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ज़िंदगी क्या है?



ज़िंदगी क्या है?ज़िंदगी का सच जो हम याद भी नहीं करना चाहते। कहानी का पूरा सार जानने के लिए पढिए।


तीन फकीर थे। गांव-गांव घूमते रहते थे। वह जहां भी जाते थे। वहां की हवा बदल जाती थी। उनके पहुंचने से ऐसा लगता है। जैसे सारे जहां की हवा ही बदल गई। जहां बैठ जाते थे। वहां की हवा भी बदल जाती थी।


चारों और खुशहाली छा जाती थी।जहां भी वे जाते थे। वहां की दुनिया ही बदल जाती थी।


तीनों बहुत बुजुर्ग हो चुके थे। कुछ समय बाद उनमें से एक का देहांत हो गया। जब गांव में सबको पता चला कि उन फकीरों में से एक फकीर का देहांत हो गया है।




सारे गांव वालों ने सोचा कि आज तो वह जरूर दुखी होंगे। इसलिए वह सुबह से ही उनकी झोपड़ी पर इकट्ठे हो गए।


परंतु क्या?


लोग यह देख कर हैरान हो गए कि वह जो फकीर मर गया था। उसके मरे हुए होंठ भी मुस्कुरा रहे थे।और उसके दोनों साथी उसके शव के पास बैठकर इतना जोर जोर से हंस रहे थे।


तो लोगों ने पूछा तुम यह क्या कर रहे हो?

यह फकीर जो मर गया वह तुम्हारा प्रिय साथी ही तो था। और तुम हंस रहे हो।


वह कहने लगे उसकी मृत्यु ने हीं तो सारी जिंदगी को हंसी बना दिया। जस्ट ए जोक।


उन्होंने पूछा कैसे?


तो वे बोले आदमी मर जाता है। जिंदगी एक जोक ही तो हो गई है। एक मजाक ही तो बन गई है। हम समझते थे जीना है सदा के लिए।


पर आज पता चला कि यह बात तो गड़बड़ है। एक तो हम में से खत्म हो गया। कल हम खत्म हो जाने वाले हैं।


तो जिन्होंने सोचा है जीना है सदा, सिर्फ वह ही गंभीर हो सकते हैं। गंभीर होने का कोई कारण भी तो नहीं है।


और रही बात जस्ट ए जोक की, बात एक सपने की है।और एक सपना आया और टूट गया। एक मित्र ने जाकर एक सपना तोड़ दिया।


अब हम पूरी जिंदगी पर हंस रहे हैं कि क्या क्या सोचा गया था। जिंदगी के लिए परंतु यह तो पता ही नहीं था कि आखिर में मामला यह हो जाता है कि आदमी खत्म हो जाता है।


एक बबुला बनता है,और टूट जाता है।

एक फूल गिरता है, और बिखर जाता है


और फिर अगर हम आज नहीं हँसेंगे तो कब हसेंगे?


जब की सारी जिंदगी मौत बन गई।अगर हम ना हँसेंगे तो वह जो हमारा साथी मर गया है।


वह क्या सोचेगा?


अरे जब जरूरत आयी हंसने की तब धोखा दे गए।जिंदगी में हंसना तो आसान है।जिंदगी में हंसना तो आसान है पर जो मौत में भी हंस सके।कैसे साथी हैं मेरे जो मेरी विदाई हँसते हुए ना दे रहे।


लोग कहने लगे वही साधु है।


फिर यह उसकी लाश को लेकर मरघट की तरफ चले।गांव के लोग तो उदास है।लेकिन यह दोनों अभी तक भी हंस रहे थे। हंसते हुए चल रहे थे।


रास्ते में उन्होंने कहा जो जो लोग उदास हैं। वह वापस अपने घर चले जाएं क्योंकि उसकी आत्मा बहुत दुखी होगी?


जिंदगी में जो आदमी हमेशा हंसता रहा और लोगों को हंसाता रहा। क्या लोग इतना भी धन्यवाद नहीं देते कि उसके कब्र पर कम से कम हंस के विदा दी जाए?


लेकिन लोग कैसे हंसते हैं?


हंसने की तो आदत ना थी। और फिर ऐसा कौन है जो मौत के सामने हंसेगा?


मौत के सामने तो वही हंस सकता है जिसे मौत से भी ऊपर की किसी चीज का पता चल गया हो।


मौत के सामने कौन हँस सकता है?


वहीं हँस सकता है जिसे अमृत का बोध हो गया हो। जिसे परमात्मा के बारे में पता चल गया हो।


गांव के लोग कैसे हंसते ?


मौत ने तो उदासी फैला दी थी। हम भी तो मौत में उदास हो जाते हैं। इसलिए नहीं कि कोई मर गया है बल्कि इसलिए कि अपने मरने की भी खबर आ गई है।


वह जो मौत की उदासी है।वह हमारे प्राणों को डरा देती है।भयभीत कर जाती। नहीं पर वह दोनों फकीर तो हंसते ही चले गए।


फिर अर्थी को चढ़ा दिया गया और लोग कहने लगे जैसा रिवाज है। पहले कपड़े बदलो और स्नान कराओ। अर्थी को स्नान कराना बहुत जरूरी था।


लेकिन उन्होंने कहा कि नहीं हमारा मित्र कह गया है कि कपड़े मेरे बदलना मत और स्नान मुझे कराना मत। मैं जैसा हूं, वैसे ही चढ़ा देना।


तो उसकी बात तो पूरी करनी पड़ेगी। और उसको चढ़ा दिया गया। थोड़ी देर में उस भीड़ में हंसी छूटने लगी क्योंकि वह आदमी जो मर गया था। अपने कपड़े में पटाखे, फुलझड़ी छुपा के मर गया था। उसकी लाश चढ गई अर्थी पर और पटाखे फूटने शुरू हो गए। उसने उन पठाकों को छुपा रखा था।


धीरे धीरे जो वहां भीड़ थी। वह सब हंसने लगे। कहने लगे कैसा आदमी था?


जिंदगी भर हँसाता था। मर गया अब है भी नहीं फिर भी इंतजाम कर गया कि तुम अंतिम क्षण में भी हंसना।


हंसते हुए जीवन को पार करना है। निश्चित है जो आदमी पूरी जीवन को एक खुशी और एक आनंद में बनाना चाहता है। वह आदमी भूल कर भी दूसरे को दुख नहीं दे सकता क्योंकि दूसरे को दुख देने अपने लिए दुख का आमंत्रण करना है।


जो आदमी फूलों में जीना चाहता है।वह किसी के रास्ते में कांटे नहीं रख सकता क्योंकि दूसरे के रास्ते पर काटा रखना। दूसरे को चुनौती देना है कि मेरे रास्ते पर कांटे रखो।


जो आदमी उदास रहना चाहता है। वह लोगों के साथ दुर्व्यवहार कर सकता है। लेकिन जो आदमी प्रफुल्लित होना चाहता है। उसे चारों और खुशी-खुशी बाँटनी पड़ेगी क्योंकि कोई भी आदमी अकेले खुश नहीं रह सकता।


यह समझ लेना बहुत जरूरी है कि अकेला आदमी उदास रह सकता है। लेकिन खुशी में आदमी अकेला नहीं रह सकता।


अगर आप अकेले बैठे हैं।एक कोने में उदास, दुखी,पीड़ित, परेशान तो कोई भी आप से यह नहीं पूछ सकता। अरे आप अकेले उदास बैठे हो।


लेकिन अगर अकेले में हंस रहे हैं। आप जोर से खिलखिला कर तो कोई भी आदमी आपको पूछेगा। क्या आपका दिमाग खराब हो गया है?


अकेले और हंस रहे हो। लेकिन अकेले में उदास होने पर कोई नहीं पूछता?


इसमें कोई गड़बड़ है अकेले में हंसते हुए आदमी पर शंका पैदा हो जाती है क्योंकि खुशी एक कम्युनिकेशन है?


खुशी एक संपदा है।खुशी एक समष्टि की घटना है।


आदमी उदास अकेला हो सकता है।लेकिन आनंदित होना एक शेयरिंग है,एक बटवारा है।


इसलिए जितना खुश आदमी होगा। उतना मित्रों का उसका समूह विराट होगा क्योंकि जितना बड़ा समूह होगा।मित्रों की उतनी गहरी और बड़ी खुशी प्रकट हो सकती है।


अगर उदास होना है तो अकेले में जाना जरूरी है।


और आनंदित होना है तो विराट होते जाना जरूरी है।


आनंद है मित्रों के बीच बंटवारा, और दुख है अकेलापन।


कभी आपने ख्याल भी नहीं किया होगा कि जब आप दुखी होते हैं ।तो लोगों से कहते हैं मुझे अकेला छोड़ दो।जब दुखी होते हैं तो दरवाजा बंद कर लेते हैं।


फिर खिड़की बंद करके कोने में अकेले बैठे रह जाते हैं क्योंकि दुखी होने के लिए अकेले होने में सर्वाधिक सुविधा होती है।


लेकिन जब आप आनंद से भर जाते हैं। तो दरवाजे तोड़ देते हैं आ जाते जनता में, आ जाते लोगों के बीच ,और पुकारने लगते हो मैं खुश हूं।


आओ मेरे करीब खुशी बांटने।


दुख हमेशा अकेला भोगना पड़ता है।


ऐसा तो शायद आपने कभी सोचा भी नहीं होगा।


अब आप क्या सोच रहे हैं? क्यों ना हम सब मिलकर खुशियां बांटे?

खुशी मनाएं क्योंकि हम अभी जिंदा हैं?

क्या खुश होने के लिए यह वजह पर्याप्त नहीं?


या आप सिर्फ वजह का इंतजार करते रहेंगे जो आये और आकर आपके कान में कहे कि कहाँ खोये हो में खुशी हूँ अब तुम खुश हो जाओ।अब नहीं जागे तो कब जागोगे।


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