
अमीर बन सकता है।
पसंद हो या ना पसंद,
दोनों को एक ही टेबल पर खाते देखा है।
उनके अपने अंदाज में मैंने,
उन्हें सपने पूरे करते देखा है।
जेब को भारी देख,
लोगों को झुकते देखा है।
जेब में सिक्कों की खनक से,
सपनों को मारते देखा है।
पूरे ना हो पाते देख,
चुप चाप खिसकते देखा है।
फिर कभी ले लूंगा ये कह कर,
दिल को समझाते देखा है।
अभी इसकी कोई जरूरत नहीं,
बस यही बड़बड़ाते देखा है।
ईगो अगर हर्ट हो तो,
अमीरी की जिद पूरी करते भी देखा है।
उस जिद को पूरा करने को,
दिन रात झूझते देखा है।