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ज़िंदगी का हिसाब

ज़िंदगी का हिसाब कौन रखता हें ।

जिसने पैदा किया वह रखता हें ।

या ज़िंदगी देने के बाद ज़िंदगी लेता हें वह।

किसने ज़िंदगी में क्या किया? क्या नहीं?

रखते हें हमारे अपने या वह जो अपने नहीं ।

क्या काम करने चाहिए क्या करना नहीं।

वह ही कर देते हें न्याय ,सोचते हें ऊपर वाला तो हें ही नहीं।

वो कब न्याय करेगा ,होता नहीं इंतजार।

स्वयं ही कर देते हें न्याय हो जाते बेकरार।

ये अधिकार स्वयं ले लेते अपने आप,

ऐसे ही बन जाते हें हम सब के बाप।

भूल जाते हें ,ऊपर वाले की भी शक्ति हें।

याद क्यों नहीं रखते की बड़ी उसकी भक्ति हें।

अगर हम खुद ही रखलें हिसाब अपनी ज़िंदगी का,

तो सवाँर लेंगे जीवन ,ना हो बेहाल ज़िंदगी का।

पता हमें चल जाएगा क्या अच्छा हें ,और क्या बुरा ,

जीवन की गाड़ी चला ,देखेंगे अच्छा ना कि बुरा

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