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बँटबारा भाई भाई का

जब कभी एक आंगन,

के दो आंगन हो जाते हैं।

समझ लो तब भाई से भाई,

जुदा हो जाते हैं।

जो हुआ करते थे,

जान पूरे घर की।

वह कितनी जल्दी ,

अनजान हो जाते हैं।

फिक्र जो करते थे,

पूरे परिवार की।

कैसे एक दूसरे का,

साथ छोड़ जाते हैं।

होता था जहां,

ख़ुशियों का माहौल।

कैसे वहां पर,

वीराने छा जाते हैं।

वैसे तो काम होता है,

जलने वालों का।

कैसे हंसते खेलते,

घर में आग लगा जाते हैं।

जब कभी एक आंगन के,

दो आंगन हो जाते हैं।

समझ लो तब भाई से,

भाई जुदा हो जाते हैं।

खाते ना थे खाना,

अकेले कभी वह।

आज देख कर भी,

अनदेखी कर जाते हैं।

सुख दुख में रहते,

खड़े एक दूजे के साथ।

कैसे वह सुनकर भी,

आ नहीं पाते हैं।

सोचती हूं कभी यह,

दिन मैं ना देखूं।

पर दुनिया के दस्तूर,

आड़े आ जाते हैं।

जब कभी एक आंगन,

के दो आंगन हो जाते हैं।

समझ लो तब भाई,

से भाई जुदा हो जाते हैं।

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