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रिवाजों की दुनिया

रिवाज में कुछ सिखाते हैं।

रिवाज हमारे पैदा होने से शुरू होते हैं।

और खत्म हमारे मरने के बाद होते हैं।

लड़का लड़की से शुरू,

और औरत आदमी पर खत्म होते हैं।

रिवाजों में ही जिंदगी बंधी है।

रिवाजों से जिंदगी उत्सव जैसी लगती है।

जिंदगी जीना सही है।

अगर उत्सव की जैसे जियो।

बीमारी कोसों दूर होगी।

हर दिन उत्सव की तरह मनाओ।

उन रिवाजों को चाहे जब पैदा हुए।

जन्मदिन या कुछ और बहाना,

उत्सव मनाने के लिए बहाना ढूंढो।

बहाना ना मिले तो सोचो।

आज मैं बहुत खुश हूँ।

चलो सेलिब्रेट करते हैं।

वजह ना मिले तो ना सही,

पर क्या सिर्फ खुश रहना काफी नहीं।

छोटी छोटी खुशियां ढूंढना शुरू करो।

उन्हें रिवाजों के उत्सव में बदल दो।

फिर मुझे यह जरूर बताना?

जिंदगी बदली या ना बदली?

खुश हो या नहीं?

क्या महसूस कर रहे हो?

आज कुछ अच्छा किया?

कुछ अच्छा हुआ?

किसी को खुश किया?

किसी का दुख बाँटा ?

किसी दुखी को मुस्कुराहट दी ?

यह सब क्या कम है, खुश होने के लिए?

क्या हम इन सब को रिवाज नहीं बना सकते?

अगर यह सब रिवाज बना लेते हैं।

तो यह भी सबकी जिंदगी में शामिल हो जाएंगे।

कि उनको ऐसे ही रहना है।

किसी को खुश करना है?

किसी के दुख बांटना है?

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