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शब्दों का जाल

जो मिश्री घोलते थे कभी,

वह शब्द तुम्हारे ही तो थे।

पर जो दिल चीर के चले गए,

वह भी शब्द तुम्हारे ही तो थे।

वह शब्द ही तो थे,

जो रात की नींद उड़ा गए।

आने वाला वक्त कैसा होगा,

उसकी दस्तक सुना गये।

यह शब्दों का जाल समझना,

बड़ा मुश्किल है जनाब।

जो समझ जाए वह तो दुनिया में,

दिल उसका खुली किताब।

ये शब्द ही हें जो कभी,

नश्तर से चुभ जाते हैं।

कभी-कभी यह शब्द,

दिल में शहद भी बन जाते हैं।

कब कौन सा शब्द इस्तेमाल,

करना है यह ना पता।

क्योंकि कभी आवाज आपकी,

शब्द किसी और के उस वक्ता।

ये शब्द ही हैं जो कभी दोस्त,

को दुश्मन बना देते हैं।

और कभी अपने को,

पल में पराया बना देते हैं।

सपने में भी कभी सोच,

ना सके जो शब्द सुने थे।

दिल को अंदर तक गमों,

में डूबो गए जो तुमने कहे थे।

इन शब्दों का इस्तेमाल,

सोचकर करो जनाब।

कब कितने अपनों को दुश्मन,

बना दे खबर तो रखो साहब।

वो शब्द ही तो थे जो,

अंदर तक झकझोर गये।

अभी तक सहज ना हो सके,

इस कदर दिल डुबो गये।

वह शब्द ही तो थे जो,

बता गये, हम कहां खड़े हैं।

जिनको जान से प्यारा समझते थे,

वह तो दिल से दूर खड़े हैं।

तुम क्या जानो उन शब्दों को,

जो हमको रुला गए।

तुम तो कह कर चले गये

तुम क्या जानो उन शब्दों को, 

जो हमको रुला गए।

तुम तो कह कर चले गए,

अब तक दिल सहमा गए।

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