
काफी उम्र बीत गई,
जिंदगी में मुस्कुराते हुए,
अभी कुछ उम्र और,
गुजारना बाकी था।
जान से ज्यादा प्यार,
करते थे जिन्हें हम।
बची हुई इस उम्र में ,
क्या-क्या देखना बाकी था।
सारी उम्र बिता दी,
जिनकी खुशियों के लिए।
कुर्बान होकर उन्हीं के द्वारा,
इज्जत तार-तार कर देना बाकी था।
सच है सहारों के बिना,
भी रह सकते हैं हम दुनिया में।
पर इतने सारे सहारों में ,
बेसहारा होना बाकी था।
सीमाएं प्यार से थी जिन रिश्तो में ,
उन्हीं सीमाओं को तोड़कर ,
दिखाना बाकी था।
क्या क्या सिला मिलेगा ,
यह कैसे बताएं जीवन में।
प्यार के बदले दर्द कितना,
मिलेगा,यह देखना बाकी था।
कहां-कहां गलती की हमने,
यह सोचेंगे अब ,जीवन में क्यों ,
इतना प्यार किया,
यह समझना अभी बाकी था।
जवान में इतना जहर,
कहां से आया तुम्हारे ,
किस की संगत में हुआ असर,
इतना देखना बाकी था।
जो एक आवाज में बिन बोले,
समझ जाते थे हाल-ए-दिल।
उन्हीं ने एहसास कराया ,
सब झूठ है,
यह फर्क देखना बाकी था।
इतनी छोटी बात पर इतना,
बवाल मचाना क्यों?
क्या दिखाना चाहते हो?
यह दिल को महसूस ,
कर आना बाकी था।
रिश्तो की कीमत जानते थे जो ,
कभी हम सब में।
उनका इस तरह बेमुरव्वत,
बेपरवाह होना बाकी था।
सोचा ना किस से बात कर रहे हैं,
वह कौन है?क्या लगता है?
भूल गए सब रिश्ते,
याद दिलाना बाकी था।
इतने बेतकल्लुफ में ना रहा ,
करो जनाब हमेशा।
तुम्हारा हमारे लिए,
भी कुछ फर्ज और ,
कर्ज निभाना बाकी था।
अभिमान करते थे, जिन रिश्तो पर,
जान थे हमारी ,
वही जान हमें बेजान कर देगी,
यही जानना बाकी था।
सभी शायद ऐसे ही होते होंगे,
इस दुनिया में,
तुम ऐसे कैसे हो,
बस यही समझना बाकी था।
तुम्हारे शब्द कानों में ,
गर्म शीशे की तरह जल रहे थे।
कान ही नहीं, पूरा शरीर गर्म ,
उस आग में जल जाना बाकी था।
सो ना सके क्षण भर,
यह सोच सोच कर रात को,
बची हुई इस उम्र में ,
अभी क्या क्या देखना बाकी था।।