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मकर संक्रान्ति का पर्व ,makar sankranti ka parv

पर्व मकर संक्रांति का

मना रहे थे, हम सब मिलकर पर्व मकर संक्रांति का।

गौशाला जा करके मनाया, हमने यह पर्व संक्रांति का।

रास्ता बहुत ही सुंदर था, पेड़ पौधे आकर्षक थे।

बादल भी थे काले-काले, दृश्य बहुत मनभावन थे।

पूरे रास्ते गाने सुनते,

प्रकृति का आनंद लिए।

पहुंचे हम सब गौशाला, गौ माताओं से मिलने के लिए।

गौशाला में गायों को देख, मत पूछो क्या आनंद आया।

कोई छोटी, कोई बड़ी, काली, भूरी, सफेद देख मन हर्षाया।

किसी के सींग बहुत बड़े थे,

कोई सीधी चुपचाप खड़ी।

कोई पीछे से सबको धकेल, आगे आकर हो गई खड़ी।

किसी की आंखें चमक रही थी, कोई उदास दिखाई पड़ी।

किसी ने आंख से आंख मिलाई, कुछ कहने को आगे बढ़ी

बछड़े बछड़ी भी प्यारे थे, वह भी सब देखकर दौड़ आए।

देखें जब लड्डू उन्होंने तो, वह भी सब द्वार पर दौड़े आए ।

लड्डू का थाल देख कर के,

सब गायेँ भी आगे आई।

इंतजार था, उन सब को, देख रही कब, उनकी बारी आई।

लड्डू को देखकर कुछ गायें,ऊपर ऊपर चढ़ने लगी।

दिल बैठ गया, मन घबराया, जब वह रंभाने लगी।

सबको सब्र था, लड्डू का,उनको जरूर मिलेगा।

बारी का अपनी इंतजार, कुछ में तो झगड़ा होगा।

कुछ झगड़ालू थी, वह सींग मार कर आगे आई।

दिखाकर ताकत अपनी-अपनी, लड्डू खाकर हरशायी।

हर गाय का अलग ही नंबर था, पीले रंग से बना हुआ।

सब की पहचान व नाम नंबर ही था, कानों में उनके लगा हुआ।

लड्डू भी न्यारे पौष्टिक थे, वह नों चीजों से बने हुए।

गायों को ताकत देते थे, दवा भी थे वो खाने के लिए।

सब को मजा बहुत आया,उन्हें लड्डू खिलाने में।

दिन सफल हुआ, त्यौहार मना,आनंदित गायों से मिलने में।

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