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बचपन की यादें

हम सब को अपना बचपन बहुत याद आता हें। चाहे हम कितने भी बड़े क्यों नया हो जाएं। पर बचपन में वह कोई भी नहीं भूलता।

आज में पोते पोती वाली दादी माँ हूँ। पर मुझे मेरा बचपन वैसे ही याद हें।जैसे यह सब अभी मेरे आँखों के सामने चल रहा हें। बचपन के दिन बड़े प्यारे होते हें।

मेरी कविता पडकर या सुनकर शायद आपको आपका बचपन याद आ जाए।

मैं बड़ी हो रही हूँ।

और मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है

उम्र बढ़ रही हें

और वक्त का पहिया तेजी से चल रहा हें।                                                                                       

अभी कल किसी बात थी ,

जब गलियों में खेला करते थे।

कभी छुपन छुपाई ,कभी पहल दूज,

रस्सी भी कूदा करते थे।

कभी गुट्टे ,कभी चौपड़ ,

कभी लूडो भी खेला करते थे।

अब तो सिर्फ यादें हैं ,जो खेले थे,

कभी वह याद आ रहा है।

मैं बड़ी हो रही हूं ,

मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है।

सोचते थे चांदनी रातों में ,

जब छत पर बिस्तर लगा कर हम।

बोलते थे पहाड़े 30 तक,

सुनते थे कहानी तब से हम।                                                                                             

अब वह चांदनी रातों का,

सुनना और सुनाना याद आ रहा है।

मैं बड़ी हो रही हूं,

मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है।                                                                                         

खेलते खेलते कब बड़े हो गए ,

हुई शादी और हो गई पराई।

अपने घर का आंगन छोड़ा ,

माता पिता ने कर दी पराई।

पढ़ाई छूट गई ,

स्कूल के सब साथी ही छूट गए।

,सहेलियों में गुजरा,

वह वक्त याद आ रहा है।                                                                                                     

मैं बड़ी हो रही हूं,

मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है।

उस घर से इस घर में आना ,

आकर अपना फर्ज निभाना।

सब लोगों का ध्यान भी रखना ,

पूरी सब फरमाइश करना।

वहां मम्मी का पूछना ,

पापा का प्यार लुटाना ,याद आ रहा है।

मैं बड़ी हो रही हूं ,

मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है।

सासू मां का डांट लगाना ,

और ननद का हुक्म चलाना।

सब के कामों को करना ,

सबको बस हां जी हां जी कहना।

अपने घर शोर मचाना,

और जिद पूरी करवाना ,याद आ रहा है।

मैं बड़ी हो रही हूं,

मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है।

जीवन में चाहे सब भूल जाए ,याद पर बचपन ही रहता है।

वह नोकझोंक ,रूठना मनाना, लड़ाई झगड़ा ,याद रहता है।

वह पापा से शिकायत करना,

मम्मी से डांट लगवाना ,याद आ रहा है।

मैं बड़ी हो रही हूं ,

मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है।

अपने पोते पोती को देख, बचपन अपना याद आ रहा है।

जी भर के जिया ,हमने बचपन पर, उनका बचपन ।

वैसा ना नजर आ रहा है।

इनको हंसता मुस्कुराता देख ,

मस्ती में धूम मचाता देख।

मेरा दिल बहुत ही मुस्कुरा रहा है।                                                                                      

मैं बड़ी हो रही हूं ,

मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है।

अब कहां वह चांदनी रातें,

गलियों में भी खेलना बंद है।

ऐसी स्कूल, ऐसी बस है ,

घर से बाहर जाना बंद है।

बस टीवी और मोबाइल है ,बस उनको,

छोड़ना ना उनको भा रहा है।

मैं बड़ी हो रही हूं, मेरा बचपन याद आ रहा है।

ना किताबों को पढ़ना, ना लिखना ,

ना दोस्त है ,ना सहपाठी,

ना मिलना मिलाना, गपशप,

न कानाफूसी ,ना मजाक उड़ाना।

ऑनलाइन क्लास लेना ,

ना कुछ समझ में आना।

उनका प्यारा सा बचपन,

बस यूं ही व्यर्थ जा रहा है।

मैं बड़ी हो रही हूं,

मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है।

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