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ज़िन्दगी और सम्बन्ध

अपडेट करने की तारीख: 20 जन॰ 2022











संबंध मेरे दिल और दिमाग को झकझोर देते हैं।

यह संबंध मेरे दिमाग में अनसुलझे सवाल छोड़ देते हैं।

कैसे समझुँ, कैसे समझाऊं,अनसुलझो को कैसे सुलझाऊँ।

कभी तो लगते हैं यह अपने, कब हो बेगाने, कह ना पाऊं ? जरा सी बात का बतंगड़ बना दे ,

समझ ना पाऊं।अनसुलझो को कैसे सुलझाऊं?

संबंध तो जिंदगी की जान होते हैं।

बिगड़ जाए तो, मनाए जाने के नखरे आम होते हैं ।

किसी को जो समझे, वह संबंध में ऐसा ना हो। जिसे मानते हैं वह ,मानना बेवजह उस जैसा ना हो।

पर जब भी सोचा संबंधों के बारे में,

यह सुलझने के बजाय और उलझा गए।


हम तो बैठे थे उम्मीद में ,खुशगवारी की,

वह हमें उलझनों का पिटारा थमा गए।


कुछ संबंध तो मतलब पर नजर आए।

कुछ मतलब निकाल कर, हम पर मुस्कुराए।


कुछ ने तो नाता जोड़ा, ही काम के लिए था।

काम निकल जाने पर, वह हमने गायब पाए।

कुछ ऊपर से हितेषी ,अंदर से कुठाराघाती पाए।

ऐसा नहीं कि इस ज़िन्दगी में सब व्यर्थ समझ आए।

कुछ हमारी मुसीबत में, सब काम छोड़ दौड़ आये।

कुछ तो हमें परेशान देख ,कितने दुखी भी नजर आए

कुछ अपना सब काम ,हमारी वजह से छोड़ आए।

कुछ के दिल में हम ,

और हमारे दिल में वो बस पाए।





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