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बचपन बीता अभावों में,

कई अनसुलझे सवालों में।  

शोर मचाते थे वह दिल में,

आकर के मेरे ख्यालों में।

कौन अमीर है,कौन गरीब,

यह सब आए कहाँ से गरीब।

कैसे बना गरीब,ये सवाल,

उठ रहा मन में,इन सवालों को,

सुलझाने में जाने कितने वर्ष लगे।

मिला जवाब बहुत धीरे धीरे,

जब हम मेहनत करने लगे।

कितने दिन और रात बीत,

जाते थे बिन खाए पिए।

पर उफ ना निकलती दिल से,

किस से कहें घबराए हुए।

वक्त बीतता गया ना मानी हार,

हमने कभी जीवन में।

उलझने लगे सब सवाल,

जो उठे थे कभी हमारे बचपन में।

बीत गया बचपन अभावों वाला,

ना कोई गम ना तूफान था।

आने वाले पलों में जीवन,

बदलने का एक इम्तिहान था।

अब हम दोनों मिलकर,

लड़ने लगे लड़ाई जीवन की।

अब सवाल अनसुलझे,

भी सुलझने लगते जीवन की।

फिक्र ना थी हम अब दो नहीं,

एक जान ही हैं,मजबूत है।

दिल दिमाग से टूटेंगे नहीं,

क्योंकि एक ही प्राण हेँ।

सब चिंता फिकरों से लड़ कर,

जीवन हमने बदल लिया,

बचपन से बुढ़ापे का सफर,

खुशियों में हमने बदल लिया।

पर अब जो यह उम्र का,

पड़ाव आ रहा धीरे-धीरे।

यह भी एक चुनौती है।

जो मिल रही है धीरे-धीरे।

फिर से एक होकर हमको,

अनसुलझों को सुलझाना है।

गाड़ी पटरी के उतरने से पहले,

हम को उसे बचाना है।

फिर वही हालात,वही जज़्बात,

सामने आ पहुंचे,शुरू जहां से हुए थे।

वहीं पर वापस हम फिर आ पहुंचे।

अब जुनून ही नहीं, चुनौती है।

फिर संभलने की छोड़ो,

अब यह रिटायरमेंट उम्र नहीं,

अभी रुकने की,फिर से वही।

हम दोनों अपनी नई,

जिंदगी शुरू करें।

हम अब भी सब कर सकते हैं।

भूले नहीं बस शुरू करें।

चलो उठो जागो, अभी तो देर नहीं।

जल्दी ही है,बीत ना जाए,

यह घड़ियां जो बता रही,

वक्त यह ही सही है।

फिर से काम शुरू करते हैं।

यह घड़ी नहीं आराम की,

एक बार फिर बता दे,

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