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हमने सोचा,हमने क्या खाया?

हमने सोचा, हमने क्या खाया? 

क्या हुआ? जो शरीर घबराया।

क्या हमने खट्टा खाया? या मीठा,

तीखा खाया, या बिल्कुल फीका।

तला हुआ खाया या भुना हुआ।

गरम गरम खाया या ठंडा फ्रिज का।

क्या हुआ जो शरीर को बीमार पाया?

पेट दर्द हो रहा है।क्या दाल खाई थी?

सिर दर्द हो रहा है गैस बनाई थी।

आज पैर दर्द कर रहे हैं।

छोले खाए,नहीं नहीं।

राजमा के साथ चावल खाए।

हमने सोचा,हमने क्या खाया?

क्या हुआ जो शरीर को परेशान पाया?

शरीर बहुत थक रहा है।बिना काम किए।

कुछ कर नहीं पा रही हूँ?बिना आराम किए।

देखो तुमने जो खाया,

उसने अपना असर दिखाया।

तुमने खाने के साथ,

जिन विचारों को खाया।

उससे ही शरीर और मन घबराया।

वह भी विचार ही हैं।जिन्होंने सिरदर्द कराया।

वह भी सोच ही है।जिससे पेट दर्द पाया।

जब भी कुछ हो तो सोचते हेँ क्या खाया?

कुछ होता है।तो जरूरी नहीं,

कि वजह सिर्फ खाना हो।

जब कुछ होता है।तो विचार भी होते हें।

देखो क्या वे सही है? सोचो उन शब्दों को,

मन में उनको तोलो,

महसूस करो उन विचारों को,

वह क्या उथल-पुथल मचा रहे हैं?

तुम्हारे शरीर के हर अंग को हिला रहे हैं।

जो कोई ना कर सका विचार करा रहे हैं।

बिना गलत खाए,तुम्हें बीमार बना रहे हैं।

सोच कर देखो,हमने क्या खाया?

क्यों बिना खाए इतना बीमार पाया?

बीमार हम खाने से नहीं विचारों से होते हैं।

विचार ही हमें बीमार और ठीक करते हैं।

फर्क सिर्फ सोच का है,वक्त सोचने का है।

खाना खा रहे हो,रुको खाने के साथ।

गलत विचार,गलत सोच के साथ।

सोचोगे तो पता चलेगा।क्या कर रहे हो देखना?

धीरे-धीरे तुम ठीक हो रहे हो।

अपने खाने के ढंग बदल रहे हो।

दिल दुखी हो तो खाना मत खाना।

थोड़ा ठहरना।फिर शांत हो जाना।

गुस्सा हो तो,खाने को हाथ ना लगाना।

बैठना,सोचना फिर शांति से खाना खाना।

क्या तुम ठीक महसूस कर रहे हो?

अरे तुम तो बड़े मस्त लग रहे हो।

तुमने खाने की आदतें जो बदल डाली।

अपने आप ही अपनी जिंदगी,

खुशी से भर डाली।

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