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परवरिश

अपडेट करने की तारीख: 25 जन॰ 2022


आज मैं आपका ध्यान आजकल की कुछ गंभीर समस्याओं पर दिलाना चाहती हूं।

माता पिता के चाहे एक बेटा हो ,या दो बेटे ,या चार बेटे परंतु जब वह रिटायर हो जाते हैं। या बुजुर्ग हो जाते हैं।


1. तब हर एक बुजुर्ग के पास एक ही सवाल होता है कि उनकी जिम्मेदारी कौन उठाएगा ?

कई जानने वाले हैं, जिन्हें देखती हूं ,जिनके पिताजी स्वर्ग सिधार गए हैं ।अकेली मां है ,उसकी जिम्मेदारी भी एक ही घर में रहते हुए दो बच्चों में बाँट दी जाती है ।

2. क्या एक माँ को खाना एक बेटा नहीं खिला सकता?

एक वक्त का खाना एक बेटे के घर से आएगा। दूसरे वक्त का खाना दूसरे बेटे के घर में बनाया जाएगा।

3. यह कैसा रिवाज है ?

माता-पिता ने तो कभी नहीं कहा कि मैं तुम्हारा ध्यान सिर्फ इतने दिन रखूंगी। बाकी का तुम जानो।

या माँ ने दूध पिलाते वक्त बेटे को कभी यह नहीं कहा कि मैंने तुम्हें दोनों आंचल का दूध पिलाया है।

काश मैंने एक का ही पिलाया होता।

1. पर बेटा ऐसा क्यों करता है?

2. क्या उसकी पत्नी को खाना बनाने में परेशानी है?

3. क्या उसकी पत्नी को यही झमेला लगता है?

4. क्या उसकी पत्नी को अपनी मां ने यह नहीं सिखाया?

कि वह जो तुम्हें सासु माँ मिलेगी ।वह भी अपना पाला पोसा बेटा तुम्हें सौंप देती है । जैसे हमने तुम्हें

पाला और तुम दूसरे घर जा रही हो।

1. फिर यह परेशानी क्यों ?

2. क्या आप इसकी वजह जानते हैं ?

3. क्या वजह है कि माता-पिता की दो रोटी बच्चों को क्यों भारी पड़ जाती है ?

यह वही बच्चे हैं जिनको सूखे में सुलाने के लिए मां हमेशा गीले में सोई। क्योंकि तब डायपर नहीं होते थे ।

यह वही बच्चे हैं जिन्हें कुछ बनाने के लिए माता पिता भूखे प्यासे मेहनत करते रहे।

यह वही बच्चे हैं जिनकी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी हर ख्वाहिश को छोड़ दिया।

यह वही बच्चे हैं जो अपने माता पिता को दो वक्त की रोटी भी बाँट कर देंगे ।

किसी किसी घर में तो पिता का खाना एक बेटा देता है ।और मां को दूसरा।

मुझे सुनकर, देख कर, बड़ा दुख होता है। कि हमारा समाज कहां जा रहा है ?

अगर बेटे की सामर्थ्य नहीं हो तो क्या माता-पिता उनसे अच्छा खाना मांगते हैं ?

या जो वह खिलाता है ।उसी में खुश रहते हैं।

सवाल यह है कि

1. यदि एक ही बेटा दोनों वक्त का खाना खिलाएगा तो क्या उसके घर में पैसा कम हो जाएगा ?

2. खर्चा बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा क्या?

3. सवाल यह भी है हर बेटा सोचता है कि मैं ही क्यों?

4. क्या माता पिता बचपन से ही बड़ा होने तक जो करते हैं ?

5. क्या ऐसा सोचते हैं ?

6. और यह भी सोचते होते तो तुम्हारा क्या होता है?

तुम सोच भी नहीं सकते ।

मैंने सुना है कई लड़कियों को बात करते हुए ।

क्या बताऊं यार सास ससुर आए हैं ?

सारा दिन काम करते-करते थक जाती हूं ।उनकी मां भी पूछती है। कब तक रहेंगे ?

कितने दिन बाद जाएंगे?

यह पता भी तभी चलता है जब उनसे बात होती है।कि सास ससुर के आने की खबर वहां तक पहुंच गई है। जबकि मां के घर में भी बहू होती है।पर समझ नहीं आता ,यह सब क्या चल रहा है।

पुराने जमाने में तो पैसों का बहुत अभाव था। पर आज तो पैसों की कोई वैल्यू ही नहीं। पैसा बहुत ज्यादा हो गया है ।और दिल बहुत छोटा।

उस दिल में मैं भला, मेरी बीवी भली, और बस मेरे बच्चे ,यही मेरा परिवार है ।ऐसा ही सोचते हैं।

कई माता-पिता भी ऐसा करते हैं ।एक घर में ही दो बेटे हैं ।तो वे कहते हैं ठीक है 15 दिन हम बड़े के पास होंगे और 15 दिन छोटे के पास।

लोग सोचते हैं ,यह माता-पिता की गलती है। जब हम उनके नजरिए से सोचें ,तो पाते हैं कि उन्होंने यह नियम इसलिए बनाया ता कि एक पर ही उन का बोझ ना पड़े ।

पर यदि वह बोझ है तो एक पर क्या ?

और दूसरे पर क्या ?

क्या माता-पिता बोझ है ?

यह प्रश्न आपके लिए दे रही हूं।कि माता पिता की क्या करें?

मैंने कहीं पढ़ा था, मां को चिंता बेटे के आज की रोटी की होती है ।और पिता को भविष्य की ।

यह बात जिसने भी कही सही है।

वह सच है पिता इतनी मेहनत करता ही इसलिए है कि जब उसका बेटा बड़ा हो तो उसका भविष्य सुरक्षित हो ।

यह जो हो रहा है ,उसमें माता-पिता की कितनी गलती है ?

कहीं तो उनकी परवरिश में गलती होगी ?

क्या अब यहाँ समाज के हवा ही उल्टी हो गई है?

जहां माता-पिता बोझ लगने लग गए हैं।

या आज कल की विलासिता पूर्ण जिंदगी जिसमें पार्टियां होती हैं। उसमें उनको अपने बच्चों की भी फिक्र नहीं होती।

तो माता-पिता की क्या बिसात है?

मुझे आपके कमेंट का इंतजार रहेगा।

मैं यह जानती हूं कि मेरा यह लेख पढ़ने वाले माता पिता ही होंगे ।

मैं जब भी ऐसा देखती हूं मेरा मन बहुत व्यथित हो जाता है समस्या का क्या समाधान हो सकता है ?

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#परवरशबचचक #बढ़पकदरद #बढ़पकपरशनय

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