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बुढ़ापे की परेशानियाँ


जब कोई बुढ़ा होता है,

तो साथ में बड़ा भी होता है।  

पर धीरे-धीरे घर में ही ,अपने वह कैदी होता है।

जब रिटायर हो जाता है, वही खाली सबको लगता है।

चाहे हो कोई भी काम किसी को,वही दिखाई देता है।

धीरे-धीरे अपने ही घर में ,वह कैदी होता है।

कोई कहता है सब्जी ला दो,बच्चों को छोड़ दो स्टॉप पर।

उनको बस से तुम ले आओ, कोई काम ना तुमसे होता है।

कभी पार्टी में जाना हो तो, बच्चों को तुम्हें संभाल लेना ,

उनको तो लुफ्त उठाना है, बंदिश में तुम्हें रखना होता है।

जब बूढ़ा हो जाता है तो,बंदिशें बहुत हो जाती हैं।

यहां ना जाओ, वहां ना बैठो, हिदायतें दी जाती हैं।

इनसे ही मिल सकते हो, उनसे मिलने की सोचना मत,

केवल वही कर सकते हो, जिसका परमिशन होता है,

धीरे-धीरे घर में ही, अपने वह कैदी होता हें।

कहते हेँ वहाँ तुम ना थूको ,कभी उठ भी जाया करो।

सारा दिन खाते रहते हो, कुछ भी तुमसे ना होता है।

गर बीमार कभी जो पड़ जाए तो ,भी कसूर आपका है।

रखते नहीं जीभ को बस में ,बस स्वाद चाहिए होता हें।

पर धीरे-धीरे घर में ही, अपने वह कैदी होता हें।

आंखों से भी कम दिखता है,कानों से ना सुनाई देता है,

आवाज लगाते रहते हैं,पर किसी ने सुना ना होता है।

इनको तो कोई काम नहीं ,जब देखो तब चिल्लाते हैं।

सब को खाली समझते हैं,हर वक्त बुलाना होता है।

घर आ जाए कोई तुम्हारा दोस्त,तो अकेला नहीं वह छोड़ेंगे,

डर है कहीं ना कह डालो, वह जो तुम्हारे साथ में होता है।

पर धीरे-धीरे घर में ही ,अपने वह कैदी होता है।

जब दर्द शरीर में होता है,तो सोच कर भी डर लगता है,

कैसे बीतेंगे रात और दिन, मन घबरा कर नहीं सोता है।

कभी लगे दवाई चाहिए तो,बच्चों को कह देते हैं,

आकर बोला भूल गया, कुछ याद है ना मुझको रहता है।

पर धीरे-धीरे घर में ही ,अपने वह कैदी होता है।

कभी लगता है बच्चों को शायद,यह तजुर्बा काम आए।

पर उन्हें फालतू लगते हेँ।कोई ज्ञान ना चाहिए होता हें।

क्या बूढ़ा होना गुनाह हें ,कोई मर्जी से बूढ़ा होता है।

जितनी सांसे हैं मिली, उन्हें पूरा करना होता है।

बीमारियां आकर घेरती हैं ,कभी दिमाग काम नहीं करता।

कभी लगता है डिप्रेशन भी,कभी हेल्थ का ध्यान नहीं होता।

जो चाहिए उन्हें बुढ़ापे में,तुम्हें चाहिए था जब पैदा हुए,

जब तुम्हें चाहिए था,उन्होंने दिया, अब तुम्हें लौटाना होता है।

हर व्यक्ति यही सोचता है कि,कभी ना मैं बूढ़ा होंऊ।

खत्म हो जाए मेरा जीवन ,अगर मोंहताज किसी का होता हें।

नहीं चाहिए सहारा उनको, चाहिए सिर्फ प्यार ही बहुत,

प्यार नहीं दे सकते हो तो, परिवार किस लिए होता है।

कभी-कभी बूढ़ा व्यक्ति,अच्छा भी लगने लगता है,

लेनी हो जमीन और जायदाद,तब वही सर्वोच्च भी होता है।

बुजुर्ग हमेशा ये चाहे,पूरा परिवार हो साथ हमेशा,

सब उसके चारों और रहें ,उन्हें देखकर वह खुश होता।

नाती पोते जब साथ रहे, घर में उनकी किलकार रहे।

गूँजता रहे सारा घर शोर से, शांत न कोई होता है।

पर धीरे-धीरे घर में ही ,अपने वह कैदी होता है।


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