अपडेट करने की तारीख: 6 फ़र॰ 2022
ज़िंदगी का फलसफा

रुकना भी सही है,
थोड़ा जिंदगी में।
कब तक भागते रहेंगे,
इस जीवन में कितना भी,
कमा लें,कितना भी बचा ले।
जीवन में पर ज्यादा,
नहीं होगा,कम ही रहेगा।
इस जिंदगी में,
रुकना भी सही है,
थोड़ा जिंदगी में।
भागते भागते कहां से कहां आ गए।
बादशाहत चाहते थे,
पर कुछ और पा गए।
दिल और दिमाग अब,
तो टकराने लग गए हैं।
कमाते कमाते शरीर,
और दिमाग थक गए हैं।
कब तक भागते रहेंगे।
जिंदगी में रुकना भी,
सही है थोड़ा जिंदगी में।
कितना भी भागे,
मंजिल कहां मिलेगी।
नहीं है दौर भागने का,
जिंदगी कभी तो रुकेगी।
बहुत कमाया ना कुछ बकाया।
पर ना फिर भी जरूरतें पूरी हुई।
कितना कमाया पर,
काम कुछ ना आया।
तमन्नायेँ ना पूरी हुई।
रुकना भी सही है,
थोड़ा जिंदगी में।
कब तक भागते रहोगे,
समझना जो चाहा,
नहीं समझ आया।
क्या यह मजबूरी है।
जो चाहो और समझो,
यह ना मजबूरी,
फिर क्या जरूरी है।
कब तक भागते रहोगे जिंदगी में,
थोड़ा रुकना जरूरी है।
कमा कमा कर तिजोरी भरोगे।
पर अपने पर खर्च कब करोगे।
पल पल भागती जिंदगी में,
कुछ तो अपने लिए करोगे।
ना कर सके,तो मिलेगी ना फुर्सत,
एक दिन यूं ही मरेंगे।
कब तक भागते रहोगे जिंदगी में,
कभी तो तुम यह कहोगे।
रुकना भी सही है।
थोड़ा जिंदगी में।
कब तक जिओगे,
रुक जाओ और यह सोचो,
जो भागते रहे थे,जिंदगी में,
उन्होंने क्या पाया।
जिंदगी को यूं ही गवाया।
पहले कमाने में,
स्वास्थ्य दाव पर लगाया।
अब स्वास्थ्य के लिए कमा रहे हैं।
अब जिंदगी के सही,
मायने समझ आ रहे हैं।
कब तक भागते रहोगे,
जिंदगी में रुकना,
भी सही है थोड़ा जिंदगी में।