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हम कितने एकाकी हो गए

इस साल में हम सब,

कितने एकाकी हो गए।

ना मिलने से,अकेला रहने से,

ना मिले, ना आए ,

अपने घरों में बंद हो गए।

अधिकतर लोग।दिल और दिमाग,

डिप्रेशन के मरीज हो गए। इस साल में हम सब,

कितने एकाकी हो गए। घर में अकेलापन,

सब को डरा रहा है । फोन और टीवी में,

यूँ वक़्त बीता जा रहा है।

कितना देखेंगे टीवी, और फोन,

और समाचार को,ना मिलता सुकून,

देखकर,यह विचार को। एकाकी होना सबको,

बीमारियों की सौगात दे गया। जो रहते थे मस्त हमेशा,

उन्हें भी बीमार कर गया। जब देखो घर में अपनों को,

कहीं खोया हुआ। थाम लो उनको, दे दो खुशियां,

देखो ना उन्हें सोया हुआ।

अगर अकेले में वह,

शांत सोए हुए हैं । तू जान लो अकेलेपन,

में वह डूबे हुए हैं। जल्दी ही बीमार होने,

की खबर आएगी। देखा ना तो उनकी,

हालत बिगड़ जाएगी। रहने ना दो अपनों को,

अकेला इस साल में। छोड़ना ना उन्हें कभी,

अपने ही हाल में। जो अपने होते हैं,

वह यदि मुश्किल में होते हैं । नहीं चाहते परेशान करना,

जब दुखी होते हैं। पी जाते हैं, सारे गम,

तन्हाइयों में डूब कर। घिर जाते हैं ,बीमारियों से.

अकेलेपन से ऊब कर।

खैरियत सब की इसी में हें ,

हंसी खुशी से साथ रहे सब । मिलकर परिवार कोई,

अकेला ना रहे ,साथ रहे सब।

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