
जब भी कोई पूछता है।
और क्या हाल है ?
अनायास ही मुंह से निकल जाता है।
सब ठीक है।
चाहे चलने में असमर्थ हूं ।
घर में ही रहता हूं, कमर में दर्द है।
वजन बढ़ गया है,
परंतु फिर भी कोई भी पूछे,
बस यही कहता हूं,सब ठीक है।
कुछ आते हैं, मिलते हैं,
परंतु कुछ सिर्फ फोन करके,
अपना फर्ज पूरा कर लेते हैं।
मतलब तो जताने से है,
वह कितनी परवाह करते हैं।
आंखें भी कमजोर हो गई हैं,
कई बार धुंधला जाती हैं,
सुनाई भी कभी-कभी सही नहीं देता।
ऊंचा सुनता हूं ,दांत भी वैसे मजबूत नहीं रहे।
कि कुछ भी खा लूं, खाने से पहले सोचता हूं।
क्या खा सकता हूं?
क्या नहीं खा सकता?
यह भी बड़ी परेशानी है।

फिर भी पड़ोसी ने आकर पूछा ,
और क्या हाल है ?
बस वही तपाक से मैं बोल पड़ा,
सब ठीक है।
कोई कुछ भी कहे,
आजकल कुछ याद ही नहीं रहता।
सोच में पड़ जाता हूं,
कि याददाश्त को क्या हुआ ?
लोग कहते हैं, कल ही तो बताया था।
क्या इतना भी याद नहीं?
पर क्या करूं?
फिर भी सुनकर चुप हो जाता हूं।
घर पर आए बेटे के दोस्त ने पूछा,
अंकल कैसे हो ?
और मैं अपनी परेशानियों को छुपा कर बोला,
बेटा सब ठीक है।
शर्ट पहनता हूं, तो बटन खोले बिना ,
पहनने की कोशिश करता हूं।
भूल ही जाता हूं, बटन तो खोले ही नहीं।
मोजे पहनता हूं, तो बिना जोड़ी के पहन लेता हूं।
हर वक्त चश्मा कहीं भी रख कर भूल जाता हूं।
और फिर घर में अक्सर ढूंढता रहता हूं।
घरवाले पूछते हैं,
कुछ चाहिए क्या ?
तब भी बड़ी शालीनता से कहता हूं,
कुछ नहीं सब ठीक ही तो है।
