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उपहार ज़िंदगी का

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जिंदगी में उपहार किसको नहीं चाहिए। सब यही कहेंगे,उपहार उसमें ना की कोई गुंजाइश ही नहीं है।


जिंदगी में हम उपहारों को हमेशा याद रखते हैं। चाहे वह छोटा हो या बड़ा।


जब हम घर आते हैं। और बच्चों के लिए गुब्बारा लाते हैं। तो गुब्बारा भी किसी उपहार से कम नहीं होता।उसे लेकर भी वह एक-दो घंटे खेल लेते हैं। कभी-कभी तो अगले दिन तक भी।


उपहार कोई चीज नहीं होती। लाने वाले की भावना होती है। प्यार होता है। आशीर्वाद होता है।


कभी-कभी लोग अपने ही घर में किसी के दिए हुए उपहार के बारे में बहुत छोटे शब्दों का इस्तेमाल अपने बच्चों के सामने करते हैं।


जैसे यह क्या दे दिया?

घर से पुराना निकालकर पैक कर दिया या यह क्या?

यह घर में बुना हुआ थालपोश कितना सस्ता उपहार है।


पर माता-पिता अपने बच्चों को यह भी तो कह सकते हैं। उन्होंने इस उपहार को बनाने में कितनी मेहनत की है।अपना कीमती समय इसे बनाने में खर्च किया है। हमारे लिए दिल से बनाया है।हमें उन का आभारी होना चाहिए।


आभार व्यक्त करना सिखाना पड़ता है। आभार व्यक्त करना सीखने से ही बच्चे आपके प्रति आभारी रहेंगे।


परंतु हमें सबसे बड़ा उपहार तो परमपिता परमात्मा ने दिया है।


यह जीवन और आज का दिन है। ईश्वर की तरफ से अनमोल भेंट हैं क्योंकि कितने लोग रात को सोए थे। पर सुबह उठे ही नहीं।


पर हम पर ईश्वर की कृपा थी। हम आज की सुबह देख रहे हैं।


बुद्ध ने कहा कि उठो और आभार प्रकट करो। हम आज इस पृथ्वी पर हैं।बिमार नहीं है। जिंदा है।


यह आज सबसे बड़ी खुशी की बात है। इसके लिए हमें आभारी होना चाहिए।

हम परम पिता परमेश्वर की प्रार्थना करते हैं।


ईश्वर मेरा यह आज का दिन आप की ओर से मिला उपहार है। और इस दिन को मैं जिस तरह जिऊंगा। वह मेरी तरफ से आपको एक उपहार होगा।

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