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सोच








सोच एक बहुत ही मामूली शब्द है।पर हर वक्त और हर परिस्थिति में उसके मायने अलग अलग हो जाते हैं।

पहले सोच की अवस्थाएं देखते हैं।

क्या सोच रहे हो?

सोचते सोचते कुछ ज्यादा ही संजीदा तो नहीं हो रही।

किसके बारे में सोच रहे हो?

अपनी बीमारियों के बारे में,

अपनी परिस्थितियों के बारे में,

अपने घर के वातावरण के बारे में,

अपने कर्मियों के बारे में,

बहुत सारे कारण है सोच में डूबे रहने के।

व्यवसाय के बारे में,पैसे के बारे में,

अपनी जिम्मेदारियों के बारे में,

अपने परिवार के बारे में,

संतान के भविष्य के बारे में,

और अपनी जॉब के बारे में,

पर क्या कारणों में उलझे रहना ठीक है?

इन कारणों से बाहर कैसे निकला जाए?

यह ठीक है इनसे निकलने के लिए क्या तरीका अपनाया जाए?

इनको कैसे अपने दिमाग से बाहर का रास्ता दिखाया जाए?

जो बातें हर वक्त कुछ सोचने पर मजबूर करती हैं।

पर सोच सिर्फ चिंता का विषय ही नहीं होता।इसका दूसरा पहलू भी होता है।

किसी के लिए हम कहते हैं।

यार तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है।

कमाल की सोच पाई है।

तुम्हारी सोच में हर परेशानी का हल है।

तुम यह सोचते कैसे हो?

तुम्हारी सोच वहां तक पहुंची कैसे?

जवाब नहीं तुम्हारी सोच का।

कहते हैं जैसी संगत, वैसी रंगत।


अगर आप ऐसे लोगों के साथ रहते हैं।जो हर वक्त परेशानियों की सोच में डूबे रहते हैं। तो आपका व्यवहार और तरीका भी वैसी ही सोच का होगा।


इसके लिए आपको चुनाव करना होगा। आपको कैसी सोच वालों के साथ दोस्ताना रखना है। जो समस्याओं से घिरे रहते हैं।जिनके पास हर समस्या का समाधान है।


औरतों की सोच का विषय अलग है।

खाना क्या बनाऊं?

नाश्ता क्या बनाऊं?

रात के खाने में क्या बनाऊं?

पार्टी में कौन से कपड़े पहन कर जाऊं?

बच्चों की परेशानी का क्या करूं?

बच्चों को कैसे संभाल लूं?

घर को कैसे संभाल लूं?

घर को कैसे चलाऊं?

इतने में मेड का फोन आ गया।मैडम आज मैं नहीं आ रही हूं।बेटा बहुत बीमार है।दो-तीन दिन के बाद आऊंगी।

एक और सोच का कारण पैदा हो गया।

घर में किसी का बीमार हो जाना।

अनायास बिना बताए किसी मेहमान का आ जाना।

घर का बजट गड़बड़ हो जाना।

आवश्यक सामानों का खत्म हो जाना।

बहुत समय तक मायके ना जा पाना।

किसी से गप्पे ना लड़ा पाना।

वक्त का अभाव पड़ जाना।

बच्चों का हाथ से निकल जाना।

परेशानियों के चलते स्वभाव का खराब हो जाना।

घरवालों से भरपूर प्यार और उत्साह का ना पाना।

घरवालों का सहयोग ना मिलना।

अपनी मनमर्जी से 1 दिन भी ना जी पाना। बच्चों की पढ़ाई से ध्यान हट जाना।

स्कूल से रोज शिकायत आना।

आपको जो काम करने हैं।वह तो करने हीं होंगे। उन्हें अवॉइड नहीं कर सकते।

वह तो सब आवश्यक है।

आपको 1 दिन भी बिना इन सब बातों के सोचे नहीं रह सकते।


अगर हम हर वक्त सोचते ही रहते हैं। तो कुछ नहीं कर पाते।यदि हम अपनी सोच में किसी और को शामिल कर लेते हैं।तो उनमें से बहुत सी सोच का समाधान मिल जाता है|जिन सोचो का हम समाधान नहीं कर पा रहे।उन सोचो का उत्तर हमारे नजदीकी और हम से प्यार करने वाले सुलझाने में सहयोगी होते हैं।


हो सकता है जिस सोच को हम बहुत बड़ा मान रहे हैं।वह उनको चुटकियों में सुलझाने का कोई उपाय बता दे।

इसका एक सीधा सा उपाय यह भी है।सोचो कम,करो ज्यादा।


तो समस्या से निजात पाया जा सकता है। क्योंकि हल तो काम करने से ही निकलता है।


जैसे ही परेशानी वाली सोच आये।उसे उसी वक्त बदल कर उससे उल्टी सोच रखो।


तो भी समस्या का हल मिल जाएगा।


जैसे अभी मेरे सिर में दर्द हो रहा है। और मैं सिर पर हाथ रख कर बैठी हूं। लेकिन यदि सिर्फ इतनी सी सोच में बदल लूं कि नहीं मेरे सिर में दर्द नहीं है। मैं स्वस्थ हूं। तो आप देखेंगे थोड़ी सी देर में आप स्वयं को स्वस्थ महसूस करेंगे।


अगर हम अपने को हर वक्त व्यस्त रखें तो भी गलत सोच से छुटकारा पाया जा सकता है। सोचने से ज्यादा जब काम करेंगे। तो शरीर में उर्जा बनेगी और वह ज्यादा काम करने में सहायक होगी।

सोचो कम, करो ज्यादा,यही जिंदगी का सबसे अच्छा मंत्र है।


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