
आज की सबसे बड़ी परेशानी है क्योंकि वक्त इतनी तेजी से भाग रहा हैं कि किसी के पास वक्त नहीं कि वह आपके इमोशनल जरूरत के बारे में सोचें कि आपको क्या चाहिए?
अगर आपके दो बच्चे हैं।तो मान लीजिए बेटी की शादी हो गई।तो आप सोचते हैं। घर सूना हो गया।आपको लगता है।कलेजे का टुकड़ा आपसे दूर हो गया।
पर शादी होने के बाद बेटी को आपसे ज्यादा अपने घर की फिक्र सताने लगती है।उसकी पहली प्राथमिकता पति का घर हो जाती है।
उसे आप से ज्यादा अपनी सासू मां का ख्याल रहता है।आपसे मिलने आने के बाद भी उसका ध्यान अपने ससुराल की तरफ ही होता है।
सुधा मूर्ति जी ने बहुत अच्छे तरीके से बताया है।
एक माता पिता को अपनी संतान से अटैचमेंट के साथ-साथ डिटैचमेंट भी सीख लेना चाहिए।उसकी प्रैक्टिस पहले से ही कर लेनी चाहिए।
बेटी की शादी के बाद, बेटा पढ़ने के लिए बाहर चला गया।हमें समझना सीख लेना चाहिए।
और धीरे-धीरे हम सीख भी जाते हैं क्योंकि यही परिस्थितियां हैं जो हमें सिखाती हैं।
अब जब वह बाहर रह रहा होता है।तो सोचता है कि आपकी बहुत याद आती है।
और वह आपके पास आने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है।आपके हाथ का बना खाना बहुत याद आता है।
कुछ वर्षों बाद पढ़ाई पूरी करके जब वह आ गया।कुछ समय बाद हमने उसकी शादी भी कर दी।
और वह अपनी पत्नी को लेकर अलग हो गया क्योंकि उन्हें सेल्फ डिपेंड होना था।क्यों कि अब वह बड़ा हो गया।अपने फैंसले खुद लेना चाहता है।अब उसने अपना रास्ता बदल लिया।
परंतु वक्त के साथ सब बदल गया।जो बाहर पढ़ते समय खाना याद करता था।जिसको हर पल हमारी याद आती थी।
अब उसे एक ही शहर में बुलाओ पत्नी के साथ लंच या डिनर पर तो उसके पास ना आने की बहुत सारी वजह होती है।और बड़े अनजान बन कर के कह देते हैं। हमारा दूसरा प्लान है। हम नहीं आ रहे तो प्लीज बुरा मत मानना।
भूल जाते हैं जो खाना खा कर बड़े हुए उसका कोई मूल्य नहीं है।ना ही उन यादों का अब कोई स्थान है ।
क्या हो जाता है इन बच्चों को जो दिल की धड़कन हुआ करते थे।अब उनका दिल माता पिता के लिए नहीं अपनी पत्नी और अपने बच्चों के लिए ही धड़कता है।
हम सब जानते हैं। लोगों को देखते हैं। लोगों से सुनते हैं।अपने बच्चों के बारे में उसे सच को मानने या स्वीकार करने को बहुत देर से समझ पाते हैं।
हम सोचते हैं कि हम उन्हें डिस्टर्ब ना करें।इसलिए हम उनको परेशान करना छोड़ देते हैं।
अगर मैं बात करूं अपनी और अपने अपनों की तो मैंने अपना रिश्ता बखूबी निभाया है।सभी के साथ मेरा रिश्ता हमेशा प्यार भरा रहा है।उन सब के साथ बहुत लगाव भी है।
लेकिन अब मैंने लगाव के साथ अलगाव को भी रखा है क्योंकि मैंने उन सभी रिश्तो से प्यार का बदला चुकाने की उम्मीद नहीं रखी।
मैं अपने बच्चों के बारे में भी नहीं सोचती हूं कि जो जिंदगी उन्होंने चुनी है। उस पर कमेंट या फैसला ना सुनाउँ।और ना ही दखलअंदाजी करुँ।
जितने भी मेरे करीबी हैं। उनके लिए मेरी परवाह अलगाव के साथ कम नहीं होगी।
हम जिससे प्यार करते हैं। उन्हें आजाद भी छोड़ दें। तो भी हमसे दूर नहीं जा पाएंगे।
यह लगाव से अलगाव की खूबसूरती है।मेरा यही फलसफा है।
अपनों से प्यार करो और बिना वापसी की उम्मीद के छोड़ दो। इस सोच ने मुझे बहुत सहनशील बनाया है।
जब मैंने लोगों को उनकी पसंद की जिंदगी जीने के लिए आजाद कर दिया।तो मैंने वह जैसे हैं उन्हें वैसा स्वीकार करना भी सीख लिया।
मैंने अपने आसपास की दुनिया को भी सहना सीख लिया। इस कारण मेरे अंदर शांति और संतुष्टि का भाव आ गया है।
मैं अपने बच्चों के साथ रहती हूं। पर उनका क्या?
जो बच्चे छोड़कर दूसरी जगह चले जाते हैं। उन माता-पिता को इमोशनल जरूरतों का सामना अकेले करना पड़ता है।
बड़ी उम्र की होने वाली समस्याओं से उनकी परेशानियां और बढ़ जाती हैं।
और सबसे बड़ी परेशानी उनके लिए है जो अपनी इमोशनल जरूरतों के लिए पूरी तरह अपने बच्चों पर निर्भर है।
उनके लिए एक ही रास्ता है।इन से बाहर निकल कर अपने शौक और दिलचस्पी पैदा करें। जो सीखना चाहते हैं सीखे।
जो करना चाहते हैं करें। जो भी आपकी अभिलाषाएं हैं।उनको पूरा करें।
मैने अपने शौक के लिए लिखना शुरू किया है।जो देखती हूँ,जो महसूस करती हूं,वही लिखती हूँ समाज की सच्चाई शायद कोई समझ ले।आओ ज़िन्दगी को समझें जरा नज़दीक से।
हम जो भी करते हैं।उससे प्यार करें, ना कि वह करें जिसे हम प्यार करते हैं।