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बेइंतहा मेहनत



वह बेइंतहा मेहनतों को,

किए जा रहा था।

पर उन मेहनतों का छोर,

नजर ना आ रहा था। कभी तो सोचो बैठकर,

मेहनत करने वालों।

करते करते थक गए,

पर रास्ता ना नजर आ रहा था। वह बेइंतहा मेहनतों,

को किए जा रहा था।

करके देख लो जो,

भी करना चाहते हो। दौड़ दौड़ कर जी रहे,

हो क्या पाना चाहते हो।

शायद वह तुम्हें मिल जाए,

जो मुझे नहीं मिल पा रहा था। वह बेइंतहा मेहनतों,

को किए जा रहा था। भूख प्यास सब गायब हो गई,

गोल पाने के लिए।

थकान ना नजर आती थी,

सपने पूरे करने के लिए। तुम क्या जानो ,मैं भी गुजरी थी, वही सपना बनकर,

नजर आ रहा था। वह बेइंतहा मेहनतों,

को किए जा रहा था।

पर चलते-चलते इस सफर में ,

सब कुछ देख चुकी हूं मैं। चाहे जो करके सब देखा,

अब वह सब खो चुकी हूं मैं।

दुख है तुम भी क्या कर लोगे,

जो किया वह व्यर्थ जा रहा था। वह बेइंतहा मेहनतों को,

किए जा रहा था। क्योंकि काम तभी काम होता है,

जब तक करो नाम होता है।


पर एक सफर खत्म होने के बाद,

किसी को ना यह याद होता है। इन मेहनतों का नतीजा देखोगे जब,

सब फालतू नजर आ रहा था। वह बेइंतहा मेहनतों को,

किए जा रहा था। अब किसी को नहीं जरूरत तुम्हारी,

आओ ना आओ मर्जी तुम्हारी।

सब कुछ करके दे दिया ,

अब बैठ जाओ फुरसत तुम्हारी। इतनी मेहनत का फल भी,

हमको ना मिल पा रहा था।

वह बेइंतहा मेहनतों को,किए जा रहा था। कहते भी नहीं पर दिखता है,

जरूरत की वजह क्या हें ?

तुम जैसे रहो ,जो खर्च करो,

पर सोचो ना बे वजह क्या है ? बेचैनी बढ़ा देते हैं यह सब,

यह क्यों ना नजर आ रहा था? वह बेइंतहा मेहनतों को,

किए जा रहा था। बिना सोचे, बिना समझे ,

अपना जीवन लगा रहा था।

समझ आ गया जल्दी ही,

क्यों हम करते हैं इतना? सब कुछ छोड़कर लगे रहते,

फायदा ना मिलता इतना।

तुम भी समझ लो जल्दी से,

कुछ ना करके वह सता रहा था। वह बेइंतहा मेहनतों को,

किए जा रहा था।

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