यह कविता मैंने बारिश में गई थी। तब जो महसूस किया ,वैसे ही लिखा है ।
ठंडी हवा चल रही है,
मन मस्त हो रहा है।

बादल भी आज काले,
दिल गुदगुदा रहा है।
यह बूंदे बारिश की,
मेरे गालों को छू रही है।
स्पर्श इतना प्यारा,
तन मन डिगा रही है।
लगता हें आज बादल भी,
शोर कर रहे हैं।
गरज गरज कर बादल,
मुझ को डरा रहे हैं।

बिजली भी चमक कर,
रोशनी दिखा रही है।
आवाजें कर कर के,
नज़दीक ला रही है।
यह बूंदे बारिश की,
मेरे गालों को छू रही हैं।
कुदरत की ये नीयत ,
मन को डिगा रही है।
साजन के आने की,
दस्तक सुना रही है ।
यह मौसम आज मेरा,
तन मन खिला रहा है।
इसका मिज़ाज दिल को,
कुछ याद दिला रहा है।
वर्षा भी आजकल जमकर,
बरस रही हें।
लगता है सारी नदियां ,
सागर से मिल रही हैं।
ए बादलों जरा ठहरो,
तुम तब ही बरसना।
आ जाए मेरा साजन,
तूम जमके बरसना।
घर में हो हम दोनों ,
और हो यह मौसम।
डूबे रहे खुद ही में ,
ना हो कोई भी गम।

मौसम का यह तकाजा ,
धड़कन बढ़ा रहा है।
ठंडी हवा चल रही है ,
मन मस्त हो रहा है।
खुश हो जाएं सोच कर,
महसूस कर हम प्यार को।
आती रहें बहारें,
नज़दीकियाँ बढ़ाने को।
मौसम आज फिर से ,
आशिकाना हो गया है।
उनको बुलाने को ,यह दिल बेताब हो गया है।
ढूंढे जरा उनको ,
अब इंतजार ना हो रहा है।
जल्दी आ जाओ,
ठंडी हवा चल रही है
मन मस्त हो रहा है|
बादल भी आज काले,
दिल मचल रहा है|