फोन के बिना ज़िंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। फोन केवल सबकी जरूरत ही नहीं प्राण हें।

फोन में ज़िंदगी
अरे अरे क्या हो गया ,
क्या बताऊँ,फोन खो गया।
नहीं मिल रहा,देखो तो सही,
कहाँ रखा,याद नहीं,
किससे बात की थी।
सोच तो सही,किसे मिलाया।
आखिरी बार, कहाँ बैठी थी।
जल्दी ढूंढ मेरी,
धड़कन तेज हो रही।
लगता फोन के बिना,
दुनिया ही खत्म हो रही,
कोई तो घंटी बजाओ,
कोई लाइट जला कर देखो।
मेरा डाटा,मेरी फोटो,
सब कुछ तो उस फोन में हेँ।
सोने से ज्यादा कीमती,
सहेलियों की बातें और,
नंबर भी उसी फोन में हेँ।
जब फोन नहीं मिलता,
हम सब ऐसे ही,
परेशान हो उसे ढूंढते हेँ।
सारा घर उथल पुथल,
कर घूमते फिरते हेँ।
फोन हमारी जरूरत ही नहीं,
हम सब का जीवन प्राण हैं।
जरूरत सबकी पूरी करता,
ऐसा संजीवन करता बाण है।
माता पिता, दादा-दादी,

बच्चे बड़े सब साथ साथ।
बैठे हुए एक ही कमरे में,
और होता चालू फोन उनके हाथ।
सब लोग लगे हुए फोन पर,
होते अकेले पर बैठे साथ।
फोन ही सबसे जरूरी है,
चाहे करे ना कोई काम साथ,
किसी के लिए सौतन जैसा,
किसी के दिल का टुकड़ा।
बिना फोन तो ऐसा लगे,
जिंदगी भी एक दुखड़ा।
फोन के लिए बच्चे भी,

देखो कितना झगड़ा करते।
एडिक्ट हो जाते फोन से,
बिना उसके फिर ना रहते।
कुछ छोटे बच्चे तो खाते,
पीते फोन कोई देखकर।
नहीं मिलेगा यदि फोन,
तो रोते रहते चीख चीख कर।
कोई तो तल्लीन है इतना,
चलते-चलते बातें करता।
भूल जाता, जाना कहाँ,
पहुंच जाता कहीं तब सोचता।
कई माताएं फोन में लीन,
जब बच्चों को खाना खिलाती।
मुँह की जगह बच्चे की,
नाक पर खाना ले जाती।
क्या बताऊं महिमा फोन की,
जिंदगी पूरी बदल डाली।
एक अकेले फोन ने सब की,

जरूरत खत्म कर डाली।
कुछ लोग खाना बनाते बनाते,
लग जाते फिर गपशप में।
सब्जी जल जाती, देख ना पाती,
भूल जाती वो गपशप में।
फोन तो जरूरी है,
पर बैटरी उसके प्राण है।
अगर बैटरी जीरो है,
तो बेचैन उसकी जान है।
ढूंढते रहते चार्जर को,
बैटरी फुल करवाने को।
मेहनत करते,हाथ जोड़ते,
मिन्नत करते हाथ जोड़कर.
चार्ज बैटरी कराने को।
इधर बैटरी गुल फोन की,
उधर उतर जाता चेहरा।
इधर से उधर चक्कर लगाते,
चिंतित दिखता है चेहरा।
रात को घर वाले ना देखें,
फोन को छुपा लेते।
फिर रजाई के अंदर,
मनचाहा सब देख लेते।
जब फोन नहीं मिलता,
तब बच्चे हुड़दंगी होते।
नहीं मानते कोई कहना,
वह तब कुछ नहीं सुनते।
सारा दिन फोन पर गेम खेलते,
कहना भी वह ना माने किसी का।
तंग आ गये सब घर वाले,
सोचें क्या उपाय अब इसका।
ना भूख हें ना प्यास हें।
गेम के आगे पूरी,

दुनिया बकवास हें।
ना चिंता पढ़ने की,
ना ही उन्हें सेहत की।
ना आँखों की,
ना अपने खोये सपनों की।
फोन से यूट्यूब देखकर,
खाना बनाना सीख गये।
फैशन कपड़े, जरूरत का,
सामान खरीदना सीख गए।
फोन की बिना जिंदगी,
बेजान व्यर्थ अधूरी लगती।
नहीं चाहिए चाहे और कुछ,
दुनिया पूरी वीरान लगती।
जो लगते थे, दूर-दूर,
वह सब पास में दिखने लगे।
फोन के व्हाट्सएप से,
वे सब नज़दीक लगने लगे।
चाहे बैठे विदेश में,

फिर भी सामने दिख जाते।
सारी बातें हो जाती,
हम कितने करीब आ जाते।
अब तो लगता फोन के,
बिना जिंदगी अधूरी लगती।
फोन नहीं वह जीवन है,
बर्बाद पूरी जिंदगी लगती।
आजकल तो सारे बच्चों की,
पढ़ाई भी फोन पर।
काम चाहे कुछ भी करें,
पर रहती नजर फोन पर।
वैसे तो हम बच्चों को मना,
करते फोन के लिए।
पर पढ़ाई के बहाने ले लेते,
मजबूर हेँ हम देने के लिए।
गाने सुन लो, फोटो खींच लो,
पढ़ाई कर लो, कंप्यूटर सीख लो।
वीडियो बना लो,समय देख लो,
खाना बनाना सीख लो,
भजन सीख लो, बोलों मंत्र।
सीख लो पूजा, सीख लो जिंदगी को।
आसान बना दिया जीना भी,
सीख लो गुरुओं से रहना,
पैसे नहीं तो कमाना सीख लो।
लगता है फोन नहीं है,
अलादीन का चिराग है।
स्पीकर पर बोलो,
हाजिर लगता गुलाम है।